श्रीमद्भगवद्गीता में सत्य , ज्ञान और कर्म का उपदेश सन्निहित

आज गीता जयंती विशेष
अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट
रायपुर – इस वर्ष गीता जयंती और मोक्षदा एकादशी आज एक दिसम्बर को है। द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण ने मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी को अर्जुन को श्रीमद्भगवद् गीता का उपदेश दिया था इसी दिन को गीता जयंती के नाम से जाना जाता है। गीता केवल अर्जुन को दिया गया उपदेश नही बल्कि हमें जीवन जीने का तरीका सिखाती है। गीता एक सार्वभौम धार्मिक ग्रंथ है जिसके पठन पाठन से जीवन की समस्त समस्याओं का समाधान मिल जाता है। गीता जयंती हमें उस पावन संदेश की याद दिलाती है जो श्रीकृष्ण ने मोह में फंसे हुये अर्जुन को दिया था और आत्मा परमात्मा से लेकर धर्म कर्म से जुड़ी उनके हर शंका का समाधान भी किया था।
इस संबंध में विस्तृत जानकारी देते हुये अरविन्द तिवारी ने बताया कि भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन दोनों के बीच हुआ संवाद ही श्रीमद्भागवत गीता है। जब कुरुक्षेत्र युद्ध के मैदान में अर्जुन ने अपने सगे संबंधियों और गुरूजनों को खड़े देखकर युद्ध करने से इंकार कर दिया था तब भगवान के उपदेश से अर्जुन का मोह भंग हुआ और उन्होंने गांडीव धारण कर शत्रुओं का नाश करके फिर से धर्म की स्थापना की। इस दिन को मोक्षदा एकादशी भी कहते हैं। मान्यता है कि इस एकादशी का व्रत रखने से मनुष्य के मृतक पूर्वजों के लिये स्वर्ग से द्वार खुल जाते हैं। इसके अलावा जो भी व्यक्ति मोक्ष पाने की इच्छा रखता है उसे यह एकादशी व्रत अवश्य ही रखना चाहिये। श्रीमद्भगवद्गीता का जन्म श्रीकृष्ण के वाणी से कुरुक्षेत्र के मैदान में हुआ था। श्रीमद्भगवद्गीता के अठारह अध्यायों में से पहले 06 अध्यायों में कर्मयोग , फिर अगले 06 अध्यायों में ज्ञानयोग और अंतिम 06 अध्यायों में भक्तियोग का उपदेश है। गीता में कुल 700 श्लोक हैं जिसमें 574 भगवान उवाच , 84 कृष्ण उवाच , 41 संजय उवाच और एक धृतराष्ट्र उवाच है। श्रीमद्भगवद्गीता हिंदुओं का वह इकलौता पवित्र ग्रंथ है जिसकी जयंती केवल भारत में ही नही बल्कि विदेशों में भी मनायी जाती है। क्योंकि अन्य ग्रंथ तो किसी मनुष्य द्वारा लिखे या संकलित किये गये हैं जबकि गीता का जन्म भगवान श्रीकृष्ण के श्रीमुख से हुआ है। गीता मनुष्य का परिचय जीवन की वास्तविकता से कराकर बिना स्वार्थ कर्म करने के लिये प्रेरित करती है।
गीता अज्ञान , दुख , मोह , क्रोध , काम और लोभ जैसी सांसारिक चीजों से मुक्ति का मार्ग बताती है। इसके अध्ययन , श्रवण , मनन-चिंतन से जीवन में श्रेष्ठता का भाव आता है। गीता का ज्ञान हमें दुख , लोभ और अज्ञानता से बाहर निकलने की प्रेरणा देती है। इस ग्रंथ में अठारह अध्यायों में संचित ज्ञान बहुमूल्य है श्रीमद्भागवत गीता में ज्ञान , भक्ति , कर्म योग की विस्तृत व्याख्या की गयी है। गीता का दूसरा नाम गीतोपनिषद है। भगवद्गीता में कई विद्यायें बतायी गयी हैं। इनमें चार प्रमुख हैं- अभय विद्या , साम्य विद्या , ईश्वर विद्या और ब्रह्म विद्या। अभय विद्या मृत्यु के भय को दूर करती है। साम्य विद्या राग-द्वेष से मुक्ति दिलाती है। ईश्वर विद्या से व्यक्ति अहंकार से बचता है। ब्रह्म विद्या से अंतरात्मा में ब्रह्मा भाव को जागता है। गीता एक सार्वभौम ग्रंथ है। यह किसी काल , धर्म , संप्रदाय या जाति विशेष के लिये नहीं अपितु संपूर्ण मानव जाति के लिये हैं। इसे स्वयं श्रीभगवान ने अर्जुन को निमित्त बनाकर कहा है इसलिये इस ग्रंथ में कहीं भी श्रीकृष्ण उवाच शब्द नहीं आया है बल्कि श्रीभगवानुवाच का प्रयोग किया गया है। गीता के अठारह अध्यायों में सत्य , ज्ञान और कर्म का उपदेश है। इस से किसी भी मनुष्य की सारी समस्याओं को दूर किया जा सकता है और जीवन को सफल बनाया जा सकता है।
मोक्षदा एकादशी
पौराणिक मान्यतानुसार इस मोक्षदा एकादशी के बारे में युधिष्ठिर से भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि वैखानस नाम के राजा थे , जो अपनी प्रजा का पालन कर रहे थे। एक रात उनको स्वप्न में उनके पितर नरक में दिखाई दिये तथा अपनी उद्धार के उपाय करने को कहने लगे। दूसरे दिन निद्रा से जागकर राजा प्रातः अपने राज्य के ब्राह्मणों को बुलवाकर उनसे इसका उपाय पूछा , तब ब्राह्मणों ने उन्हें पर्वत मुनि के पास ले गये। पर्वत मुनि ने ध्यान लगाकर देखा फिर राजा से कहा कि मागर्शीर्ष मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत रखने से उसके पुण्य से आपके पितरों का उद्धार होगा। राजा मुनि से मिलकर वहां से वापस आकर उस एकादशी का व्रत किया जिसके प्रभाव से उनके पितरों को मोक्ष की प्राप्ति हुई। यह एकादशी सभी पापों से मुक्त कर मोक्ष प्रदान करता है।
आईये चिन्तन करें गीता सार पर
क्यों व्यर्थ चिंता करते हो ? किससे व्यर्थ डरते हो ? कौन तुम्हें मार सकता है ? आत्मा ना पैदा होती है , ना मरती है। जो हुआ अच्छा हुआ , जो हो रहा है वह अच्छा हो रहा है और जो होगा वह भी अच्छा ही होगा। तुम्हारा क्या गया जो तुम रोते हो ? तुम क्या लाये थे ? जो तुमने खो दिया। जो लिया यहीं से लिया , जो दिया , यहीं पर दिया। जो आज तुम्हारा है , कल और किसी का था , परसों किसी और का होगा। परिवर्तन संसार का नियम है। जिसे तुम मृत्यु समझते हो , वही तो जीवन है। ना यह शरीर तुम्हारा है , ना तुम शरीर के। यह अग्नि , जल , वायु , पृथ्वी , आकाश से बना है और इसी में मिल जायेगा। मेरा – तेरा , छोटा-बड़ा , अपना-पराया , मन से मिटा दो , फिर सब तुम्हारा है , तुम सबके हो। तुम अपने आपको भगवान को अर्पित करो। यही सबसे उत्तम सहारा है।




