Chhattisgarh

श्रावकों ने मनाया धर्मनाथ भगवान का मोक्ष कल्याणक दिवस

अभिषेक, शांति-धारा कर देश में सुख-समृद्धि और खुशहाली की कामना की

रायपुर । आदिनाथ दिगंबर जैन बड़ा मंदिर, मालवीय रोड, रायपुर के जिनालय में पार्श्वनाथ बेदी के समक्ष जैन संप्रदाय के 15वें तीर्थंकर धर्मनाथ भगवान का मोक्ष कल्याणक दिवस धार्मिक वातावरण में मनाया गया। पूर्व उपाध्यक्ष श्रेयश जैन बालू ने बताया कि 10 जून, तिथि ज्येष्ठ शुक्ल चतुर्थी, वीर निर्वाण संवत 2550, दिन सोमवार को सुबह 8.30 बजे बड़े मंदिर के जिनालय में पार्श्वनाथ भगवान की बेदी के समक्ष आध्यात्मिक प्रयोगशाला के माध्यम से प्रतिदिन अभिषेक पूजन शांतिधारा कर रहे श्रावकों ने जैन संप्रदाय के 15वें तीर्थंकर धर्मनाथ भगवान का मोक्ष कल्याणक दिवस मनाया।



सर्वप्रथम श्रीजी को पांडुकशिला में श्रीकार लेखनम कर विराजमान किया गया। प्रासुक जल से रजत कलशों के माध्यम से सभी ने श्रीजी का अभिषेक किया। तदुपरांत देश में सुख-समृद्धि और खुशहाली की कामना कर सुख समृद्धि, रिद्धि-सिद्धि प्रदाता चमत्कारिक लघु शांति धारा की गई। यह सौभाग्य मनोज जैन, सनत कुमार जैन चूड़ी वाला परिवार को प्राप्त हुआ। आज की शांति धारा का वाचन राशु जैन, समता कॉलोनी द्वारा किया गया। सभी ने श्रीजी की आरती कर अष्ट द्रव्यों से देव, शास्त्र, गुरु पूजन कर अर्घ्य चढ़ाए। 15वें तीर्थंकर धर्मनाथ भगवान का मोक्ष कल्याणक पूजन कर निर्वाण कांड पढ़ कर ‘ॐ ह्रीं ज्येष्ठशुक्लचतुर्थ्यां मोक्षमंगलमण्डिताय धर्मनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं नि. स्वाहा’ मंत्रो के साथ निर्वाण लाडू चढ़ाया गया। धर्मनाथ भगवान के जयकारों के साथ पूरा जिनालय गूंज उठा।

आज विशेष रूप से सनत जैन, मनोज जैन, श्रेयश जैन बालू, प्रवीण जैन, राशु जैन, दिलीप जैन, कुमुद जैन, प्रणीत जैन, पलक जैन, उपस्थित थे।

श्रेयश जैन बालू ने भगवान धर्मनाथ के बारे में बताया कि राजा भानु एवं महारानी सुप्रभा फैजाबाद के निकट रत्नपुर गांव में रहते थे। उन्हीं के यहां पंद्रहवें (15वें) तीर्थंकर धर्मनाथ का जन्म माघ शुक्ल त्रयोदशी के दिन हुआ। राजा भानु, महारानी सुप्रभा और परिवार के अन्य राज सदस्य भगवान धर्मनाथ के जन्म के पूर्व धर्म- कर्म में लगे रहते थे। वहां नित्य हो रहे यज्ञ-हवन, व्रत-उपासना, दान-पुण्य आदि के चलते पूरे राज्य में धार्मिक वातावरण निर्मित हो गया था। उसी के फलस्वरूप शिशु के जन्म के बाद उनका नाम धर्मनाथ पड़ गया। धार्मिक वातावरण और राजसी वैभव के बीच धर्मनाथ का लालन-पालन हुआ। युवावस्था में आने पर राजा भानु ने उनका विवाह कर राज्याभिषेक भी कर दिया। भगवान बनने से पूर्व धर्मनाथ के शासन काल में पूरे राज्य में अधर्म का नामोनिशान तक नहीं था। वे साक्षात धर्म के अवतार थे। लाखों वर्ष तक धर्मपूर्वक शासन करने के पश्चात एक दिन उन्हें उल्कापात देखकर बोध हो गया कि उनका जन्म केवल भोग-विलास के लिए नहीं, बल्कि जनकल्याण के लिए हुआ है। उसी क्षण उन्होंने राजपाठ त्यागने का निर्णय लिया। अत: अपने पुत्र सुधर्म का राज्याभिषेक करके स्वयं म‍ुनि-दीक्षा लेकर वन विहार कर लिया। एक वर्ष के घोर तप के पश्चात पौष माह की पूर्णिमा के दिन उन्हें कैवल्य ज्ञान प्राप्त हुआ। जैन धर्मावलंबियों के अनुसार आपका प्रतीक चिह्न वज्र है। वज्र इंद्र देव का शस्त्र है इसलिए इन्द्र को वज्रपाणि कहा जाता है। वज्र कठोरता का प्रतीक भी माना गया है, जो हमें यह शिक्षा देता है कि ‍जीवन में हमें कितना भी दुख क्यों न मिले, फिर भी हमें वज्र के समान कठोर रहकर दुख को सहन करना चाहिए और घोर दुख में भी धर्म के पदचिह्नों पर चलना चाहिए। मनुष्य रूप में भगवान धर्मनाथ दस लाख वर्ष तक पृथ्वी पर रहे। फिर ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष क‍ी चतुर्थी के दिन सम्मेदशिखर पर निर्वाण प्राप्त करके सदा के लिए मुक्त हो गए।

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