शिवराज सरकार का फैसला, रेपिस्टों को मरते दम तक जेल: गुजरात के बिलकिस बानो केस की तरह MP में नहीं छूट पाएंगे गैंगरेप के आरोपी

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भोपाल19 मिनट पहलेलेखक: राजेश शर्मा

मध्यप्रदेश में महिलाओं और बच्चियों के साथ रेप करने वालों को आजीवन कारावास में अब कोई छूट नहीं मिलेगी। प्रदेश सरकार ने फैसला लिया है कि ऐसे अपराधियों को अब अंतिम सांस तक जेल में ही रहना होगा। गैंगरेप के दोषियों पर यही कानून लागू होगा। अभी तक अच्छे आचरण वाले अपराधियों को सजा में छूट देने का अधिकार राज्य सरकार को था, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। बता दें कि भाजपा शासित गुजरात सरकार ने हाल ही में बिलकिस बानो गैंगरेप के दोषियों की सजा में छूट देते हुए उन्हें रिहा कर दिया था, लेकिन मप्र सरकार ने इसके उलट नियम बनाया है।

मुख्यमंत्री शिवराज की अध्यक्षता में हुई हाई पावर कमेटी की बैठक में यह फैसला लिया गया।

मुख्यमंत्री शिवराज की अध्यक्षता में हुई हाई पावर कमेटी की बैठक में यह फैसला लिया गया।

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की अध्यक्षता में गुरुवार को हुई हाई पावर कमेटी की बैठक में निर्णय किया गया कि बच्चों के साथ दुष्कर्म, दो बार रेप के दोषियों को सजा में कोई छूट अथवा माफी नहीं दी जाएगी। इसी तरह आतंकी घटनाओं में लिप्त, टाडा और पाक्सो एक्ट में दोषियों, जहरीली शराब बेचने वाले, ड्रग्स डीलर और प्रदेश में अपराध करने के दोषी विदेशी नगरिकों को भी सजा में कोई छूट नहीं दी जाएगी। सरकार ने प्रदेश में 2012 से लागू नीति में संशोधन कर दिया है।

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अन्य मामलों में छूट देने तीन स्तरीय कमेटी

जानकारी के मुताबिक हत्या मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहे कैदियों को छूट देने के लिए तीन स्तरीय कमेटियों में फैसला होगा। यह कमेटियां जेल, जिला और राज्य स्तरीय पर होंगी, लेकिन डकैती के दौरान हत्या के दोषियों को सजा में कोई छूट नहीं दी जाएगी। ऐसे कैदियों को 20 साल तक जेल में ही रहना होगा। इसके अलावा 70 साल के वृद्ध और 60 साल की महिलाएं, जिन्हें आजीवन कारावास की सजा मिली है, उनकी प्रतिबंधित श्रेणी को छोड़कर अन्य मामलों में समय पूर्व रिहाई दी जा सकेगी।

नरसंहार व राष्ट्रद्रोह के बंदियों को नहीं मिलेगी रिहाई

जघन्य अपराध के दोषी ऐसे बंदी, जिन पर नरसंहार, राष्ट्रद्रोह जैसे मुकदमे हैं, उन्हें रिहा नहीं किया जाएगा। CBI, NIA जैसी केंद्रीय एजेंसियों की विशेष कोर्ट से सजा पाए बंदियों को भी रिहाई नहीं मिलेगी। ऐसे बंदी, जिनसे लोक शांति और कानून-व्यवस्था को खतरा हो सकता है, राज्य सरकार उनकी रिहाई रोक सकती है। इसके लिए बंदियों की पात्रता तय करते समय सरकार से रिपोर्ट मांगी जाएगी।

दूसरे राज्यों में ऐसा, लेकिन MP में साल में 4 बार होगी रिहाई

मध्य प्रदेश में प्रति वर्ष 26 जनवरी और 15 अगस्त को समय पूर्व रिहाई होती है। उत्तर प्रदेश में वर्ष में सात, ओडिशा, बिहार और हिमाचल प्रदेश में साल में चार बार रिहाई होती है। महाराष्ट्र और कर्नाटक में प्रकरण के हिसाब से निर्णय लिया जाता है। तेलंगाना में दो अक्टूबर को रिहाई होती है। अब रिहाई साल में दो की बजाय चार बार होगी।

यूपी, ओडिशा व महाराष्ट्र की नीति का अध्ययन हुआ

रिहाई की नीति में संशोधन के लिए गृह विभाग उत्तर प्रदेश, ओडिशा, महाराष्ट्र सहित अन्य राज्यों की नीति का अध्ययन करने के बाद सरकार ने यह राज्य की नीति में बदलाव किया है। उल्लेखनीय है कि बालिकाओं के साथ दुष्कर्म के मामलों में राज्य सरकार ने फांसी की सजा का प्रावधान किया है।

2010 में सुप्रीम कोर्ट ने दिए थे निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने 2010 में सभी राज्य सरकारों को आजीवन कारावास के सजा पाए कैदियों की रिहाई की नीति के संबंध में विचार करने के लिए कहा था। सर्वोच्च अदालत ने इंदौर के एक केस में फैसला सुनाते हुए यह निर्देश राज्य सरकार को दिए थे। इसके बाद सामान्य प्रशासन विभाग ने मई 2022 में इसके लिए अपर मुख्य सचिव गृह एवं जेल डा.राजेश राजौरा की अध्यक्षता में समिति बनाई थी। इस समिति की रिपोर्ट के आधार पर हाई पावर कमेटी ने अब फैसला लिया है।

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