MP में मानसून लेट रवाना, अब सर्दी की एंट्री: 15 जून के बाद आने लगा; ठंड पर पड़ा असर

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भोपाल27 मिनट पहले

मध्यप्रदेश में मानसून का ट्रेंड बदल गया है। अब सामान्य तौर पर यह 3 दिन लेट होने लगा है। बीते 13 साल में सिर्फ 6 बार ही यह 15 जून के पहले आया, जबकि 9 साल 15 जून के बाद आया। इसका असर ठंड पर भी देखा जा रहा है। यही कारण है कि अक्टूबर में ही सर्दी का एहसास होने लगा है।

वरिष्ठ मौसम वैज्ञानिक वेद प्रकाश सिंह ने बताया कि आमतौर पर प्रदेश में 15 जून तक मानसून की एंट्री हो जाती है। बीते वर्षों के रिकॉर्ड बता रहे हैं कि अब यह 3 दिन आगे बढ़ गया है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण ऐसा हो रहा है।

वेस्टर्न डिस्टरबेंस यानी पाकिस्तान से आने वाली हवाएं लाएंगी सर्दी

अलग-अलग सिस्टम कैस्पियन सागर, ब्लैक सी से ईरान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान होते हुए देश के उत्तरी हिस्से में पहुंचते हैं। ये यहां ट्रफ लाइन, ऊपरी हवा के चक्रवात, कम दबाव के क्षेत्र के रूप में आते हैं। ये पश्चिम से पूर्व की ओर जाते हैं। इसके कारण पहाड़ों पर बारिश और बर्फबारी होती है। फिर वहां से आने वाली बर्फीली और ठंडी हवा मध्यप्रदेश के मौसम को भी सर्द कर देती है।

दो साल से अक्टूबर में ही ठंड आने लगी

मध्यप्रदेश में 14 अक्टूबर को मानसून की विदाई हो गई। अब पोस्ट मानसून का सीजन शुरू हो गया है। पाकिस्तान से आने वाली हवाओं और मौसम से नमी खत्म होने से ठंड पड़ने लगती है। वरिष्ठ मौसम वैज्ञानिक वेद प्रकाश सिंह ने बताया कि अभी दिवाली तक इसी तरह का मौसम बना रहेगा। रात को हल्की ठंड और दिन में सूरज की तपिश हल्की गर्मी का एहसास कराएगा। 18 और 19 अक्टूबर को दक्षिण भारत में बारिश होगी। इससे नमी मध्यप्रदेश तक आएगी, लेकिन बारिश नहीं होगी। सिर्फ जबलपुर के कुछ इलाकों में हल्की बारिश हो सकती है। बीते 10 साल में सबसे ज्यादा बारिश वाला अक्टूबर रहा। साल 2013 में अक्टूबर में 4 इंच बारिश हुई थी।

क्या यह ठंड के आने का संकेत, तापमान गिरेगा?

अभी तापमान ज्यादा कम नहीं होगा। बादल नहीं होने से अब दिन में तो तापमान ज्यादा नहीं गिरेगा, लेकिन रात के तापमान में मामूली गिरावट दर्ज की जा सकती है। इससे सुबह और शाम के समय हल्की ठंडक बनी रहेगी। बादल छाने पर रात का तापमान बढ़ सकता है।

क्या अब कोहरा छाना शुरू हो जाएगा ?

अभी कोहरे जैसी स्थिति बनने की परिस्थितियां नहीं है। हालांकि सुबह और शाम के समय हल्की ठंडक होने से प्रदूषण के कारण कुछ धुंध के आसार हैं। रात को ठंडक बढ़ने से सुबह के समय हल्की ओस भी गिर सकती है।

इसलिए बदला मानसून का पैटर्न

मानसून के पैटर्न में आ रहे बदलावों को जलवायु परिवर्तन व ग्लोबल वार्मिंग से जोड़कर देखा जा रहा है। केंद्र सरकार के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अनुसार वर्ष 1901–2018 के बीच में भारत में सतही हवा के तापमान में 0.7 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है, जिसके फलस्वरूप वायुमंडलीय नमी में भी बढ़ोतरी हुई है। वहीं, 1951–2015 के दौरान हिंद महासागर में समुद्र की सतह के तापमान में भी करीब 1 डिग्री सेल्सियस तक की वृद्धि हुई है। विभिन्न फैक्टर्स में इन असामान्य बढ़ोतरी का असर मानसून के पैटर्न पर पड़ा है।

मध्यप्रदेश में दो सिस्टम कराते हैं बारिश

वरिष्ठ मौसम वैज्ञानिक वेद प्रकाश कहते हैं कि मध्यप्रदेश में अरब सागर और बंगाल की खाड़ी से आने वाले सिस्टम बारिश कराते हैं। अरब सागर से बारिश इंदौर से लेकर उज्जैन और ग्वालियर चंबल के कुछ इलाकों में बारिश कराता है, जबकि बंगाल की खाड़ी से प्रदेश भर में बारिश होती है। अरब सागर से आने वाली मानसूनी हवाएं खरगोन-बड़वानी जिले के रास्ते मालवा-निमाड़ में प्रवेश करती हैं। यह आगे बढ़ती हैं, तो अरावली पर्वत के सहारे दिल्ली की तरफ चली जाती हैं।

अरब सागर के मानसून से ही मालवा-निमाड़ में बारिश होती है। इसी कारण अलीराजपुर, झाबुआ और आगर में या तो सामान्य से कम बारिश होती है या फिर ज्यादा बारिश होती है। अधिकांश तौर पर यहां जुलाई-अगस्त में ही अधिकतम बारिश हो जाती है। इससे श्योपुर, नीमच, मंदसौर, रतलाम और बुरहानपुर में जमकर पानी गिरता है। उज्जैन और इंदौर में सामान्य बारिश होती है। अगर अरावली पर्वत नहीं होता, तो अरब सागर से आने वाली मानसूनी हवाएं सीधे निकल जाती। यह इलाके सूखे रह जाते।

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