जानकारी छिपा रहा प्रशासन: दावा : लंपी वायरस से 3 दिन में किसी गाय की माैत नहीं, हकीकत : कुचड़ौद और नगरी में मवेशियाें ने तोड़ा दम

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मंदसौर26 मिनट पहलेलेखक: कपिल शर्मा

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कोरोना की तरह प्रशासन लंपी वायरस से पशुओं की मौत के आंकड़े छिपा रहा है। अंचल व गोशालाओं में गायों की मौत हो रही है। पशुपालक खुद इसकी पुष्टि कर रहे हैं जबकि पशुपालन विभाग 26 सितंबर से अब तक एक भी गाय की मौत नहीं हाेने का दावा कर रहा है। जिले के 454 गांवों में 1335 गायों में लंपी वायरस के लक्षण दिखे हैं। अधिकारियों के अनुसार 1302 गायें इलाज के बाद ठीक हो गई हैं। इधर, अभी तक जिले को वैक्सीन नहीं मिली है। स्वस्थ पशुओं को लगने वाले टीके भी सप्ताहभर से खत्म हैं। जनसहयोग से टीके लगाए जा रहे हैं। ऐसे में पशुपालक निजी चिकित्सकों के सहारे इलाज कराने को मजबूर हैं। अधिकारी जल्द वैक्सीन मिलने का ढांढस बंधा रहे हैं।

26 से मौत का आंकड़ा स्थिर
जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में लंपी का कहर जारी है। 26 सितंबर को भास्कर ने “लंपी वायरस का कहर’ टैग के साथ खबर प्रकाशित की थी। इसके बाद से माैत का आंकड़ा थम गया है। पशुपालन विभाग का दावा है कि अब तक 26 गायों की मृत्यु हुई है जबकि 27 सितंबर को कुचड़ौद के पशुपालक रामेश्वर ओझा की गाय ने दम तोड़ दिया। उन्हाेंने बताया कि 7 दिन पहले गाय के शरीर पर गठानें दिखीं। नियमित पशु चिकित्सक से इलाज भी करवाया। दवाइयां भी दीं फिर भी गाय ठीक नहीं हुई। इसके अलावा 27 को ही नगरी के महेश पपोंडिया की गाय ने दम तोड़ दिया। उन्हाेंने बताया कि सप्ताहभर से 3 गायें लंपी से ग्रसित थीं। दो तो ठीक हो गईं लेकिन एक गाय नहीं बची। कुचड़ौद की श्रीसांवरिया गोशाला में भी एक गाय ने दम तोड़ दिया। हालांकि चिकित्सक गाय में लक्षण नहीं होने का दावा कर रहे हैं। इसके अलावा भी अन्य ऐसे कई मामले हैं।

टीके के लिए जुटा रहे हैं राशि
कुचड़ौद| वायरस के कहर के बीच स्थानीय जनसहयोग से गायों का इलाज किया जा रहा है। लोग विभिन्न प्रकार के सहयोग देकर गोसेवा में भूमिका निभा रहे हैं। अंचल में 4 लाेगों ने 400 गोवंश के टीकाकरण की राशि दी। सेमलिया काजी व कुचड़ाैद के दो गुप्त दानदाताओं द्वारा 200 गोवंश के लिए, लसूड़ी के दिलीप पाटीदार ने 100 गोवंश के लिए, गांव झावल के अंबालाल भाटी द्वारा 100 गोवंश के लिए टीकों की राशि का भुगतान कर सहयोग किया।

कल तक आ जाएगी वैक्सीन
“वैक्सीन अभी आई नहीं है। शुक्रवार तक मिल जाएगी। साथ ही जनसहयोग से इलाज में औषधि भी प्राप्त हो रही है। इसके बाद पशुआें में कवर होने का प्रतिशत 80 से 85 प्रतिशत हैं। पशुओं की मौत की संख्या 26 ही है।”
– मनीष इंगोले, उपसंचालक, पशुपालन विभाग

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