…यहां मवेशियों के लिए होती है विशेष पूजा: गुना के कारसदेव में कल लगेगा मेला; देसी घी से भोग लगाकर होगी पूजा

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गुनाएक घंटा पहले

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यहां से नागरिक पहले घंटियां ले जाते हैं। प्रजनन होने के बाद पहला घी, दूध और एक घंटी वापस लाकर बांधते हैं। - Dainik Bhaskar

यहां से नागरिक पहले घंटियां ले जाते हैं। प्रजनन होने के बाद पहला घी, दूध और एक घंटी वापस लाकर बांधते हैं।

शहर से 10 किमी दूर स्थित कारसदेव मंदिर। यह मंदिर अपने आप मे विशेष है। यहां नागरिक अपने मवेशियों की लंबी आयु और स्वस्थ जीवन की मन्नत लेकर पहुंचते हैं। मान्यता है कि यहां मन्नत मांगने के बाद कारसदेव भगवान स्वयं उनके मवेशियों की रक्षा करते हैं। जिन मवेशियों के प्रजनन नहीं होता, इस मंदिर से पूजन करवाकर घंटी ले जाकर उनके गले मे बांध दी जाती है। प्रजनन हो जाने और मन्नत पूरी हो जाने के बाद मन्नत मांगने वाला एक के बदले दो घंटियां लाकर यहां भगवान को अर्पित करते हैं। दीवाली की दोज के दिन यहां मेले जैसा माहौल रहता है। हजारों की संख्या में नागरिक यहां दर्शन के लिए पहुंचते हैं।

यह मंदिर बमोरी विधानसभा के बरोदिया गांव में स्थित है। इस मंदिर की मान्यता हजारों वर्ष पुरानी है। प्रदेश का यह इकलौता मंदिर है जहां श्रद्धालु अपनी गाय, भैंस, बकरी सहित पशुधन के लिए मन्नत मांगते हैं। दूर-दूर से यहां श्रद्धालु आते हैं। राजस्थान, यूपी सहित मध्यप्रदेश के कई जिलों के नागरिक यहां मन्नत मांगने पहुंचते हैं। मान्यता है कि यहां अपने मवेशियों के लिए मांगी जाने वाली मन्नत हमेशा पूरी होती है। मन्नत पूरी होने के बाद यहां भंडारे का आयोजन किया जाता है। इस मंदिर की ख्याति दूर-दूर तक है। दीपावली की दोज के दिन यहां मेले का आयोजन होता है।

प्रजनन के लिए ले जाते हैं घंटी

सबसे ज्यादा मन्नत मवेशियों के प्रजनन के लिए मांगी जाती हैं। जिन मवेशियों के प्रजनन में कोई समस्या आती है या फिर प्रजनन नहीं होता है, तो उनके मालिक इस मंदिर पर आकर मन्नत मांगते हैं। यहाँ से एक घंटी खरीदकर उसका पूजन करवाकर ले जाते हैं। उस घंटी को मवेशी को बांध दिया जाता है। जब प्रजनन हो जाता है और मन्नत पूरी हो जाती है, तब एक घंटी के बदले मवेशी में मालिक को मंदिर पर दो घंटियां चढ़ानी होती हैं। इसके अलावा पशुओं को बीमारी से, दुर्घटना से बचाने की भी मन्नत मांगी जाती है।

शुद्ध सामग्री का लगता है भोग

मवेशी का प्रजनन होने के बाद उसके दूध, दही और घी का भोग भगवान को लगाया जाता है। यह पूरी तरह शुद्ध होता है। उसे एकत्रित किया जाता है और दोज के दिन मंदिर पर आकर उसका भोग लगाया जाता है। यही सामग्री भगवान को अर्पित की जाती है। इस दौरान कई क्विंटल दही, घी और हजारों लीटर दूध भगवान पर अर्पित होता है। इतना घी इकट्ठा हो जाता है कि उसकी कुछ दिन बाद नीलामी करनी पड़ती है। नीलामी में मिलने वाले पैसे से मंदिर का जीर्णोद्धार और अन्य व्यवस्थाएं की जाती हैं।

देसी घी का लगाया जाता है भोग।

देसी घी का लगाया जाता है भोग।

सैकड़ों जगह भंडारे का आयोजन

दोज के दिन यहां हजारों संख्या में नागरिक पहुंचते हैं। मन्नत पूरी होने के बाद यहां श्रद्धालुओं के द्वारा भंडारे का आयोजन किया जाता है। छोटे-बड़े मिलाकर सैकड़ों की संख्या में भंडारे होते हैं। इन भंडारों में प्रसाद के रूप में मालपुए, खीर मुख्य रूप से बनाये जाते हैं। यह सब शुद्ध सामग्री से ही बनाया जाता है। मंदिर परिसर के आसपास बैठकर ही सभी श्रद्धालु भंडारे में प्रसादी ग्रहण करते हैं। पिछले कई। वर्षों से अब श्रद्धालु हर वर्ष यहां आते हैं।

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