मेढ़ पद्धति से बैंगन की खेती ने किया मालामाल: धान-गेहूं की खेती छोड़, एक एकड़ में बैंगन की खेती से सालाना कमा रहे 5 से 6 लाख रुपए

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सुरेश मिश्रा। रीवाएक घंटा पहले
रीवा शहर के सटे ग्राम अटरिया के किसान मेढ़ पद्धति से बैंगन की खेती की है। 37 साल के किसान नृपेन्द्र सिंह ने बताया कि ग्रेजुएशन कर वर्ष 2012-13 में आईटीआई की। शुरुआती दौर में यहां-वहां नौकरी के लिए भटकते रहे। नौकरी नहीं मिली तो मन में ख्याल आया, क्यों नहीं पुश्तैनी खेती-किसानी के काम को आगे बढ़ाया जाए। इसके बाद उन्होंने परंपरागत खेती को अपनाया। गेहूं और धान की फसल लगाई। अच्छी उपज मिली, लेकिन कमाई उम्मीद के मुताबिक नहीं हो रही थी। कई बार कोशिश की कुछ अलग करने की, लेकिन अनुभव कम होने के कारण जोखिम उठाने से डरते रहे।
इसी दौरान उनकी मुलाकात कुछ कृषि वैज्ञानिकों से हुई। प्रोत्साहन मिला तो उत्साह भी बढ़ा। फिर क्या था, ट्रेडिशनल खेती के बजाय खुद को सब्जियों की खेती के तरह मोड़ दिया। पहले सामान्य तरीके से बैंगन की खेती की। अच्छी पैदावार होने लगी तो वैज्ञानिक तरीके से बैंगन की खेती करने की योजना बनाई। 2019 में पहली बार मेढ़ पद्धति से बैंगन की खेती की। इस पद्धति से नृपेंद्र सिंह ने दो वर्ष पहले खेती शुरू की। यहीं से किस्मत बदल गई। एक एकड़ जमीन में बैंगन की खेती कर साल में चार बार फसल की पैदावार कर लेते हैं। इससे उन्हें सालाना 5 से 6 लाख रुपए की कमाई हो जाती है। इसके अलावा नृपेंद्र फूल व बंद गोभी, गाजर व मूली की खेती भी करते हैं।
गोल बैंगन को मिलते हैं ज्यादा भाव
नृपेन्द्र सिंह ने कहा कि लंबे व काले बैंगन की अपेक्षा गोल बैंगन का बाजार भाव अधिक होता है। मसलन, अगर लंबा बैगन 10 से 15 रुपए प्रति किलो बिकता है तो गोल बैंगन का भाव 15 से 18 रुपए तक मिल जाता है। इसका सबसे बड़ा कारण यह कि लंबे बैगन में ज्यादा दाना होते हैं। साथ ही इसमे कीड़े भी लगते है, लेकिन गोल बैंगन में कीड़े लगने की आशंका कम होती है।

बैंगन के खेत में फसलों को देखते किसान नृपेंद्र सिंह।
ऐसे तैयार करते हैं खेत
विंध्य क्षेत्र के वातावरण में बैंगन की खेती पूरे साल हो सकती है। सबसे पहले खेत को ट्रैक्टर से दो बार जुताई करते हैं। इसके बाद रोटा वेटर कर मिट्टी को भुरभुरा बना देते हैं। फिर मेढ़ मेकर से मेढ़ और क्यारी बना देते हैं। सीधी लाइन में मेढ़ बनने के बाद गड्ढा करते हैं। हल्की डीएपी डालकर पौधा रोपते कर देते हैं।
बैंगन के पौधे में आपस की दूरी
नृपेंद्र बताते हैं कि मेढ़ पद्धति से खेती में सबसे बड़ा फायदा होता है, क्योंकि जमीन के सतह की मिट्टी मेढ़ बन जाती है। ऐसे में चार माह तक जमीन नर्म रहती है। बैंगन को रोपते समय आपस में दो-दो की दूरी होनी चाहिए। बल्कि चाैड़ाई तीन-तीन फिट रखनी चाहिए। ऐसी खेती करने पर जड़ को फैलने के लिए काफी स्थान मिल जाता है। इसके बाद बैंगन का तेजी से ग्रोथ होता है।

नृपेंद्र सिंह के खेत में लगे बैंगन के पौधे।
15 दिन बाद खाद डालकर करते हैं गुड़ाई
बैंगन का पौधा रोपने के 15 दिन बाद पौधे के चारों तरफ खाद डालकर गुड़ाई कर देते हैं। इससे मिट्टी पौधे के चारों तरफ लग जाती है। इसके बाद हर 10 से 12 दिन में कीटनाशक दवाओं का इस्तेमाल करना पड़ता है। 25 से 30 दिन बाद एक बार पुनः गुड़ाई कर खाद डाली जाती है।
एक बार लगाओ, पांच महीने तक फल पाओ
बैंगन की खेती के लिए सबसे पहले नर्सरी तैयार की जाती है। नर्सरी के पौधे 25 दिन में बन जाते हैं। इसके बाद पौधे लगाए जाते हैं। यहां पौधे को तैयार करने के बाद 45 से 50 दिन में फल निकलने लगते है। बैंगन के पौधे 120 दिन तक लगातार पैदवार देते हैं। पौधों काे समय-समय पर पानी व खाद बीज देते रहना जरूरी होता है।

रोजाना हो रही हजारों की आय
नृपेंद्र ने बताया कि शुरुआत में बैंगन की पैदावार कम होती थी, लेकिन 60 दिन बाद तेजी से फल आने शुरू हो जाते हैं। पहले एक-एक दिन छोड़कर बैंगन की तुड़ाई की जाती है, लेकिन 70 दिन बाद रोजाना तोड़ना पड़ता है। ऐसे में रोजाना 5 से 8 हजार रुपए तक का बैंगन निकल जाता है। इस तरह से बैंगन की खेती से नृपेंद्र सालाना 3 से 4 लाख रुपए की कमाई कर रहे हैं।
तीन एकड़ में सब्जी की खेती से मालामाल
नृपेन्द्र सिंह ने कहा कि बैंगन की खेती वे करीब एक एकड़ में करते हैं। जिससे औसतन सालाना 5 से 6 लाख की आमदनी हो जाती है। वहीं फूल गोभी से 50 हजार, बंद गोभी से 80 हजार, मूली से 60 हजार सहित बड़े स्तर पर प्याज की खेती करते है। वहीं 10 एकड़ में धान और 10 एकड़ में गेहूं की खेती रहते है। सबसे ज्यादा प्रोडक्शन के कारण क्षेत्र में चर्चित किसान है।





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