अब 108 घंटे की समाधि लेंगे महाराज!: दावा-समाधि के दौरान मां ने रथ में बैठाकर विष्णु-ब्रह्म-शिव लोक घुमाया

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भोपाल9 घंटे पहले
भोपाल में 72 घंटे की भू-समाधि लेने के बाद स्वामी पुरुषोत्तम महाराज इन दिनों में चर्चा में हैं। अब बाबा ने पहले 84 घंटे और फिर 108 घंटे की समाधि लेने का ऐलान किया है। देशभर में घूमकर समाधि लूंगा। स्वामी पुरुषोत्तम महाराज ने भद्रकाली विजयासन मंदिर में 7 फीट गहरे, 5 फीट चौड़े और 6 फीट लंबे गड्ढे में तीन दिन तक भू समाधि ली थी। स्वामी ने दावा किया कि समाधि के दौरान मां रथ में बैठाकर ले गईं। मैं विष्णु-ब्रह्म-शिव लोक भी घूमा। दैनिक भास्कर की टीम ने मंदिर पहुंचकर स्वामी पुरुषोत्तम से इस यात्रा और अनुभव को लेकर बात कि…पढ़िए स्वामी पुरुषोत्तम ने क्या किया दावा
सबसे पहले जानते हैं स्वामी पुरुषोत्तम चर्चा में क्यों हैं…
साउथ टीटी नगर स्थित मां भद्रकाली विजयासन मंदिर में पुरुषोत्तम महाराज 30 सितंबर की सुबह 10 बजे 5 बाय 6 के सात फीट गहरे गड्ढे में साधना के लिए बैठे थे। महाराज के नीचे उतरते ही भक्तों ने गड्ढे को लकड़ी के पटिए से ढंक दिया। ऊपर से लाल कपड़ा बिछाकर मिट्टी की पतली परत बिछा दी। पुलिस ने महाराज को ऐसा करने से रोका था, लेकिन वे नहीं माने। इसके बाद शुरू हुए धार्मिक अनुष्ठान। बड़ी संख्या में भक्त समाधि स्थल पर पहुंचे। महाराज के आश्रम के पास पुलिस बल भी तैनात हो गया। पुरुषोत्तमानंद के बेटे मित्रेश कुमार सोनी समेत परिजन दो रातों से समाधि स्थल पर ही बैठे रहे। उन्होंने दावा किया कि महाराज अंदर तपस्या में लीन हैं। दूसरे दिन भी यही नजारा देखने को मिला।

महाराज ने 30 सितंबर को 72 घंटे के लिए कथित समाधि ली थी। गड्ढे को छोटे-छोटे 12 पटियों से बंद किया गया था। जिनके बीच थोड़ी-थोड़ी जगह भी थी।
अब पढ़िए समाधि से निकलने की कहानी…
3 अक्टूबर की सुबह मंदिर में भक्तों की भीड़ थी और सभी को महाराज के बाहर निकलने का इंतजार था। सुबह 10.45 बजे भक्तों ने तपस्या स्थल पर पूजा शुरू की। बाबा की पत्नी चारू सोनी आरती की थाल लेकर गड्ढे के पास खड़ी हो गईं। सबसे पहले गड्ढे के ऊपर बिछाए गए लाल रंग के कपड़े को हटाया गया। इसके बाद गड्ढे के ऊपर रखी पटियों को हटाया गया। जैसे ही आगे के 4 पटिए हटाए गए, महाराज की पहली झलक दिखी। महाराज ध्यान मुद्रा में बैठे हुए थे। बाबा को देख मंदिर परिसर जयकारों से गूंजा उठा। भक्तों ने उन पर पुष्प वर्षा की, जल का छिड़काव किया। महाराज ने बैठे-बैठे हाथ जोड़कर अभिवादन किया। पत्नी ने उनकी आरती उतारी। वे कुछ देर तक तपस्या स्थल पर ही खड़े रहे। भक्तों को आशीर्वाद दिया। बाहर आते ही महाराज सबसे पहले विजयासन माता के दरबार में गए, यहां पर पूजा की।

महाराज की पत्नी मुख्य सेविका चारू सोनी ने बताया था कि बाबा ने लोक कल्याण की कामना के लिए समाधि ली थी। समाधि लेने से पहले उन्होंने आंकड़ा गणेश की पूजा की थी।
अब पढ़ लीजिए, महाराज का दावा…
मेरी यात्रा तो मां ने ही कराई। मैं इस यात्रा को कभी नहीं भूल पाऊंगा। यह बहुत महत्वपूर्ण यात्रा रही। हर व्यक्ति साधना करके सिद्धि को प्राप्त करे। जब मैं मां के साथ रथ पर बैठकर जाने लगा, तो पहले मुझे अंधकार दिखा। घोर अंधकार था। ऐसा कि कोई एक-दूसरे को देख नहीं सके। यह देख मैं आश्चर्यचकित हो गया कि इतना अंधकार कैसे हो गया। मैंने मां से प्रश्न किया। तब मां ने मुझसे कहा कि ये अंधेरा जो तुम देख रहे हो, वो दुष्ट लोगों के लिए है, जो मदिरा पान करते हैं। मांस भक्षण करते हैं। प्राणियों की हत्या करते हैं। दुराचार, दुष्कर्मी और पापी है। ये स्थान उन लोगों के लिए है। इसके बाद मां मुझे स्वर्ग लोक लेकर गईं। यहां रोशनी देखकर मेरी आंखें चकाचौंध हो गईं।

समाधि से बाहर निकलने के दूसरे दिन मंगलवार को महिलाएं दिनभर भजन-कीर्तन करती रहीं।
मां ने मुझे कहा कि इसे ही स्वर्ग लोक कहते हैं। वहां झरने बह रहे थे। सुंदर सरोवर थे। सुंदर-सुंदर पक्षियों की चहचहाहट थी। ऐसे पक्षी, जो मैंने कभी देखे नहीं। मैंने सरोवर में स्नान किया। बहुत आनंदित लगा, जब मैं सरोवर में उतरा। शीतल जल था। मुझे न तो ठंड लगी, न ही परेशानी हुई। जब मैं सरोवर में रहा, तो भीगा हुआ था, लेकिन जब बाहर निकला तो बिल्कुल सूख गया। पानी की एक बूंद भी शरीर पर नहीं थी।
इसके बाद मैं मां के साथ शिव लोक पहुंचा। यहां बड़े बादलों की गर्जना, गड़गड़ाहट देखने और सुनने को मिली। सुंदर बादल थे। ऐसी आकृतियां थीं, जिनमें ओमकार की आकृति थी। ‘ऊं’ से पूरा वातावरण गुंजायमान था। फिर मैं मां के साथ विष्णुलोक में पहुंचा। बड़ा ही भव्य था यह। यहां स्वर्ण खंभों का महल बना था। हीरे-जवाहरात थे। वैभवशाली दृश्य था। वहां मैंने प्रणाम किया।
फिर ब्रह्मलोक पहुंचा। मां ने बताया कि ये ब्रह्मलोक है। यहां भी ओमकार का गुंजायमान हो रहा था। कई ऋषि ओम शब्द का उच्चारण कर रहे थे। यहां संध्या पर बादल का रंग भगवा हो गया। मैं वहीं रुका रहा था। मां ने कहा- तुम्हारी आवश्यकता धरा पर है। भटके हुए लोगों को सद्मार्ग पर ले जाओ। मां ने यह भी कहा है कि भारत में जितने भी राज्य हैं, वहां पर जाकर समाधि लो।

स्वामी पुरुषोत्तम से आशीर्वाद लेने लगातार भक्तों की भीड़ मंदिर में पहुंच रही है।।
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भोपाल में स्वामी पुरुषोत्तमानंद महाराज ने कथित तौर पर 72 घंटे के लिए भू समाधि ले ली। साउथ टीटी नगर स्थित मां भद्रकाली विजयासन दरबार में महाराज शुक्रवार सुबह 10 बजे 5 बाय 6 के 7 फीट गहरे गड्ढे में साधना के लिए बैठे। वे तीसरे दिन 3 अक्टूबर को सुबह 10 बजे गड्ढे से बाहर आए। महाराज के गड्ढे में बैठते ही बाहर मौजूद लोगों ने गड्ढे के ऊपर लकड़ी के पटिये रख दिए, इसके बाद इस पर मिट्टी की परत चढ़ा दी थी। 60 की उम्र में 72 घंटे की समाधि में संत
भोपाल में स्वामी पुरुषोत्तमानंद महाराज ने कथित तौर पर 72 घंटे के लिए भू-समाधि ले रखी है। 30 घंटे से अधिक समय से वे 7 फीट गहरे गड्ढे में तपस्या में लीन हैं। समाधि स्थल के गड्ढे को ऊपर से लकड़ी के पटिए और मिट्टी से ढंक दिया गया है। यहां पर धार्मिक अनुष्ठान चल रहा है। बड़ी संख्या में भक्त भी समाधि स्थल पर पहुंच रहे हैं। स्वामी पुरुषोत्तमनंद की भूमिगत समाधि का दूसरा दिन

3 अक्टूबर। समय सुबह 10 बजे। भोपाल के भद्रकाली विजयासन मंदिर में भीड़…। सभी को स्वामी पुरुषोत्तमानंद महाराज के तप स्थल से बाहर आने का इंतजार है। करीब 1 घंटे के इंतजार के बाद महाराज की पहली झलक गड्ढे के अंदर दिखी। पूरा मंदिर परिसर जयकारों से गूंज उठा। स्वामी पुरुषोत्तमानंद तीसरे दिन ‘समाधि’ से बाहर आए

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