Chhattisgarh

मीडिया प्रभारी अरविन्द तिवारी ने दी पुरी शंकराचार्यजी के आगामी प्रवास की जानकारी

अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट

रायपुर – ऋग्वेदीय पूर्वाम्नाय श्रीगोवर्द्धनमठ पुरीपीठाधीश्वर अनन्तश्री विभूषित श्रीमज्जगद्गुरु शंकराचार्य पूज्यपाद स्वामी श्रीनिश्चलानन्द सरस्वतीजी महाराज रथयात्रा के पावन अवसर पर श्रीजगन्नाथजी का दर्शन , पूजन तथा रथयात्रा का शुभारम्भ के पश्चात अपनी आगामी राष्ट्रोत्कर्ष अभियान में आज 29 जून की प्रात: नई झूंसी स्थित शिवगंगा आश्रम , रेलवे पुल के पास , प्रयागराज पहुंचे। इसके पहले रेल्वे स्टेशन पहुंचने पर महाराजश्री का भव्य स्वागत किया गया , उसके पश्चात वे सड़क मार्ग से आश्रम पहुंचे।

पुरी शंकराचार्यजी का प्रयागराज प्रवास दिनांक 03 जुलाई तक निर्धारित है। इस अवधि में दिनांक 30 जून से 02 जुलाई तक प्रात:कालीन सत्र में पूर्वान्ह साढ़े ग्यारह बजे से दर्शन , दीक्षा और संगोष्ठी कार्यक्रम में उपस्थित भक्तजन धर्म , राष्ट्र और ईश्वर से संबंधित अपनी जिज्ञासाओं का समाधान श्रीशंकराचार्यजी से प्राप्त कर सकेंगे। वहीं सायंकालीन सत्र में पुन: दिनांक 29 जून से 02 जुलाई तक शाम साढ़े पांच बजे से दर्शन एवं आध्यामिक संदेश श्रवण का सुअवसर प्राप्त होगा।

यहां आयोजित सभी कार्यक्रमों की समाप्ति पश्चात पुरी शंकराचार्यजी 03 जुलाई को दोपहर एक बजे निवास स्थान से प्रस्थान कर साढ़े तीन बजे सारनाथ एक्सप्रेस के द्वारा अपने आगामी राष्ट्र रक्षा अभियान में छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर प्रस्थान करेंगे। इसकी जानकारी श्री सुदर्शन संस्थानम , पुरी शंकराचार्य आश्रम के मीडिया प्रभारी अरविन्द तिवारी ने दी। बताते चलें कि वर्तमान में पूज्य पुरी शंकराचार्यजी ही ऐसे एकमात्र विभूति हैं जो कि आज के उन्माद और विनाश के वातावरण में विश्व मानवता की रक्षा हेतु भारतवर्ष के साथ – साथ सम्पूर्ण विश्व को इस संबंध में सचेत करते रहते हैं। धर्म के संबंध में उनका संदेश है कि अर्थोपार्जन और विषयोपभोग की वह विधा जिसके फलस्वरूप हमारा जीवन दिशाहीन ना हो , हम दूसरों के लिये अनावश्यक शोषक सिद्ध ना हों , हमारे देह , इन्द्रिय , प्राण , अन्त:करण का पोषण हो सके और हमारे जीवन में उस बल और वेग का संचार हो जिसके फलस्वरूप जीवनधन जगदीश्वर की प्राप्ति करने में हम समर्थ हो सकें , उसी का नाम है धर्म। ठीक इसी तरह सनातन धर्म की सर्वकालीन प्रासंगिकता तथा सर्वोत्कृष्टता के संबंध में उनका कथन है कि उद्भव – स्थिति – संहार – निग्रह और अनुग्रहकर्ता सनातन सर्वेश्वर सर्वाधिष्ठान , सर्वरूप , सर्वात्मा हैं। धर्मनिष्ठ उन्हें माता , पिता , पति सखादि आत्मीयभाव से भजते हैं। भगवद्भक्त उन्हें आत्मा समझकर कृतार्थ होते हैं। परमेश्वर की उपास्यरूपता , आत्मरूपता और सर्वरूपता के विज्ञान से कृतार्थता सुनिश्चित है। वेदादि शास्त्र सिद्ध सनातन सर्वेश्वर और सनातन धर्म का आलम्बन सर्वहितप्रद है।

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