माता मंदिर में मनाई गई देव दिवाली: सीहोर में श्रद्धालुओं ने किया दीप प्रज्जवलित, आरती के बाद कन्याओं को पूजा

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सीहोर7 मिनट पहले

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शहर के विश्रामघाट मां चौसट योगिनी मरीह माता मंदिर में आस्था और उत्साह के साथ ज्योतिषाचार्य पंडित गणेश शर्मा और मंदिर के व्यवस्थापक रोहित मेवाड़ा, मनोज दीक्षित मामा सहित अन्य श्रद्धालुओं ने देव दिवाली का पर्व मनाया। मौके पर यहां पर मौजूद श्रद्धालुओं ने सुबह दीप प्रज्जवलित करने के उपरांत आरती के पश्चात कन्याओं का पूजन किया।

इसे त्रिपुरोत्सव और त्रिपुरारी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। देव दीपावली के 15 दिन बाद कार्तिक पूर्णिमा को देव दीपावली मनाई जाती है। इस दिन देवी-देवताओं की विधिवत पूजा करने से आशीर्वाद प्राप्त होता है। उनकी कृपा बनी रहती है। इस दिन नदी में स्नान करने और दीपदान करने का भी बहुत महत्व है। मान्यता है कि इस दिन देवी-देवता धरती पर उतरते हैं। काशी में दिवाली मनाते हैं। इसलिए इस त्योहार को देव दीपावली कहा जाता है। इस दिन काशी और गंगा घाटों पर काफी रौनक रहती है और दीपदान किया जाता है।

ज्योतिषाचार्य पं. शर्मा ने बताया कि हर साल बैकुंठ चतुर्दशी कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाई जाती है। इस दिन हरिहर अर्थात् भगवान श्रीहरि विष्णु और भगवान हर शिव जी के मिलन होता है। भगवान श्रीहरि देवउठनी एकादशी पर योग निद्रा से बाहर आने के बाद कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी को भगवान शिव से मिलते हैं। भगवान शिव उन्हें दोबारा सृष्टि के संचालन का दायित्व संभालने को देते हैं और उसके बाद से मांगलिक कार्य प्रारंभ हो जाते हैं. चातुर्मास में जब भगवान विष्णु योग निद्रा में होते हैं। भगवान शिव सृष्टि के संचालक और संहारक दोनों के दायित्व को निभाते हैं।

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