भारत जोड़ो यात्रा में जमीन तलाश रहे कांग्रेस नेता: 2023 के लिए कुंदन-उत्तम सेफ, बारे हटी तो भरतकर कूदे, दरबार की साइकिल यात्रा

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खंडवा/सावन राजपूत36 मिनट पहले
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प्रतीकात्मक फोटो- राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा।
राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा का सफर निमाड़ की 5 विधानसभा सीटों से होना है। 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने इन पांच (बुरहानपुर, पंधाना, मांधाता, भीकनगांव और बड़वाह) में से चार (पंधाना छोड़कर) जीती थी। अब कांग्रेस के पास सिर्फ दो (भीकनगांव, बुरहानपुर) बची है। दो विधायकों (बड़वाह, मांधाता) ने भाजपा का दामन थाम लिया। ये दोनों विधायक निमाड़ कांग्रेस के चीफ अरुण यादव के बेहद खास थे। निमाड़ की एक अन्य नेपानगर सीट भी थी, जहां से विधायक सुमित्रा कास्डेकर (अरुण यादव की करीबी) ने भी भाजपा ज्वाइन कर ली थी।
भारत जोड़ो यात्रा में खंडवा की इन चार सीटो के दावेदार 2023 के लिए जमीन तलाशने में जुटे है
पंधाना विधानसभा – भारत जोड़ो यात्रा का पूरा सफर इसी आदिवासी आरक्षित सीट से हाेना है। कांग्रेस ने 2018 में अरुण यादव की समर्थक छाया मोरे को टिकट दिया था। लेकिन पार्टी में अंर्तकलह के कारण दिवंगत नेता नंदु बारे की बेटी रुपाली बारे ने कांग्रेस से बागी होकर निर्दलीय चुनाव लड़ लिया। ऐसे में भाजपा को फायदा हुआ। हर बार की तरह इस बार भी पंधाना में भाजपा का विरोध है। लेकिन भाजपा ने हर बार नये चेहरे को टिकट देकर यह सीट निकाली है।
2023 के लिए जमीन तलाशने में पूर्व प्रत्याशी छाया मोरे फिर से जुटी है। पंचायत चुनाव के नतीजों ने अरुण यादव को फिर ताकत दी है। ऐसे में जिला पंचायत सदस्य मनोज भरतकर ने दावेदारी शुरु कर दी है। वे पेशे से अधिवक्ता है। इनके अलावा आशाराम ठाकुर भी जगह बनाने में जुटे है।

पंधाना विधानसभा के रुपाली बारे और मनोज भरतकर
खंडवा विधानसभा – एससी आरक्षित यह सीट कांग्रेस के लिए सबसे कठिन है। 2018 में भाजपा का विरोध बढ़ने के बाद इस सीट पर हार का सामना करना पड़ा। इसकी मुख्य वजह पार्टी में अंदरुनी गुटबाजी। पार्टी प्रमुख कमलनाथ ने यहां अपने समर्थक कुंदन मालवीय को टिकट दिया। इससे पहले अरुण यादव ने अपने एक समर्थक राजकुमार कैथवास को टिकट का भरोसा दिलाकर सरकारी नौकरी से इस्तीफा दिलवा दिया था। फिर ऐनवक्त पर वो निर्दलीय चुनाव लड़े।
इधर, भाजपा में भी गुटबाजी के कारण हिंदू संगठन ने अपना प्रत्याशी उतार दिया। ऐसे में हुआ यह कि भाजपा से खफा वोट निर्दलीय हिंदू नेता को मिल गए और कांग्रेस कमजोर पड़ गई। भाजपा के देवेंद्र वर्मा ने तीसरी बार जीत दर्ज की। 2023 के लिए इस सीट पर बस संचालक व यादव के करीबी सुनिल आर्य ने हाथ-पैर मार रहे है। हालांकि, पार्टी नेताओं का कहना है कि, कुंदन मालवीय का टिकट कन्फर्म है। वे लोकप्रिय तब हुए जब 15 महीने की कांग्रेस सरकार में बगैर विधायक दंबगता से काम किया। सरकार और प्रशासन से जनता के काम करवाएं।

खंडवा विधानसभा के सुनिल आर्य और कुंदन मालवीय
मांधाता विधानसभा – सामान्य रिजर्व यह सीट 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के खाते में गई थी। लेकिन कमलनाथ सरकार गिरने के बाद विधायक नारायण पटेल ने भाजपा ज्वाइन कर ली। उपचुनाव में नये और युवा चेहरे उत्तमपालसिंह को हराकर वापस जीत दर्ज कर ली। गुर्जर-राजपूत समाज के दबदबे वाली सीट पर किसी बाहरी को आज तक मौका नहीं मिला।
पार्टी सूत्र बताते है कि, 2023 के लिए उत्तमपालसिंह का ही टिकट कन्फर्म है। वजह यह है कि 2022 में हुए लोकसभा का उपचुनाव उनके पिता राजनारायणसिंह ने लड़ा था, अरुण यादव के मैदान छोड़ने पर वे उम्मीदवार बने। उस समय राजनारायणसिंह ने यह उपचुनाव इस शर्त पर लड़ा था कि लोकसभा का चुनाव काफी बड़ा और भाजपा के आगे जीत सुनिश्चित नहीं होगी, इसलिए 2023 मांधाता से उनके बेटे उत्तमपालसिंह को टिकट मिले। यहीं वजह है कि कांग्रेस ने अपने वचन को पूरा करेगी। इस सीट पर नारायणसिंह तोमर, जितेंद्रसिंह धारकवाड़ी और राजबहादुरसिंह राठौड भी दावेदारी जता सकते है। हालांकि, इन तीनों के पास जिला पंचायत सदस्य का पद है। चुनाव से पहले संगठन में बड़ी जिम्मेदारी मिल सकती है।

मांधाता विधानसभा के नारायणसिंह तोमर व उत्तमपालसिंह पुरनी।
हरसूद विधानसभा – आदिवासी सीट आरक्षित इस सीट पर शिवराज सरकार के कद्दावर मंत्री विजयशाह यहां से 7वीं बार विधायक है। कांग्रेस दम तो भरती है लेकिन कांग्रेस का कोई बड़ा नेता इस सीट पर चुनावी रैली नहीं कर पाता है। बताया जाता है कि, यह विजयशाह का चुनावी मैनेजमेंट है। बाकी, उम्मीदवार और जनता ही कांग्रेस को जिंदा करके रखती है। हालांकि, 2018 में कांग्रेस प्रत्याशी सदाशिव भंवरिया ने पसीने छुड़वा दिए थे। 2013 के लिए सदाशिव भंवरिया के अलावा मुकेश दरबार भी जमीन तलाश रहे है।
दरबार ने राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा से प्रेरणा लेकर हरसूद क्षेत्र में साइकिल यात्रा निकाली है। दरबार के लिए माइनस पाइंट यह है कि वह विजयशाह से सीधा मुकाबला नहीं कर सकते है। दूसरा यह है कि कांग्रेस ने जिला पंचायत चुनाव में विजयशाह के बेटे दिव्यादित्य शाह के सामने टिकट भी दिया था। लेकिन दरबार को ऐतिहासिक हार मिली। ऐसे में मंत्री पुत्र की 28 हजार रिकार्ड वोट की जीत का ढिंढोरा खूब पीटा गया।

हरसूद विधानसभा के सदाशिव भंवरिया व मुकेश दरबार
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