पाकिस्तान वाली हिंगलाजा देवी का 1500 साल पुराना मंदिर: करैरा के ग्राम समोहा में स्थित है मंदिर, पढ़िए, क्यों पहले की तरह अब क्यों नहीं होती बलि

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करैराएक घंटा पहले

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शहर से लगभग 25 किलोमीटर दूर स्थित समोहा गांव में साधुओं का प्राचीन मठ है। यहां माता हिंगलाज विराजमान है। मूलरूप से हिंगलाज माता का मंदिर पाकिस्तान के बलूचिस्तान में है। लेकिन समोहा गांव प्राचीन समय से ही संतों की स्थली रहा है। यहां के एक संत बुधगिरी लगभग 15 सौ साल पहले माता को बांस की कांवर में लेकर पैदल यहां आए थे।

बताया जाता है जब हिंगलाज माता को लाया जा रहा था तब मां ने कहा था, कि यहां कांवर रख देंगे, वहीं विराजमान हो जाऊंगी। जब माता की कांवर यहां पहुंची तो उनकी स्थापना हेतु गर्भगृह के निर्माण कार्य यहां चल रहा था। इसलिए कांवर को बाहर रख दिया। निर्माण पूरा होने पर जब माता को उठाना चाहा तो वह नहीं उठीं, इसलिए माता को वहीं मंदिर के बाहर चबूतरे पर पिंडी के रूप में स्थापित किया।

बताया जाता है पहले यहां बलि प्रथा थी। प्रतीकात्मक रूप से पशु का कान काटकर रक्त से माता को तिलक किया जाता था। अंग्रेजी शासन में यह अफवाह फैलाई गई कि यहां बलि चढ़ाने के बाद साधु मांस का सेवन करते है। जब अंग्रेज यहां जांच करने आए और जैसे ही अंग्रेजी सेना ने बलि के चढ़ावे से कपड़ा हटाया तो पशु मिष्ठान में बदल गया। तब से यहां बलि लगना बंद हो गई। अब केवल मिष्ठान का प्रसाद यहां चढ़ाया जाता है। समोहा की हिंगलाज माता पर चैत्र की चौदस से परवा तक 3 दिन का मेला लगता है। आसपास के श्रद्धालु यहां जवारे चढ़ाने आते है। अभी भी यहां बुधगिरी के वंशज रामगिरी पूजा करते है।

मंदिर के पास 104 बीघा जमीन है। जिसके बारे में बताया जाता है कि मुगल काल मे जब मंदिरों को विघटित कर पुजारियों को बंदी बना लिया था। उनसे चक्की पिसवाई जा रही थी। तब यहां के संत भगवान गिरी वहां पहुंचे तो उन्होंने सभी साधुओं को चक्की चलाने से मना कर दिया। जिस चक्की को उन्होंने पैर लगाया वो चक्की अपने आप चलने लगी। चमत्कार देख मुगल शासकों ने उन्हें रिहा कर दिया व मंदिर के नाम से उन्हें जमीन भी दी।

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