भागवत कथा में श्रीकृष्ण-सुदामा चरित्र वर्णन: अंतिम दिन महाराज ने कहा- कई योनियों के बाद मिलता है मानव जीवन, इसे सत्कर्म में लगाएं

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टीकमगढ़6 घंटे पहले
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जिला मुख्यालय से 5 किमी दूर जनकपुर गांव के देवीजी मंदिर में चल रही श्रीमद भागवत कथा में गुरुवार को श्रीकृष्ण-सुदामा चरित्र के प्रसंग का वर्णन किया गया। कथा के अंतिम बुंदेलखंड पीठाधीश्वर महंत सीताराम दास महाराज ने भागवत कथा के ऊषा चरित्र, नृग चरित्र, वासुदेव नारद संवाद, परीक्षित मोक्ष की कथा सुनाकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।
सुदामा चरित्र सुनाते हुए कहा कि भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा की मित्रता निश्चल थी। सुदामा अपनी पत्नी के कहने पर श्रीकृष्ण से धन दौलत मांगने गए थे, लेकिन द्वारका पहुंचते ही वे संकोच में पड़ गए। भगवान श्री कृष्ण सब कुछ समझ गए और बिना याचना के उन्होंने गरीब सुदामा की स्थिति को सुधारा।
महंत ने कथा के माध्यम से गौ सेवा करने पर जोर दिया। सुदामा प्रसंग के दौरान मनमोहक झांकियों का चित्रण किया गया। जिसे देखकर कथा पंडाल में बैठे श्रद्धालु भाव विभोर हो। अंत में श्रीकृष्ण के दिव्य लोक पहुंचने का वर्णन किया गया और महाआरती के बाद प्रसाद का वितरण हुआ।
समाज में समानता का संदेश दिया
कथा के दौरान महंत सीताराम दास महाराज ने श्रोताओं को समानता का संदेश दिया। उन्होंने कहा कि श्रीमद भागवत कथा का सात दिनों तक श्रवण करने से जीव का उद्धार हो जाता है। इस कथा को कराने वाले भी पुण्य के भागी होते हैं। मानव जीवन कई योनियों के बाद मिलता है। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को अपना जीवन सत्कर्म में लगाना चाहिए।

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