हाथ के टिश्यु से बनाई, कैंसर से खराब हुई जीभ: MP में एम्स भोपाल के डॉक्टरों ने पहली बार तैयार की कृत्रिम जीभ

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भोपालएक घंटा पहले

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कैंसर के इलाज के लिए मरीजों को अस्पतालों के बीच भटकना पड़ता है। कैंसर पीडित को दर्द भरी जिन्दगी में यदि समय से सही इलाज मिल जाए तो थोड़ी राहत मिलती है। एम्स भोपाल देश के ऐसे अस्पतालों की लिस्ट में शामिल हो गया है जहां कैंसर से खराब हुई जीभ को डॉक्टरों ने तैयार कर मरीज को नया जीवन दिया है।

एम्स के ऑन्कोलॉजी डिपार्टमेंट के डॉक्टरों ने बताया कैंसर के कारण 35 साल के एक मरीज की जीभ पूरी तरह से खराब हो गई थी। जीभ खराब होने के कारण वे ना कुछ खा पाते थे और ना ही बोल नहीं पर रहे थे। उनके मुंह में स्लाइवा नहीं बनता था। उनकी बाकी की जिंदगी को देखते हुए डॉक्टरों ने संक्रमित जीभ के खराब हिस्से को काट कर नई जीभ बनाने का फैसला किया। हाथ के सॉफ्ट टिशू लेकर डॉक्टरों ने नई जीभ का निर्माण किया गया। करीब 11 घंटे चले जटिल ऑपरेशन के बाद मरीज को नई जिंदगी दी गई। अब श्वेतांबर पूरी तरह ठीक हैं। अब वह बोल सकते हैं और सामान्य रूप से खाना भी खा सकते हैं।

गुटखा-तंबाकू खाने से कैंसर ने गलाई जीभ

डॉक्टरों ने बताया कि गुटखा-तंबाकू के ज्यादा सेवन से मरीज को जीभ का कैंसर हो गया था। मरीज को जब इसका पता चला तो वह एम्स भोपाल पहुंचे । यहां डॉक्टरों ने जांच की तो पता चला कि कैंसर जीभ के 90 प्रतिशत क्षेत्र में फैल चुका था। मरीज की उम्र कम थी इसलिए डॉक्टरों ने जीभ को काटने का निर्णय लिया गया। लेकिन, समस्या थी कि बिना जीभ के अरुण खाने-पीने और बोलने असमर्थ हो जाता ऐसे में डॉक्टरों ने नई जीभ लगाने का निर्णय लिया गया।
बाएं हाथ के मांस से जीभ बनाई गई
एम्स के कैंसर रोग डिपार्टमेंट के डॉ. विनय कुमार ने बताया कि मरीज के बाएं हाथ की कलाई के मांस से जीभ बनाई गई। इस प्रक्रिया को फ्री फ्लैप या प्री-रेडियल पोर आर्म फ्लैप कहा जाता है। सुबह करीब आठ बजे ऑपरेशन की शुरूआत की गई जो शाम करीब सात बजे तक चला। यह जीभ बिल्कुल असली जीभ जैसी है, इससे मरीज को खाने और बोलने में किसी तरह की कोई परेशानी नहीं होगी। हालांकि स्वाद पूरी तरह नहीं आएगा। उन्होंने बताया कि सबसे पहले मरीज का संक्रमित जीभ काटकर हटाया। इसके बाद प्लास्टिक सर्जन ने उनके हाथों के मांस से नई जीभ बनाई। इंट्रा ओरल तकनीक से बिना होंठ और चेहरे की हड्डी काटे बिना नई जीभ को गर्दन की नसों से जोड़ा गया। इस दौरान जीभ की रक्त धमनियों को गर्दन की रक्त धमनियों से जोड़ा गया।
जांघ की हड्डी से भी बनती है जीभ
डॉक्टरों ने बताया कि आमतौर पर ऐसे मामले में मरीज की जीभ काटकर अलग कर दी जाती है और मरीज पूरी उम्र बिना आवाज के ही रहता है। लेकिन कम उम्र के मरीजों के लिए जीभ का पुर्ननिर्माण किया जाता है। मेडिकल फिल्ड में साल 1970 में जीभ बनाने का काम शुरू हुआ था। पहले छाती से मसल्स लेकर जीभ बनाई जाती थी। इस प्रोसेस में छाती में दिक्कत आती थी। कई बार जीभ बनाने के लिए जांघ की मांसपेशियों का उपयोग किया जाता है, लेकिन यह मांसपेशियां कठोर होती हैं जिससे जीभ को चलाना मुश्किल हो जाता है।
देश के बड़े अस्पतालों में 12 लाख का खर्च
यह सर्जरी देश के बड़े अस्पतालों में ही संभव है। दिल्ली मुंबई जैसे बड़े सेंटर में इस तरह के आॅपरेशन के लिए 10-12 लाख रूपए लिए जाते हैं। एम्स में इसके लिए मरीजों का 20 से 25 हजार रुपए ही खर्च होते हैं। यही नहीं आयुष्मान योजना के तहत यह आॅपरेशन निशुल्क होता है।आॅपरेशन में डॉ विनय कुमार के साथ डॉ. सिद्धार्थ, प्लास्टिक सर्जरी विभाग से डॉ. दीपक कृष्णा, डॉ. माधुरी, डॉ. प्रग्ना, निश्चेतना विभाग से डॉ. मौली किरण भी शामिल थे।

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