बैतूल में जलाया रावण,: जली लकड़ी बटोरने में जुटे, घर में रखने से होती है धन-धान्या की प्राप्ति, जाने क्या है मान्यता

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बैतूलएक घंटा पहले

देश मे विजयदशमी पर रावण, कुंभकर्ण और मेघनाथ के पुतलों के दहन की परंपरा है। लेकिन यह कम ही लोग जानते होंगे कि रावण के पुतले के जलने के बाद उसकी अस्थि यानी जली लकड़ी घर ले जाने की अनोखी रस्म भी कई लोग निभाते है। धन धान्य की प्राप्ति के लिए ऐसी रस्म निभाई जाती है।

बैतूल के लाल बहादुर शास्त्री स्टेडियम में पिछले 65 साल से रावण कुंभकर्ण के पुतलों का दहन श्री कृष्ण पंजाब सेवा समिति करती रही है। यहां रावण दहन कर्यक्रम देखने के लिए हजारों दर्शकों की भीड़ जुटती है। अधिकांश लोग इस दहन को देखने और यहां होने वाली आतिशबाजी को देखने पहुंचते है। इसी भीड़ में सैकड़ो ऐसे लोग भी होते है। जो इस मौके पर रावण के पुतले के दहन का बेसब्री से इन्तजार करते है। लोगो को इन्तजार होता है कि रावण के पुतले का दहन जल्द हो तो वे उसकी अस्थियां यानी पुतले की जली लकड़ियां बटोर ले।

जली लकड़ियों को बुझाकर घर ले जाते है लोग

लकड़ियां बटोरने की होड़ में लगे।

लकड़ियां बटोरने की होड़ में लगे।

पुतला दहन के बाद अस्थियां (लकड़ियां) बटोरते लोग।

पुतला दहन के बाद अस्थियां (लकड़ियां) बटोरते लोग।

रावण के पुतले के दहन के बाद लोग पुतले की जली लकड़ियां जिंसमे बांस की कीमचिया व लकड़ियां होती है को लोग जमीन पर रगड़कर बुझाते है। इन लकड़ियों को ठंडा कर उन्हें घर ले जाकर कुछ लोग पूजन कक्ष में रख देते हैं। तो कई लोग इसे घर के मुख्य हिस्से में सुरक्षित रख देते है। यही वजह है कि पुतला जलते ही दर्जनों लोग इसकी जली लकड़ी बटोरने में जुट जाते है। कोशिश रहती है कि पुतला राख बनने से पहले उसकी लकड़ी कब्जे में कर ली जाए।

यह है मान्यता

पुतला दहन के बाद लकड़ियां बटोरती गृहिणी गीता ने बताया कि रावण ज्ञानी पंडित था। शनि उनके पैर में रहते थे देवी देवता ग्रह नक्षत्र उनके वश में थे पर घमंड की वजह से उनकी मृत्यु हुई। ज्ञानी पंडित होने की वजह से और धन-धान्य से परिपूर्ण होने के कारण उनकी राख और लकड़ी को घर ले जाते हैं। ताकि सुख संपत्ति बनी रहती है। धन की कमी नहीं होती ऐसी परंपरा है। क्योंकि रावण बहुत ज्ञानी थे और भगवान के हाथों मारे गए इसलिए मान्यता है कि वह भगवान की धाम चले गए। ऐसे ही एक ग्रहणी वर्षा ने बताया कि उन्होंने बुजुर्गों से सुना है कि रावण दहन के बाद पुतले की जली लकड़ी घर पर रखने से सब कुछ अच्छा होता है।

बैतूल में सिद्धि विनायक ज्योतिष संस्थान के निदेशक पंडित संजीव शर्मा बताते हैं कि इस तरह पुतले की लकड़ी ले जाने को लोग शुभ मानते हैं। हालांकि इसकी कोई धार्मिक या लिखित मान्यता नहीं है। यह परंपरागत चला आ रहा है। शर्मा ने बताया कि आमतौर पर अस्थियों को घर लेकर नहीं जाते हैं। क्योंकि रावण भगवान राम के हाथ मारा गया था और बहुत ज्ञानी था। उसकी अस्थियां प्रतीक के रूप में ले जाई जाती हैं। उन्होंने कहा कि रावण में सिर्फ एक ही बुराई थ जो कि उसका घमंड था।

ऐसी भी मान्यता है कि घर में उसकी बुराई ना आए इसलिए भी जली हुई लकडियां घर ले जाई जाती हैं। शर्मा ने कहा कि विजयदशमी पर हम रावण को नहीं बल्कि उस बुराई को जलाते हैं जो मनुष्य के बीच होती है रावण से प्रतीक मात्र है।

दीमक, कीटो, प्रेतात्माओ को भगाने अस्थियां का सहारा

वीरेंद्र सिंह राजपूत बताते हैं कि रावण बुराई का प्रतीक है। इसकी लकड़ियां जो अस्थि स्वरूप होती हैं। उसे घर के दरवाजे पर रख दिया जाता है। इससे खराबी बलाए अंदर प्रवेश नहीं करती। इसे सामने के दरवाजे पर रख दिया जाता है। जिससे नकारात्मक आत्मा घर में प्रवेश नहीं करती । ग्रहणी आशा चौधरी बताती हैं कि इससे घर में कॉकरोच नहीं होते। दीमक नहीं लगती। लकड़ी को ले जाकर वह बिस्तर के नीचे रख देते हैं।जिससे पूरे साल कीट पतंगे घर में प्रवेश नहीं करते।

सुरेश सोनी बताते हैं कि लकड़ी को ले जाने पर घर में रोग और कीटाणु नहीं होते। उनके पूर्वजों से यह परंपरा चली आ रही है । सुभाष आहूजा बताते हैं कि शुरू से ही ब्राह्मणों की पूजा की जाती है ।यह पुरातन काल से चली आ रही है। दुनिया में दो ही व्यक्ति है जो किसी के मस्तिष्क की रेखाएं पढ़ सकते हैं ।पहला ब्रह्मा जी और दूसरा रावण था। जो प्रकांड विद्वान था । उसकी भस्म मस्तक पर धारण की जाती है। गृहणी नीलम दुबे बताती है की रावण ने बुराई को अच्छाई की जीत में परिवर्तित किया। इसलिए उसकी अस्थि पूजन कक्ष में रखते है। इससे बरकत होती है।

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