Chhattisgarh

प्रेमचंद साहित्य की अमरत – डॉ.सुधीर शर्मा

हिंदी साहित्य के आकाश में अनेक नक्षत्र चमके, परंतु मुंशी प्रेमचंद वह ध्रुवतारा हैं जिनकी रोशनी आज भी समान रूप से चमक रही है। उनके लेखन में जीवन की सच्चाई, समाज का यथार्थ और मानवीय संवेदनाओं का गहन चित्रण है। यही कारण है कि समय, भाषा और परिवेश बदलने के बावजूद उनका साहित्य अमर बना हुआ है।

प्रेमचंद का साहित्य केवल कहानी या उपन्यास तक सीमित नहीं है, बल्कि यह युग की आत्मा का दर्पण है। उन्होंने अपनी कलम से समाज के उस वर्ग को आवाज़ दी, जो सदियों से शोषण और अन्याय का शिकार रहा। उनकी कहानियों में दुखियारे किसानों की कराह, मजदूरों का पसीना, स्त्रियों की विवशता और बाल-मन की मासूमियत बखूबी झलकती है। ‘गोदान’, ‘गबन’, ‘रंगभूमि’, ‘निर्मला’ जैसे उपन्यास और ‘पूस की रात’, ‘कफ़न’, ‘सवा सेर गेहूं’ जैसी कहानियाँ आज भी पढ़ने वाले के हृदय में करुणा और सोच का संचार करती हैं।

प्रेमचंद की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि उन्होंने साहित्य को समाज सुधार का औजार बनाया। वे मानते थे कि साहित्य का उद्देश्य केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि जीवन का मार्गदर्शन और परिवर्तन करना है। उनके पात्र काल्पनिक होते हुए भी इतने सजीव हैं कि वे पाठक के जीवन का हिस्सा बन जाते हैं। ‘होरी’, ‘हिरिया’, ‘हमीद’, ‘झुनिया’ जैसे पात्र सदियों बाद भी जीवित प्रतीत होते हैं। यही साहित्य की अमरता का प्रमाण है।

उनके लेखन की भाषा सहज, सरल और लोकजीवन की महक से भरी हुई है। इसमें न कृत्रिमता है, न दिखावा। किसान और मजदूर की बोली में कही गई बात सीधे हृदय को छू जाती है। उन्होंने उस समय के सामाजिक ढांचे की कुरीतियों – जाति प्रथा, दहेज, बाल विवाह, महिलाओं की गुलामी – पर ऐसी चोट की कि आज भी उनकी प्रासंगिकता कम नहीं हुई है।

प्रेमचंद का साहित्य अमर है क्योंकि उसमें मानवीय भावनाओं का शाश्वत स्वर है। समय बदलता रहा, तकनीक आगे बढ़ती रही, परंतु भूख, गरीबी, अन्याय, संवेदनशीलता और प्रेम जैसे भाव आज भी मनुष्य के जीवन में उतने ही प्रबल हैं जितने प्रेमचंद के युग में थे। उनका साहित्य इन सार्वभौमिक भावनाओं का अमर दस्तावेज है।

आज के युग में जब साहित्य व्यावसायिकता और तात्कालिक लोकप्रियता के दबाव में है, प्रेमचंद का साहित्य हमें याद दिलाता है कि साहित्य की असली शक्ति उसकी सत्यता, संवेदना और जनकल्याणकारी दृष्टि में है। प्रेमचंद की कहानियाँ और उपन्यास केवल इतिहास नहीं, वर्तमान की सच्चाई और भविष्य की दिशा है प्रेमचंद का साहित्य समय की सीमाओं को पार कर आज भी जीवंत है। उनकी रचनाएँ न केवल पढ़ी जाती हैं, बल्कि महसूस की जाती हैं, जी ली जाती हैं। यही उनकी अमरता का सबसे बड़ा प्रमाण है। जब तक समाज में न्याय, करुणा और मानवीय संवेदना की आवश्यकता रहेगी, प्रेमचंद का साहित्य हमारे मार्ग को आलोकित करता रहेगा।

– डॉ सुधीर शर्मा, अध्यक्ष, हिंदी एवं पत्रकारिता विभाग, कल्याण स्नातकोत्तर महाविद्यालय भिलाई छत्तीसगढ़

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