प्रगति से प्रकृति पथ यात्रा: डॉ. जोशी ने कहा- 14 सालों में चंबल की दशा और दिशा बदली

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ग्वालियरकुछ ही क्षण पहले

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चंबल नदी पर स्थानीय लोगों से चर्चा करते डॉ. अनिल प्रकाश जोशी। - Dainik Bhaskar

चंबल नदी पर स्थानीय लोगों से चर्चा करते डॉ. अनिल प्रकाश जोशी।

  • मुंबई से धौलपुर तक 1426 किमी की दूरी तय कर यात्रियों ने चंबल का बीहड़ देखा

प्रगति से प्रकृति पथ यात्रा ने शुक्रवार को ग्वालियर से धौलपुर तक 64 किलोमीटर की दूरी तय की। यात्रा ने अब तक मुंबई में राजभवन से लेकर धौलपुर तक कुल 1426 किलोमीटर की दूरी तय कर ली है। यात्रियों ने शुक्रवार को चंबल के बीहड़ को देखा और लोगों से चर्चा की।

इस दौरान डॉ. अनिल प्रकाश जोशी ने कहा कि यह बात स्वीकारनी होगी कि अब ये वो चंबल नहीं है जिसकी कभी दहशत थी, आज ये इलाका बिल्डिंग, मॉल आदि से भरा हुआ है। उन्होंने 2008 में की गई ‘कन्याकुमारी से कश्मीर’ यात्रा का जिक्र करते हुए कहा कि तब भी यात्रा इसी बीहड़ से गुजरी थी लेकिन तब यहां ना रहने की जगह थी और ना ही खाने की। इन 14 सालों में मुरैना ने अद्भुत प्रगति की है।

जो मुरैना डाकुओं को लेकर चर्चित रहा, आज इसकी दिशा और दशा दोनों ही बदल गई है। उन्होंने बताया कि चंबल का वो बीहड़ आज कुछ अलग दर्जे में है और इसे शायद राष्ट्र की मुख्य धारा का हिस्सा भी मान लेना चाहिए, अब शायद ये वो नहीं है जो कई तरह की दस्यु कहानियों से भरा पड़ा था।

चंबल-अंचल और उसकी सबसे महत्वपूर्ण जीवन रेखा चंबल नदी के भी दर्शन किए। ये नदी एक धीमे प्रवाह से और स्थिर गति से बह रही है और सबसे अद्भुत बात तो यह है कि इस नदी का पानी उतना ही निर्मल है, जितना हमें शुरुआत में गंगा के पानी में देखने को मिलता है।

सत्य यह भी है कि यह नदी इस बीहड़ और चंबल के लिए गंगा है। यह नदी इस क्षेत्र में जहां सिंचाई का सबसे बड़ा स्त्रोत है तो वहीं इस नदी से जुड़ी कई घटनाएं भी हैं जिन्होंने आज इस क्षेत्र को बेहतर बनाने में एक बड़ी भूमिका निभाई है।

यात्री दल जिस चंबल का बड़ी बेसब्री से इंतजार कर रहे थे उन्हें इसे देख कर बड़ा सुकून मिला। सभी ने यहां के एक गांव में बैठकर भोजन ग्रहण किया और लोगों से बातचीत के बाद उनकी बोली व भाषा सुनकर उत्साहित महूसस किया। यहां आज भी बाज़रा, सरसों की खेती की जा रही है।

मुरैना से जुड़ा धौलपुर जो अपने आप में एक बड़ी मंडी भी है, उत्तरप्रदेश व मध्यप्रदेश से जुड़ा एक छोटा सा शहरीनुमा कस्बा भी है। यह पूरा क्षेत्र आलू उत्पाद और गेहूं की खेती के लिए भी जाना जाता है। ये क्षेत्र भी बदलाव की ओर है क्योंकि पिछले 15 सालों में धौलपुर में भी किसी न किसी विकास का बिगुल बजा है और ऐसे कई परिवर्तन भी दिखाई दिए हैं जो पहली बार 2008 में यात्रियों ने देखे थे।

यात्रा में लोगों से बातचीत के दौरान यह भी सामने आया कि क्षेत्र में प्रगति तो हो रही है लेकिन दूसरी तरफ प्रकृति का बदलता व्यवहार उनको आहत किए हुए है और उसके लिए वो अपने आप को भी दोषी मानते हैं। यात्रा में महत्वपूर्ण बात यह रही कि जब-जब किसी भी स्तर पर बात की गई चाहे वो व्यापारी वर्ग से की गई हो या किसी भी तंत्र के भागीदारों से सभी ने यही बात स्वीकारी है कि चीजें बदली हैं।

यात्रा में लोगों से बातचीत के दौरान यह भी सामने आया कि क्षेत्र में प्रगति तो हो रही है लेकिन दूसरी तरफ प्रकृति का बदलता व्यवहार उनको आहत किए हुए है।

ख़ासतौर से प्रकृति में बहुत बड़े बदलाव आ रहे हैं और उसके लिए कुछ लोग अपने आपको दोषी मान रहे हैं। हमारा मानना है कि जब इस तरह के दायित्व और सामूहिक समस्या एक साथ जुड़ती है तब शायद बदलाव की तैयारी होती है।

आज हमारे लिए यही सबसे बड़ी शिक्षा थी और यात्रा का मूल उद्देश्य यही था कि सब लोग आपस में मिलकर इस पर चिंता जाहिर करें। आलोचना या योजनाओं के प्रति अविश्वास करने का समय नहीं है बल्कि प्रकृति सबसे समान व्यवहार करती है इसलिए उसके प्रति समान चिंता भी होनी चाहिए।

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