एक रात में 27 लोगों के कत्ल की कहानी: पुलिस ड्रेस पहनकर पूछा- किसे चाहिए बंदूक का लाइसेंस? फिर हाथ बांधे और मार दी गोलियां

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श्योपुर10 मिनट पहलेलेखक: योगेश पाण्डे
हाल ही में हुई डकैत गुड्डा गुर्जर की गिरफ्तारी के बाद एक बार फिर डकैतों की चर्चा छिड़ गई है। 70 और 80 के दशक में चंबल के बीहड़ों में डकैत रमेश सिंह सिकरवार के नाम का खौफ हुआ करता था। उसके खिलाफ 70 से ज्यादा हत्या के केस दर्ज थे। मुखबिरी के कारण सिकरवार का एक आदमी मारा गया था, जिसका बदला डकैत ने उसी रात मुखबिरी करने वाले 27 लोगों की हत्या कर लिया था।
सीधे पूर्व डकैत रमेश सिकरवार से जानिए, कैसे हुआ था एक ही रात में 27 मारवाड़ियों का कत्ल। रमेश इन दिनों श्योपुर जिले के कराहल के पास लहरौनी गांव में रहते हैं। 1984 में इन्होंने सरेंडर किया था। 10 साल जेल में रहने के बाद बाहर आए। जानिए उस दौर की सबसे खौफनाक कहानी…

1983 में हुए हत्याकांड को जिसने भी सुना, उसकी रूह कांप गई थी। रमेश सिकरवार ने अपने आदमी की मौत का बदला लेने के लिए मुखबिरी करने वाले लोगों को मार दिया था।
लड़कियों को उठाने वालों को मैंने गोली मार दी
रमेश ने बताया… 1983 की बात है, नदी के पास हमारा कैंप लगा था। राजस्थान के मारवाड़ी लोग हमारे पास आए, बोले- हम गाय चराते हैं। मैंने पूछा- तुम्हारा डेरा कहां हैं? वो बोले- नीचे है। मैं गया और उस समय 15-16 हजार रुपए उनकी बहन-बेटियों को देकर उनके पैर छूकर आया। मैंने कहा कि यदि तुम्हारी बहन-बेटियों की तरफ कोई उंगली उठाएगा, तो मैं उसकी उंगलियां काट दूंगा।
जावद गांव के पास से दो बागी (डकैत) एक लड़की को उठाकर ले गए थे, मैंने उन दोनों बागियों को गोली मार दी थी। मैंने मारवाड़ियों को बताया कि तुम्हारी बेटियों को उठाने वालों को मैंने गोली मार दी है। मैंने कहा कि अगर मेरा भाई अन्याय करेगा, तो मैं उसके विरोध में खड़ा रहूंगा।
मारवाड़ी से जो दूध ले जाता था, उसका नाम था शिव सिंह… वो बोला- आपको जो सामान की जरूरत होगी, मैं लाकर दूंगा। जून का महीना था। मैंने अपने साथी से कहा कि इसे 50 रुपए दे दो। 4-6 क्विंटल आटा और दो तीन क्विंटल दाल भिजवा देना। सरसों का तेल ला देना। 20 जोड़ी बरसाती जूता भी लाकर देना, जिसमें 6 नंबर, 7 नंबर और 8 नंबर के जूते होना चाहिए। लड़का बोला सिगरेट… मैंने कहा कि सिगरेट मत लाना, तुम बस गृहस्थी का सामान लाना। वो 50 रुपए अपने पास रखकर सीधे थाने चला गया। उसने हमसे गद्दारी की। उसने पुलिस को बताया कि सामान लेने 4-5 आदमी आएंगे, लेकिन सामान लेने हमारा कोई आदमी नहीं पहुंचा। हमारा एक तरीका था, हम वादा तो करते थे, लेकिन ठीक समय पर कभी नहीं पहुंचते थे।

एक डकैत पेड़ पर चढ़कर चौकीदारी कर रहा था, बाकी सो रहे थे। उसने देखा कि पुलिस आ रही है, तो वह हड़बड़ा गया। उसी की मौत हुई थी, जिसका बदला रमेश सिकरवार ने लिया था।
लाल पगड़ी वाले तुमने हमें धोखा दिया…
जब हमारे आदमी तय जगह पर सामान लेने नहीं पहुंचे, तो वो लड़का पुलिस वालों को हमारे कैंप पर लेकर आया। उस दौरान मैं तेंदूपत्ता का चंदा लेने ठेकेदार से मिलने गया था। मैंने बड़े भाई को सतर्क कर दिया था कि तुम यहां मत ठहरना 10 किलोमीटर दूर चले जाना। यहां तक कि इस जगह पर खाना भी मत बनाना, लेकिन वे नहीं माने। उन्होंने खाना बनाया, खाया और मुझे छोड़कर सब सोने चले गए। हमारे में से एक जाटव लड़का था, वो चौकीदारी के हिसाब से पेड़ पर चढ़कर सो गया, लेकिन उसे नींद नहीं आई।
कुछ देर बाद मारवाड़ी वहां पुलिस के साथ आता दिखा, तो वो घबरा गया। उसके हाथ से बंदूक गिर गई और गिरकर अपने आप फायर हो गई। आवाज सुनकर पुलिस ने उसे मार गिराया। उसने मरने से पहले आवाज दी, लाल पगड़ी वालों तुमने हमें धोखा दिया, जिस थाली में खाया, उसी में छेद किया। गोली की आवाज सुनकर मैं भी लोकेशन पर पहुंचा। पुलिस ने मेरी तरफ भी गोलियां चलाईं, लेकिन मैं बाकी साथियों को सुरक्षित लेकर भागने में कामयाब हो गया।

पूर्व डकैत ने बताया कि हमारे साथ हुए धोखे का बदला उसी दिन लेने के लिए पूरा गिरोह नकली पुलिस बनकर असली पुलिस की गाड़ी से अपने ठिकाने पर पहुंचा था।
पुलिस वाले से कहा, हम डाकू हैं और गाड़ी हम चलाएंगे
पूर्व डकैत के मुताबिक- पुलिस के जाने के बाद मैंने तय किया कि हम पुलिस से नहीं भिड़ेंगे और श्योपुर जाएंगे। पुलिस वहीं हमारे साथी को ले गई थी। वहां बाजार था। हम सिविल कपड़ों में ट्रैक्टर पर बैठकर राइफल लेकर वहां पहुंचे। वहां हमने अपने एक साथी को थाने भेजा। वो खबर लाया कि हमारा साथी हल्के मर गया है, वहां लाल पगड़ी वालों की भीड़ लगी है। फिर हमने तय किया और पुलिस की वर्दी की व्यवस्था की और उसे पहनकर आगे बढ़े। सबको पुलिस वाली थ्री नॉट थ्री रायफल दी। उस दौरान श्योपुर से शिवपुरी पुलिस की गाड़ी जा रही थी। हमने उसे रोका। ड्राइवर अकेला था, उसने वर्दी देखकर सोचा कि हम भी पुलिसवाले हैं। हमने उससे कहा कि गोरस जाना है। गोरस आने पर पुलिस ड्राइवर ने कहा आप उतर जाइए गोरस आ गया है। तब मैंने उसे सच्चाई बताई कि हम डाकू हैं और उतरेंगे नहीं, बल्कि गाड़ी हम ही चलाएंगे। फिर हमारे साथी तोमर ने स्टेयरिंग थाम ली।

रमेश ने बताया कि हमने पहले मुखबिरी करने वालों को बंदूक के लाइसेंस देने का लालच दिया। जब उन्होंने कबूल लिया कि उन्होंने ही पुलिस को खबर दी थी, इसके बाद उनके हाथ बांधकर गोलियों से भून दिया।
जिसे बंदूक का लाइसेंस चाहिए, वो सच-सच बताए
रमेश ने आगे कहा- हम रात 8 बजे मारवाड़ियों के गांव पहुंचे। हमारे साथियों के हाथ में रजिस्टर और पेन थे। वहां जाकर वो कहने लगे कि हमें एसपी साहब ने भेजा है। जिसको भी बंदूक का लाइसेंस चाहिए, वो सामने आ जाए। मैं गाड़ी में ही बैठा था, बाहर नहीं आया, ताकि किसी को हमारी सच्चाई पता नहीं चले। हमारे लोगों ने उनसे पूछा सच-सच बताना कि जब गोलियां चली पुलिस की मदद कौन-कौन कर रहा था, मौके पर कौन-कौन था? तब वे लाल पगड़ी वाले राजस्थानी जोर-जोर से लाइसेंस के चक्कर में कहने लगे- मैं पुलिस के साथ गया था। मैंने यह सूचना दी। मैंने पुलिस की यह मदद की…।
गद्दारों तुमने हमसे फरेब किया
जब सारी बात साफ हो गई तो मैं गाड़ी से बाहर निकला। मैंने राज खोला और कहा कि क्यों रे गद्दारों, मैं तुम्हारी बहन-बेटियों को अपनी बहन-बेटी मान रहा था, तुमने हमारे साथ फरेब किया। फिर वो गिड़गिड़ाने लगे कि गलती हो गई। मैंने सबके हाथ बंधवा दिए। 16 आदमियों को एक साथ गोली मार दी। फिर 5 को एक जगह गोली मारी। फिर सुबह होने तक 6 को और मारा डाला। इसके बाद कोई हमारे खिलाफ मुखबिरी नहीं करता था। लोगों को पता हो गया कि यदि किसी ने हमारी मुखबिरी की, तो वो मारा जाएगा। पुलिस ने किसी को प्रलोभन भी दिया तो वो सीधे कहते थे कि मारवाड़ियों का अंजाम नहीं देखा क्या आपने।

रमेश सिकरवार के मुताबिक चाचा के संपत्ति हड़पने की वजह से उन्होंने पिता के कहने पर अपने चाचा की हत्या कर दी थी। इसके बाद वह कभी घर नहीं लौटे थे।
पिता ने कहा था कि चाचा को निपटा दे और मैं निकल पड़ा…
6 फीट की लंबी कदकाठी। आज भी कंधे पर कारतूसों से लदा पट्टा और हाथों में दोनाली बंदूक लिए सिकरवार बताते हैं कि बात 1975 की है, चाचा से झगड़ा हो गया था। 60-70 भैसें थीं, 250 गायें थीं। 400 बीघा जमीन थी। चाचा ने सबकुछ हड़प लिया था। हमारे करीबी रिश्तेदारों ने उनसे न्यायोचित बंटवारे के लिए कहा, लेकिन जमीन तो दूर की बात वो गाय-भैंस में भी हिस्सा नहीं देना चाहते थे। वे बेईमान हो गए थे। गुस्से में मेरे पिता शिवपुरी जिले के एक गांव में जाकर बस गए। तब मैं 7वीं में पढ़ता था। मैं चाचा के पास आया कि आपने 20 साल से हमें कुछ नहीं दिया। बहन की शादी करनी है, अब आप कुछ दीजिए। उन्होंने मना कर दिया। मैं जबरदस्ती 10-12 घी के टीन बैलगाड़ी में रखकर ले गया।
इसके बाद उन्होंने कराहल थाने में मेरी शिकायत डाल दी। हाकम सिंह यादव दरोगा थे। उन्होंने केस लगा दिया। मैंने उस समय दरोगा को 400 रुपए दिए कि मुझे गिरफ्तार मत करो। मेरी बहन की शादी है। शादी के बाद मेरे पिता ने मुझसे कहा कि बेटा तू वहां क्यों गया? वो जब अपने भाई का नहीं हुआ तो तुम्हारा क्या होगा? इससे अच्छा तुम उसको निपटा दो। पिता बोले- मेरा आशीर्वाद तेरे साथ है, जा उसको मार दे, जिसको मां बाप का आशीर्वाद मिल जाए उसको किस बात का डर है। मेरे पास टोपीदार बंदूक थी। दो-तीन लड़कों के साथ चाचा के पास आया। इसी गांव में चाचा को मार दिया।

सिकरवार का कहना है कि पुलिस के झूठे मुकदमों और पटवारी के जमीनी मामलों में बेईमानी के कारण लोग बंदूक उठा लेते हैं। यह दोनों ठीक से काम करें तो कोई भी कभी डकैत नहीं बनेगा।
फिर लोग जुड़ते गए और 5 से हम 32 हो गए
हत्या का केस कायम हो गया। फिर सोच लिया कि अब हाजिर नहीं होना है। एक मर्डर कर लिया था, तो डर भी कम हो गया था। एक साल तक मैं जंगल में अकेला रहा। फिर पास के गांव के मर्डर करने वाले 4 और आदमी मेरे साथ आ गए। हमारी 5 लोगों की गैंग बन गई। धीरे-धीरे जो भी मर्डर करता, वो हमारी गैंग में शामिल होता गया। इस तरह हमारे पास 32 लोगों की गैंग हो गई और हमारा गिरोह बन गया।
सिकरवार बताते हैं कि जब किसी की सुनवाई नहीं होती तो वह इंसान मजबूरी में डकैत बनता है। खुशी से कोई बंदूक नहीं उठाता। अगर पटवारी और पुलिस चाहे तो कभी कोई डकैत ना बने, यह दोनों ठीक से काम करें तो समस्या ही ना हो। कोई चिड़िया भी अपना घर छोड़कर नहीं जाना चाहती।

ऐसे करते थे अपहरण सिकरवार के मुताबिक- हमें मुखबिरों से साहूकारों की खबर मिलती थी कि ये 10 रुपए सैकड़ा पर ब्याज दे रहा है। हमको पता होता था कि ये पैसे वाला है। इसने गरीबों से बहुत पैसा लूटा है। फिर हम उसकी पकड़ (किडनैप) करते थे। पकड़ की रकम के 4 हिस्से होते थे। कुछ प्रशासन को, कुछ गरीबों को, कुछ हथियारों पर और कुछ बागियों के खाने पीने में। यदि हमारी किसी ने मदद की और वो आदमी जेल चला गया तो उसके घर के खर्चे के लिए भरपूर पैसा दिया जाता था। उसकी जमानत का पैसा भी दिया जाता था।

गुड्डा गुर्जर डकैत नहीं, चोर है
गुड्डा गुर्जर को ढूंढने में पुलिस ने मुझसे कोई मदद नहीं मांगी। वो जंगलों में रहता नहीं है। रिश्तेदारों के घर सोता है। कभी इसके घर में सो गए, कभी उसके घर में। पुलिस जंगलों में सर्च करती थी। हम अपने समय में किसी गांव में नहीं जाते थे, न ही किसी के घर में सोते थे। अब तो लोग पुलिस से बचने के लिए घर में ही सो रहे हैं। घर में खाना खा रहे हैं। ये डकैत नहीं, चोर हैं। बागी और महात्मा वो होते हैं, जो जंगलों में तपस्या करते हैं।
बागी हुआ, तब शादी हो चुकी थी, बच्चे नहीं थे
घर में तीन लड़के, तीन लड़कियां हैं। दो बेटे और दो बेटियों की शादी हो गई है। 200 बीघा जमीन है। एक बेटा और एक बेटी की शादी बाकी है। मेरे घर में शादी करने के लिए बहुत लोग आते हैं। दो लड़कों की शादी हुई, तो 10-10 लाख रुपए और गाड़ी भी मिली थी। जब मैं बागी हुआ तो मेरी शादी हो गई थी, लेकिन बच्चे नहीं थे। मेरी पत्नी उज्जैन में अपने मायके में रही। 84 में मेरे सरेंडर होने के बाद 86 में वो हमारे घर आई।
भाजपा में आया तो झूठे आरोप लगे
नेता न्याय करेगा, तो कभी हारेगा नहीं। नेता बनने के लिए घर-घर घूमेंगे और जीतने के बाद कोई नहीं पूछता। मैं भाजपा में आया तो मेरे ऊपर झूठा केस लगा। सुब्बाराव जी से बातचीत करके मैं शिवराज जी से मिला। शिवराज जी ने कहा था कि आपके साथ न्याय होगा और ऐसा ही हुआ।
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