Chhattisgarh

कोरबा जिले के कटघोरा में मध्यान्ह भोजन योजना पर उठे सवाल, बच्चों को परोसा जा रहा गुणवत्ताहीन खाना

कोरबा। छत्तीसगढ़ सरकार बच्चों के पोषण और स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए शालाओं में मध्यान्ह भोजन और नाश्ता योजना संचालित करती है। इस योजना का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि स्कूल आने वाले बच्चों को पौष्टिक भोजन मिले और वे कुपोषण से दूर रहें। लेकिन कटघोरा क्षेत्र के मोहलाइनभाटा स्थित शासकीय माध्यमिक शाला में इस योजना की जमीनी हकीकत बिल्कुल उलट नजर आ रही है। यहाँ एकता महिला स्व-सहायता समूह द्वारा संचालित मध्यान्ह भोजन और नाश्ता योजना में गंभीर लापरवाही और अनियमितताओं की शिकायतें सामने आई हैं।

स्थानीय अभिभावकों और ग्रामीणों ने बताया कि समूह की अध्यक्ष मोनेश साहू और सचिव आरती राज के नेतृत्व में चल रही व्यवस्था में भोजन की गुणवत्ता पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा। तस्वीरों और प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक दाल में पानी अधिक और दाल की मात्रा बेहद कम होती है। वहीं, नाश्ते में शासन द्वारा तय किए गए मेन्यू का पालन भी नहीं हो रहा। जबकि शासन की ओर से प्रति बच्चा राशि निर्धारित है और आवश्यक राशन की उपलब्धता भी सुनिश्चित की जाती है। इसके बावजूद बच्चों के हिस्से का पौष्टिक भोजन घटिया गुणवत्ता में परोसा जाना गहरी लापरवाही का प्रमाण है।

सबसे बड़ी विसंगति यह है कि स्थानीय स्तर पर नियमों के अनुसार महिला स्व-सहायता समूह का चयन बीईओ कार्यालय की निगरानी में होना चाहिए था, किंतु जानकारी के अनुसार इस समूह ने सीधे जिला कार्यालय से सहमति बनाकर कार्य प्रारंभ किया। इससे न केवल प्रक्रिया पर सवाल खड़े हो रहे हैं, बल्कि अनियमित लाभ उठाने की आशंका भी गहराई है।

स्कूल प्रबंधन समिति की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं। अब तक समिति ने इस मामले में कोई ठोस कदम नहीं उठाया है। इससे यह साफ झलकता है कि न तो समूह और न ही स्कूल प्रशासन बच्चों के हितों को लेकर गंभीर है। यह स्थिति शासन की मंशा और योजना की गरिमा दोनों पर प्रश्नचिह्न लगाती है।

विशेषज्ञों का कहना है कि बच्चों को गुणवत्ताहीन भोजन देना उनके स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ है। यह शिक्षा के अधिकार और पोषण सुरक्षा जैसे महत्वपूर्ण कदमों की अवहेलना भी है। ग्रामीणों ने मांग की है कि जिला प्रशासन तत्काल जांच कर दोषियों पर कार्यवाही सुनिश्चित करे, ताकि बच्चों को उनका हक और गुणवत्तापूर्ण भोजन मिल सके।

स्थानीय लोगों का कहना है कि शासन की योजनाएं कागजों में बेहतर दिखाई देती हैं, लेकिन जब तक जिम्मेदार अधिकारी और समितियां सक्रिय भूमिका नहीं निभाएंगी, तब तक बच्चों के हिस्से का भोजन बीच में ही कटता रहेगा। कटघोरा का यह मामला एक उदाहरण है, जो बताता है कि जमीनी स्तर पर निगरानी और पारदर्शिता के बिना कोई भी योजना सफल नहीं हो सकती।

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