मेडिकल में दो छात्राओं को प्रवेश न देने का मामला: जब पेपर हिंदी-अंग्रेजी दो भाषा में छप रहे, फिर प्रवेश क्यों नहीं

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इंदौर25 मिनट पहले
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मध्यप्रदेश में इसी साल मेडिकल की पढ़ाई हिंदी में करने की शुरुआत हुई, लेकिन नेशनल मेडिकल कमीशन (एनएमसी) के पुराने नियम के चलते दो छात्राओं को मेडिकल में प्रवेश सिर्फ इसलिए नहीं मिला कि उन्होंने 11वीं व 12वीं में अंग्रेजी को वैकल्पिक विषय नहीं चुना था। विभागीय मंत्री का कहना है कि एनएमसी को इस नियम में संशोधन के लिए पत्र लिखा है।
विभागीय अधिकारी भी मान रहे हैं कि किसी भी संस्थान में प्रवेश का आधार मेरिट होता है, ऐसे में किसी को भाषायी आधार पर कैसे प्रवेश से वंचित किया जा सकता है। यहां तक कि नेशनल टेस्टिंग एजेंसी भी हर राज्य की भाषा के मुताबिक प्रश्न पत्र छपवाती है। मप्र में हिंदी व अंग्रेजी दो भाषाओं में पेपर छपता है, फिर अंग्रेजी नहीं होने पर प्रवेश से इनकार करना हैरान करने वाला है।
संभवत: अगले साल से संशोधन होगा : मंत्री
चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग ने कहा हमने एनएमसी को पत्र लिखा है। उन्होंने नियमों में संशोधन के बारे में बताया है। संभवत: अगले वर्ष से अंग्रेजी विषय की बाध्यता को हटाया जाएगा। एनएमसी एक्ट के मुताबिक एडमिशन होते हैं। यह राष्ट्रीय पॉलिसी है। इसलिए जरूरी है कि राष्ट्रीय स्तर पर इन नियमों में संशोधन किया जाए।
पूर्व राजभाषा अधिकारी हरेराम बाजपेयी ने कहा राजभाषा अधिनियम के तहत केंद्र व राज्य सरकार के कार्यालयों में हिंदी भाषा का उपयोग करना अनिवार्य है, लेकिन यदि किसी संस्थान ने अपने नियमों में अंग्रेजी की बाध्यता डाल रखी है तो पहले उसमें संशोधन जरूरी है। नीट के पहले प्री मेडिकल टेस्ट होता था। इसमें अंग्रेजी का अलग पेपर होता था। कई टॉपर्स को इसलिए बाहर होना पड़ा, क्योंकि वे अंग्रेजी में पास नहीं हो पाए थे।
भाषा को लेकर सीबीएसई भी बदल चुका है नियम
सेंट्रल बोर्ड ऑफ सेकंडरी एजुकेशन ने भी 9वीं से 12वीं तक के छात्रों को विकल्प देने का संशोधन किया है। इस साल से यह प्रावधान लागू किया है। इस नियम के तहत कोई भी छात्र हिंदी व अंग्रेजी के बदले क्षेत्रीय भाषा पढ़ सकता है। इन दोनों ही भाषाओं को पढ़ने की बाध्यता समाप्त कर दी गई है। 9वीं व 10वीं में तीन मुख्य विषय गणित, विज्ञान और सामाजिक विज्ञान के अलावा हिंदी और अंग्रेजी पढ़ना अनिवार्य था।
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