नहाय-खाय के साथ चार दिवसीय छठ महापर्व का शुभारंभ आज से

अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट
रायपुर – प्रसिद्ध सूर्य देव की आराधना तथा संतान के सुखी जीवन की कामना के लिये समर्पित छठ पूजा हर वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को होती है। छठ के व्रत में मुख्य रूप से सूर्य की उपासना और छठी मईया की पूजा करने का विधान है। मान्यता है कि छठ का व्रत करने से छठी मईया प्रसन्न होकर संतान को दीर्घायु का वरदान देती हैं। इसलिये संतान प्राप्ति और संतान की लंबी आयु अच्छे स्वस्थ जीवन व पारिवारिक सुख समृद्धि की कामना के लिये छठ का व्रत रखा जाता है।
छठी मईया के संबंध में विस्तृत जानकारी देते हुये अरविन्द तिवारी ने बताया कि छठ के इस महापर्व में छठी मईया और भगवान सूर्यदेव की पूजा की जाती है। पौराणिक कथा के अनुसार छठी मईया को ब्रह्मदेव की पुत्री और भगवान सूर्य की बहन कहा जाता है। छठी मईया को संतान प्राप्ति की देवी और सूर्य देव को शरीर का स्वामी या देवता कहा जाता है। श्रुति स्मृति पुराणों के अनुसार जब ब्रह्म देव सृष्टि की रचना कर रहे थे तब उन्होंने खुद को दो भागों में विभाजित कर लिया था , एक भाग पुरुष और दूसरा प्रकृति। जिसके बाद प्रकृति ने भी खुद को छह भागों में विभाजित कर लिया , जिसमें से एक देवी मां हैं।
आपको बता दें कि छठी मईया देवी मां का छठा अंश हैं , इसलिये उन्हें छठी मईया या प्रकृति की देवी के नाम से जाना जाता है। उन्होंने बताया हालांकि बिहार , पूर्वी उत्तरप्रदेश तथा झारखंड में छठ पूजा का विशेष महत्व है लेकिन दिल्ली , मुम्बई समेत कई बड़े शहरों में भी हर्षोल्लास के साथ इसका भव्य आयोजन किया जाता है। अब यह पर्व एक संस्कृति बन चुका है और देश से लेकर विदेशों तक में छठ के प्रति आस्था देखने को मिलती है। इस व्रत को छठ पूजा , सूर्य षष्ठी पूजा , डाला छठ के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार सतयुग में भगवान श्रीराम , द्वापर में दानवीर कर्ण और पांडवों की पत्नी द्रौपदी ने भी सूर्य की उपासना की थी। छठ पूर्व में सूर्य की आराधना और छठी मैया की विधि विधान से पूजा का बड़ा महत्व है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार छठी माता को सूर्य देवता की बहन माना जाता हैं। कहा जाता है कि छठ पर्व में सूर्य की उपासना करने से छठ माता प्रसन्न होती हैं और घर परिवार में सुख शांति तथा संपन्नता के साथ सभी मनोकामनायें पूरी करती है। यह व्रत अत्यंत सफाई और सात्विकता का है , इसमें कठोर रूप से सफाई का ख्याल रखना चाहिये। घर में अगर एक भी व्यक्ति छठ का उपवास रखता है तो बाकी सभी को भी सात्विकता और स्वच्छता का पालन करना पड़ेगा।
चार दिनों में होती है छठ पूजा
हिन्दू धर्म में यह एकमात्र ऐसा त्यौहार है जिसमें डूबते सूर्य की पूजा होती है। तिथि अनुसार छठ पूजा चार दिनों की होती है। छठ की शुरुआत चतुर्थी तिथि को नहाय खाय से होती है , पंचमी तिथि को लोहंडा और खरना होता है। उसके बाद षष्ठी तिथि को छठ पूजा होती है जिसमें सूर्यदेव को शाम का अर्घ्य अर्पित किया जाता है। फिर अगले दिन सप्तमी को सूर्योदय के समय में उगते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद पारण करके व्रत पूरा किया जाता है। इस वर्ष यह त्यौहार आज 25 अक्टूबर शनिवार से 28 अक्टूबर मंगलवार तक चलेगी। छठ पूजा की शुरुआत 25 अक्टूबर मंगलवार को नहाय खाय के साथ होगी। इस दिन पूरे घर की अच्छे से साफ-सफाई की जाती है और स्नान के करने के पश्चात सूर्य को साक्षी मानकर व्रत का संकल्प लिया जाता है। इस दिन चने की सब्जी , चांवल , साग का सेवन किया जाता है। छठ पूजा के दूसरे दिन 26 अक्टूबर रविवार के दिन खरना होगा जो कि छठ पूजा का महत्वपूर्ण दिन होता है , इसे लोहंडा भी कहा जाता है। इस दिन पूरे दिन व्रत किया जाता है और छठ की तैयारियां होती हैं। शाम को नदी सरोवर पर कमर तक जाकर पानी में खड़े होकर अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। मिट्टी के नये चूल्हे पर आम की लकड़ी से आग जलाकर साठी के चांवल दूध और गुड़ से खीर बनाकर छठी मईया को अर्पित करने के बाद प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है। इसके बाद व्रती कुछ भी खाते-पीते नहीं हैं। खरना के अगले दिन छठ पूजा का मुख्य दिन होता है , इस दिन छठी मैया और सूर्य देव की पूजा की जाती है। इस साल छठ पूजा 27 अक्टूबर को है , इस दिन शाम को अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। छठ पूजा से अगले दिन छठ पूजा का समापन होता है जो इस बार 28 अक्टूबर को होगा , इस दिन पुन: नदी या सरोवर पर जाकर पानी में खड़े होकर उगते हुये सूर्य को अर्घ्य देकर पारण के बाद कठिन व्रत पूर्ण किया जाता है। इन चारों दिनों में सभी लोगों को सात्विक भोजन करने , जमीन पर सोने के अलावा और भी कई कड़े नियमों का पालन करना होता है। इन चारों दिनों में छठ पूजा से जुड़े कई प्रकार के व्यंजन , भोग और प्रसाद बनाया जाता है।
प्रचलित कथा
छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल से मानी जाती है ऐसी मान्यता है कि सबसे पहले सूर्य पुत्र कर्ण ने सूर्य देव की पूजा की शुरुआत की। कर्ण भगवान सूर्य भगवान के परम भक्त थे और वे प्रतिदिन घंटों कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते थे। सूर्य की कृपा से ही वह महान योद्धा बना था। आज भी छठ में अर्घ्य दान की यही पद्धति प्रचलित है। वहीं एक और मान्यता प्रचलित है जिसमें कहा जाता है कि जब पांडव जुआ में अपना सारा राजपाट हार गये , तब द्रौपदी ने छठ का व्रत रखा था। द्रौपदी के व्रत के फल से पाण्डवों को अपना राजपाट वापस मिल गया था। इसी तरह छठ का व्रत करने से लोगों के घरों में सुख समृद्धि का आगमन होता है। एक अन्य मान्यता के अनुसार राजा प्रियवद की कोई संतान नहीं थी, तब महर्षि कश्यप ने पुत्रेष्टि यज्ञ कराकर उनकी पत्नी मालिनी को यज्ञाहुति के लिये बनाई गई खीर दी। इसके प्रभाव से उन्हें पुत्र हुआ परंतु वह मृत पैदा हुआ। प्रियवद पुत्र को लेकर श्मशान गये और पुत्र वियोग में प्राण त्यागने लगे। उसी वक्त भगवान की मानस कन्या देवसेना प्रकट हुई और कहा कि सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण मैं षष्ठी कहलाती हूं। राजन तुम मेरा पूजन करो तथा और लोगों को भी प्रेरित करो। राजा ने पुत्र इच्छा से देवी षष्ठी का व्रत किया और उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। यह पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को हुई थी।




