नवरात्रि विशेष: चमात्कारिक है मां तुलजा भवानी मंदिर, जानें इसका इतिहास…

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आगर मालवा28 मिनट पहले

सारंगपुर मार्ग स्थित चमत्कारिक मां तुलजा भवानी का मंदिर अत्यंत प्राचीन है। इस मंदिर को गुफा बर्डा के नाम से भी पहचाना जाता है। आम बोलचाल की भाषा में बर्डा का तात्पर्य पहाड़ी से है। यहां ऊंची पहाड़ी पर गुफा बनी हुई है।

पुराने लोग बताते है कि मंदिर के पीछे स्थित इस गुफा का मार्ग उज्जैन तक पहुंचाता है, जहां के राजा इस मार्ग से मां तुलजा भवानी के दर्शन करने आया करते थे। सुरक्षा कारणों के चलते वर्षों पूर्व इस गुफा को बंद कर दिया गया था।

नवरात्रि महापर्व आज से प्रारंभ होने पर प्रतिवर्षानुसार इस वर्ष भी यहां नपा अध्यक्ष निलेश जैन सहित पार्षद और प्रशासनिक अधिकारी कर्मचारियों के द्वारा पूजन अर्चना के साथ घट स्थापना की गई, और महाआरती के बाद प्रसाद वितरण किया गया। शहर के इस प्रसिद्ध मंदिर में अब नो दिनों तक माता की आराधना करने और दर्शनार्थी हजारों नागरिक प्रतिदिन पहुंचने लगे है। इस प्रसिद्ध मंदिर में अनेक चमत्कारिक घटनाक्रम होने से मंदिर में लोगों की आस्था बनी हुई है।

बाड़ी माता मंदिर में होती है हर मुराद पुरी

नगर से 25 किमी दुर स्थित प्रसिद्ध बाड़ी माता मंदिर में भी आज से भक्तों का तांता लगना प्रारंभ हो गया। मान्यतानुसार यहां माता से की गई हर मुराद पुरी होती है, बस इसी विश्वास और आस्था के साथ भक्त दुर दुर से मन में अनेक कामना लिए मंदिर पहुंचते है। टिल्लर बांध के समीप बने इस भव्य मंदिर में माता मनवांछित मनोकामना पूर्ण करने के लिए ही विख्यात है।

नगर और आसपास के ग्रामीण इलाकों सहित दुर दुर से भक्त नवरात्रि में प्रतिदिन दर्शन के लिए बड़ी संख्या में आते हैं। नवरात्रि में विशेष रूप से नो दिनों तक यहां हजारों भक्त मनोकामना लिए आते है, जिनकी हर मनोकामना को मां पुरी करती है।

यह चमत्कारिक दैवीय स्थल दशाब्दियों से श्रद्धा, जन आस्था और विश्वास का केन्द्र बना हुआ है। इस शांतप्रिय स्थान में विराजित छोटी और बड़ी दोनों माताएं आसपास वृक्षों की बहुतायात के कारण सर्वत्र बाड़ी माता के नाम से विख्यात है। लगभग सौ वर्ष पूर्व ग्रामीणों ने मंदिर का प्रारम्भिक निर्माण जन सहयोग से कराया था।

उसके बाद मंदिर विकास समिति द्वारा प्रारम्भ किए गए, जो आज तक जारी है। वर्षभर यहां धार्मिक आयोजन होते रहते है, मनवांछित कामना लिए सैकड़ों लोग प्रतिदिन तरह तरह की मन्नत लिए यहां आकर माता की आराधना करते है। माता उन भक्तों द्वारा की गई हर मन्नत को पुरी भी करती है। इस दैवीय मंदिर में नवरात्रि पर नो दिनों तक विशेष आराधनाओं के साथ अनेक धार्मिक आयोजनों का दौर भी चलता रहता है।

निखरा मां कालका का स्वरूप

नगर के मध्य स्थित काशीबाई कालोनी में मां कालका का चमत्कारीक मंदिर है। मंदिर का स्वरूप करीब 30 सालों में उभरकर सामने आया है। सन 1992 में स्थापना के बाद से ही यह मंदिर जन आस्था का केन्द्र बनता गया। धीरे धीरे यहां भक्तों की भीड़ बढ़ने लगी और नवरात्रि में यहां दुर दुर से श्रद्धालु मन में मनोकामना लिए दर्शनार्थी आते हैं।

सन 1992 में जन सहयोग से निर्मित इस मंदिर में नवरात्रि के दौरान दूर दूर से भक्त आस्था और विश्वास के साथ माता के दर्शनार्थ आते है। सामाजिक समरसता के प्रतीक इस मंदिर की अपनी एक धार्मिक गाथा है। अस्वच्छ पेशे वाली जाति बाहुल्य बस्ती में बने इस मंदिर में विराजित मां कालका की प्रतिमा स्थानीय धोबी गली स्थित एक निजी मकान के निर्माण के दौरान खुदाई में निकली थी, जिसकी स्थापना महामंडलेश्वर शांति स्वरूपानंद जी महाराज के कर कमलों से की की गई थी। जिसके आसपास काल भैरव और माता हिंगलाज की प्रतिमाएं विराजित है।

1995 में जयपुर से काले संगमरमर पर निर्मित कालका माता, माता हिंगलाज व काल भैरव की प्रतिमा लाकर विधि विधान से प्राण प्रतिष्ठा भी की गई है। सन 1998 में अयोध्या से काल भैरव की प्रतिमा लाकर दीपशिखा के समीप स्थापित की गई है। इस मंदिर में नवमी के दिन बाड़ी विर्सजन पर कालका माता और काल भैरव की सवारी के साथ निकलने वाले चल समारोह का स्वरूप लोगों को चमत्कृत और भक्ति भाव से अभिभूत कर देता है।

नवरात्रि में माता के नो स्वरूपों का दर्शन भी भक्तों को होता है। अपनी अपनी मनोकामना को लेकर भक्त भक्ति भाव के साथ माथा टेकने बड़ी संख्या में आते है, और मनोकामना पूर्ण होने के पश्चात फिर से दरबार में हाजरी लगाते है। वर्तमान में मां कालका भक्त मंडली द्वारा मंदिर परिसर का आकर्षक रंग रोगन भी किया है। जिससे नवरात्रि में यह मंदिर भक्तों को जन आकर्षण का केन्द्र बनता जा रह है।

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