नए शंकराचार्य की नियुक्ति पर विवाद: अखाड़ा परिषद ने कहा-ये परंपरा के विपरीत; अविमुक्तेश्वरानंद बोले-अखाड़ों के नियम अखाड़ों में चलेंगे

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नरसिंहपुर10 घंटे पहले
अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने ज्योतिष पीठ के नए शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती के पट्टाभिषेक को अमान्य ठहराया है। पट्टाभिषेक के 12 दिन बाद अखाड़ा परिषद ने इस नियुक्ति को परंपरा और शास्त्र के विपरीत बताया। परिषद का कहना है कि संन्यासी अखाड़ों की गैरमौजूदगी में इस पद पर नियुक्ति नहीं दी जा सकती। स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती की षोडशी के माैके पर अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत रवींद्रपुरी महाराज ने यह विरोध दर्ज करवाया। वहीं इस बारे में स्वामी अविमुक्तेश्वर ने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति को विचार व्यक्त करने का अधिकार है। हमारे यहां जो भी हुआ है, वह शास्त्र और परंपराओं के अनुसार हुआ है। नियुक्ति भी विधि सम्मत हुई है।
अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद एवं मां मनसा देवी मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष श्रीमहंत रविंद्रपुरी महाराज ने निरंजनी अखाड़े में शुक्रवार को इस संबंध में मीडिया से बात की। उन्होंने कहा- शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के देहावसान के अगले दिन ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य की नियुक्ति हुई है, यह गलत है। शंकराचार्य की नियुक्ति जिसने भी की है, उनको कोई अधिकार नहीं है। संन्यासी अखाड़ों की उपस्थिति में शंकराचार्य की घोषणा होती है। शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज का षोडशी भंडारा व अन्य सनातनी परंपरा अभी पूरी भी नहीं हुई थी कि इसी बीच में शंकराचार्य पद की घोषणा कर दी गई। यह सनातन परंपरांओं के विरुद्ध है।

द्वारका-शारदा पीठ पर स्वामी सदानंद महाराज को और ज्योतिष पीठ पर स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद महाराज को शंकराचार्य घोषित किया गया था।
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद बोले- नियुक्ति विधि सम्मत
नियुक्ति के संबंध में विवाद पर स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने दैनिक भास्कर को बताया- देश में सभी को अभिव्यक्ति का अधिकार है। जहां तक नियुक्ति का सवाल है, तो वह विधि सम्मत है। शंकराचार्य जी के मठ की जो प्रक्रिया है, वह मठों के लोगों को पता है। अखाड़ों की प्रक्रिया को अखाड़े से जुड़े लोग जानते हैं। ऐसा नहीं होगा कि अखाड़ों की प्रक्रिया ही शंकराचार्य जी के मठ में भी लागू हो। हमारे यहां सब शास्त्र और परंपराओं के अनुसार हुआ है।

स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती के पट्टाभिषेक को अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने अमान्य ठहराया है।
वसीयत के आधार पर नहीं होती शंकरचार्य की नियुक्ति
श्रीमहंत रविंद्रपुरी महाराज ने कहा- इससे पूर्व 1941 में कैलाशवासी स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती की नियुक्ति जूना अखाड़ा व अन्य अखाड़ों की अध्यक्षता में हुई थी। जल्दबाजी में की गई शंकराचार्य की नियुक्ति का विरोध करते हैं, क्योंकि उत्तराखंड में गिरि संन्यासियों की संख्या सबसे ज्यादा है। शंकराचार्य उसी संन्यासी को बनाया जाएगा जो शंकराचार्य के संदेश को जन-जन तक पहुंचाने वाला हो, जिसके पास जनसमूह अर्थात श्रद्धालु भक्त हों। वसीयत के आधार पर शंकराचार्य की नियुक्ति नहीं होती है। यह स्वयं कैलाशवासी शंकराचार्य जगतगुरु स्वरूपानंद सरस्वती ने कहा था।

अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद एवं मां मनसा देवी मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष श्रीमहंत रविंद्रपुरी महाराज ने यह लेटर लिखा है।
पीठ का विवाद सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन
कैलाशवासी जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज ने अपने जीते जी किसी को शंकराचार्य घोषित नहीं किया था। आदि गुरु शंकराचार्य की उपाधि सनातन धर्म और परंपरा की सर्वोच्च उपाधि है। जिस पर संन्यासी अखाड़ों की उपस्थिति में विधि विधान के साथ शंकराचार्य की नियुक्ति होती हैं। उन्होंने कहा कि अखाड़े आदिगुरु शंकराचार्य की सेना हैं, लेकिन जल्दबाजी में अखाड़ों को बिना विश्वास में लिए स्वयं घोषणा कर दी जाती है, यह उचित नहीं है।
रविंद्रपुरी महाराज ने कहा- स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद को शंकराचार्य के रूप में इसलिए भी मान्यता नहीं दी जा सकती, क्योंकि उत्तराखंड के जोशी मठ का विवाद वह सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। ऐसे समय में यह घोषणा करना उचित नहीं था। हम इस नियुक्ति का विरोध करते हैं और उनके साथ नहीं हैं। हमें उन्हें शंकराचार्य नहीं मानते हैं और न आगे मानेंगे। सब बैठकर फैसला करते तो हम उनका साथ देते। उन्होंने किसी भी अखाड़े को अपने पक्ष में नहीं किया।

नरसिंहपुर स्थित झोतेश्वर परमहंसी गंगा आश्रम में शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने अंतिम सांस ली थी। आश्रम में उनके कमरे को अस्पताल के तौर पर बनाया गया था।
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद का 12 सितंबर को हुआ था पट्टाभिषेक
द्वारका-शारदा, ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य जगतगुरु स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का 11 सितंबर को ब्रह्मलीन हो गए थे। इसके बाद दोनों पीठों पर उनके उत्तराधिकारी के तौर पर द्वारका-शारदा पीठ पर स्वामी सदानंद महाराज को और ज्योतिष पीठ पर स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद महाराज को शंकराचार्य घोषित किया गया था। घोषणा के समय यह कहा गया था कि स्वामीजी ने पहले से ही यह नाम तय कर दिए थे।

शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने 9 साल की उम्र में घर छोड़कर धर्म की यात्रा शुरू कर दी थी। वो काशी पहुंचे और यहां ब्रह्मलीन स्वामी करपात्री महाराज से वेद-वेदांग, शास्त्रों की शिक्षा ली।
सीएम बोले- गौरक्षा जैसे विषयों पर देश को जगाने का काम किया
श्रद्धांजलि सभा में शामिल होने के बाद सीएम शिवराज ने कहा था- 9 साल की उम्र में उन्होंने घर छोड़ दिया था। वे महान देशभक्त थे। उन्होंने आजादी की लड़ाई में भाग लिया, 19 महीने जेल में रहे और क्रांतिकारी साधु कहलाए। उन्होंने- हमेशा विश्व कल्याण के लिए पूरा जीवन समर्पित कर दिया। वे जीवनभर गरीबों के लिए काम करते रहे। उन्होंने अस्पताल, विद्यालय, संस्कृति पाठशाला पर काम किया। उन्होंने गौरक्षा जैसे विषयों पर देश को जगाने का काम किया। अध्यात्म जगत का सूर्य अस्त हुआ है। मेरा उनको नमन।

श्रद्धांजलि सभा में शामिल होने सीएम शिवराज चौहान नरसिंहपुर पहुंचे थे।

स्वामी सदानंद महाराज और स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद महाराज ने शालिग्राम पूजन किया था।
कैसे हुई दो नए शंकराचार्यों की नियुक्ति
12 सितंबर को ज्योतिष पीठाधीश्वर व द्वारका शारदापीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के निज सचिव रहे ब्रह्मचारी सुबुद्धानन्द ने नरसिंहपुर जिले के परमहंसी गंगा आश्रम में मीडिया से बात की थी। महाराजश्री ने उत्तराधिकारी तैयार किए। उनकी इच्छानुसार ज्योतिष पीठाधीश्वर स्वामी अविमुक्तेश्वरानन्द सरस्वती महाराज और द्वारका शारदापीठ पर स्वामी सदानन्द सरस्वती महाराज के नामों की घोषणा की।

जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के विदेशी भक्त भी श्रद्धांजलि सभा में शामिल हुए।
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शंकराचार्य को वैदिक मंत्रोच्चार कर समाधि स्थल पर बैठाया गया।
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