ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य की नियुक्ति पर सवाल: अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष ने कहा- षोडशी से पहले नियुक्ति करना सनातन परंपरांओं के विरुद्ध

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- The President Of The Akhara Parishad Said It Is Against The Eternal Traditions To Make Appointment Before Shodashi.
नरसिंहपुर38 मिनट पहले
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ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद जी महाराज।
ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद महाराज की नियुक्ति पर अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने सवाल उठाए हैं। अखाड़ा परिषद का कहना है कि संन्यासी अखाड़ों की मौजूदगी के बिना शंकराचार्य के पद पर नियुक्ति नहीं की जा सकती है। अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत रविंद्र पुरी महाराज ने शुक्रवार को पत्रकारों से चर्चा करते हुए नियुक्ति को शास्त्र और सनातन परंपरा के विपरीत बताया था।
नरसिंहपुर जिले के परमहंसी गंगा आश्रम में ज्योतिष एवं द्वारका-शारदा पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती 11 सितंबर को ब्रह्मलीन हो गए थे। उनके निजी सचिव रहे ब्रह्मचारी सुबुद्धानंद ने घोषणा की थी कि द्वारका शारदा पीठ के शंकराचार्य स्वामी सदानंद जी महाराज एवं ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद जी महाराज होंगे। स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज के षोडशी कार्यक्रम के दिन अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रविंद्र पुरी ने कहा कि शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज का षोडशी भंडारा व अन्य सनातनी परंपरा अभी पूरी भी नहीं हुई थी कि इसी बीच में शंकराचार्य पद की घोषणा कर दी गयी। यह सनातन परंपरांओं के विरुद्ध है।
सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है विवाद
उन्होंने कहा कि संन्यासी अखाड़ों की उपस्थिति में ही शंकराचार्य की घोषणा होती रही है। इस तरह जल्दबाजी में शंकराचार्य के पद पर नियुक्ति सनातन धर्म के अनुसार गलत है। वर्ष 1941 में स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती को इस पद पर पंचदशनाम जूना अखाड़ा व अन्य अखाड़ों की मौजूदगी में ज्योतिष पीठ गठित की गई थी। वसीयत के आधार पर शंकराचार्य पद पर नियुक्ति नहीं की जा सकती। यह पद आदि शंकराचार्य की ओर से स्थापित चारों पीठों में से एक सर्वोच्च पद है। शंकराचार्य उसी को बनाया जा सकता है, जो आदि शंकराचार्य के संदेशों को जन-जन तक पहुंचाने वाला हो, जिसके पास जन समूह हो। स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद को शंकराचार्य के रूप में इसलिए भी मान्यता नहीं दी जा सकती, क्योंकि जोशी मठ का विवाद सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। हालांकि नवनियुक्त शंकराचार्य की तरफ से अभी तो इस संदर्भ में बयान नहीं आया है।

जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के साथ स्वामी सदानंद जी महाराज एवं स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद जी महाराज। (फाइल फोटो)

ऐसे हुई नए शंकराचार्यों की नियुक्ति
परमहंसी गंगा आश्रम में 12 सितंबर को पत्रकार वार्ता में ब्रह्मचारी सुबुद्धानंद ने बताया था कि आदि शंकराचार्य ने सनातन धर्म की निरन्तर रक्षा के लिए भारत की चार दिशाओं में चार आम्नाय मठों की स्थापना की थी। उन पर अपने सुयोग्य शिष्यों को अभिषिक्त कर यह परंपरा बनाई कि पीठासीन आचार्य अपने उत्तराधिकारी चयन करेंगे, परंतु वह चयनित उत्तराधिकारी पीठासीन आचार्य के अंत होने पर ही आचार्यत्वेन अभिषिक्त होकर रिक्त स्थान की पूर्ति करेंगे। इसी निर्देश के अनुसार पूज्य महाराजश्री ने अपने उत्तराधिकारी तैयार किए और अपने अंत में उनको आचार्यत्व प्रदान करने का दायित्व अपने अन्तिम इच्छा पत्र को तैयार कर दिया था। पत्र हमें देते हुए निर्देश दिया कि हमारे ब्रह्मलीन होने के बाद तुम हमारे इस इच्छा पत्र के अनुसार मेरे द्वारा चयनित दो दंडी संन्यासी शिष्यों को पीठों पर अभिषिक्त कर देना। महाराजश्री की समाधि के पूर्व उनके आदेश का पालन करते हुए ज्योतिष्पीठ पर स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती महाराज और द्वारका शारदापीठ पर स्वामी सदानंद सरस्वती महाराज के नामों की घोषणा, अभिषेक, तिलक और चादर किया गया।
दंडी संन्यासियों को दी दीक्षा
महाराजश्री अपने उत्तराधिकारियों के बारे में पूर्णत: आश्वस्त थे। इसीलिए उन्होंने 19 साल पहले ही इन दोनों को दंड संन्यास दिया था, जिनका समाधि से पूर्व अभिषेक किया गया है। न तो इसके पहले और न ही इन दोनों के बाद उन्होंने किसी को दण्ड संन्यास दिया। क्योंकि दंडी संन्यासी शिष्य ही शंकराचार्य पीठ पर उत्तराधिकारी होता है। पूज्य महाराजश्री के दोनों दंडी संन्यासी शिष्य 40 वर्षों से भी अधिक समय से पूज्य महाराजश्री के सानिध्य में रह रहे हैं। दोनों ही ने इतनी लंबी अवधि में संस्था और महाराजश्री का मान बढ़ाया ही है।
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