तूमैंन में विराजी हैं मां विंध्यवासिनी: दरवाजे पर बैकुंठ, मृत्यु लोक व पाताल लोक के उकरी है कलाकृति, 20 वर्षों से प्रज्वलित हैं दीप

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अशोकनगर23 मिनट पहले

जिला मुख्यालय से 10 किलोमीटर दूर स्थित तूमैंन नगरी में सैकड़ों वर्ष पुराना मां विंध्यवासिनी का मंदिर है। यह मंदिर महाभारत काल का माना जाता है। तूमैंन नगरी राजा मोरध्वज की नगरी है, मां विंध्यवासिनी मोरध्वज की कुलदेवी थी। माना जाता है कि उन्होंने ही विंध्यवासिनी का मंदिर बनवाया था। मंदिर के दरवाजे पर वैकुंड, मृत्यु लोक और पाताल लोक की कलाकृति उकरी हुई हैं। यहां पर मनोकामनाएं पूरी होने वाले लोग 20 वर्षों से कई दीप जलाए रहे हैं, जो निरंतर की ज्योति प्रचलित है।

कौन है मां विंध्यवासिनी
विंध्यवासिनी का जन्म यशोदा माता के यहां हुआ था। जिस समय वासुदेव जी कृष्ण को यशोदा माता के यहां छोड़ कर गए थे, तभी उनके यहां जन्मी कन्या (महामाया) विंध्यवासिनी को अपने साथ ले गए थे। कंस को जैसे ही पता चला की देवकी की आठवीं संतान का जन्म हो गया है तब वह पहुंचा तो वहां एक कन्या मिली, जिसे वह मारना चाहता था तभी महामाया विंध्यवासिनी कंस के हाथ से गायब हो गईं थीं और अष्टदेवी का रूप धारण किया था। मां विंध्यवासिनी भगवान श्री कृष्ण की बहन हैं। वहीं यशोदा की पुत्री मां विंध्यवासिनी हैं, जिनका तूमैंन नगरी में राजा मोरध्वज ने मंदिर बनवा था।

मोरध्वज से मिले थे कृष्ण, अर्जुन
तूमैंन नगरी अतिशय प्राचीन काल नगरी है, इसका निर्माण महाभारत काल के दौरान राजा मोरध्वज ने करवाया था। भगवान कृष्ण धर्मराज के साथ अर्जुन को लेकर तूमैंन आए हुए थे यहां पर राजा मोरध्वज से मिले थे। मंदिर के पुजारी रासबिहारी मिश्रा बताते हैं कि यहीं पर राजा मोरध्वज और रानी ने भगवान के कहने पर अपने बेटे पर आरा चलाया था। राजा मोरध्वज की पावन नगरी है, जिसका वर्णन सत्यनारायण की कथा के पांचवे अध्याय में है।

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