…ताकि राहुल के साथ कदमताल में हांफ ना जाएं नेताजी: पूर्व मंत्री ट्रेडमिल पर बहा रहे पसीना; साथी पूर्व मंत्री से आगे निकलने की होड़

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मध्यप्रदेश27 मिनट पहलेलेखक: राजेश शर्मा
- हर शनिवार पढ़िए और सुनिए- ब्यूरोक्रेसी और राजनीति से जुड़े अनसुने किस्से
राजनीति में कुछ करना हो तो अपने नेता के साथ कदमताल जरूरी है। इसमें पीछे रह गए तो समझो पीछे रह गए, क्योंकि नेता की नजरों में भी तो चढ़ना है। इसी कोशिश में मध्यप्रदेश कांग्रेस के दो पूर्व मंत्री जमकर पसीना बहा रहे हैं, ताकि मौका आए तो हांफना ना पड़े।
दरअसल, राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा की एमपी में एंट्री होने वाली है। वे हर रोज कम से कम 20 किलोमीटर पैदल चल रहे हैं। एमपी के नेताओं को भी उनके साथ चलना पड़ेगा, लेकिन कई नेताओं की पैदल चलने की आदत नहीं है।
राहुल गांधी के साथ चलने के लिए भोपाल के एक विधायक और पूर्व मंत्री सुबह-शाम पैदल चलकर पसीना बहा रहे हैं। अपने घर में ट्रेडमिल पर वॉक कर रहे हैं, ताकि राहुल के साथ कदमताल करने के दौरान सांस न फूले। ये 60 पार वाले नेताजी हैं।
सुना है कि ये कदमताल में उस पूर्व मंत्री को पछाड़ना चाहते हैं, जिसकी उम्र फिलहाल 50 से कम है और वे पिछले कई साल से वॉक करते हैं। सोशल मीडिया में उनकी साइकिल चलाते कई बार फोटो-वीडियो वायरल होती है। बता दें कि दोनों पूर्व मंत्रियों के बीच इस यात्रा के दौरान राहुल के सामने अपना कद बड़ा दिखाने के लिए जोर आजमाइश चल रही है।
‘महाराज’ का वीटो पावर और अफसरों को ‘सरकार’ का ‘संदेश’
एमपी में हाल ही में जारी कलेक्टरों की ट्रांसफर लिस्ट से आईएएस अफसर नाराज हैं। एक अफसर ने तो लिस्ट के नाम गिनाकर बताया कि कैसे एक विशेष वर्ग पर ‘सरकार’ मेहरबान है। इतना ही नहीं, बीजेपी के ‘महाराज’ भी नई पोस्टिंग से नाराज हैं।
नई जमावट के हिसाब से जिन अफसरों को कलेक्टर बनाया जाना था या फिर एक जिले से दूसरे जिले में पोस्टिंग करनी थी, उसकी पहली सूची में जबलपुर कलेक्टर टी इलैयाराज को ग्वालियर भेजा जाना था, जबकि ‘महाराज’ ने यहां अपने खास की पोस्टिंग करने की सिफारिश की थी। जैसे ही ‘महाराज’ के कानों तक यह खबर पहुंची कि ग्वालियर में ‘सरकार’ के भरोसेमंद अफसर की पोस्टिंग की जा रही है। फिर क्या था, ‘महाराज’ ने वीटो लगाकर उसे रुकवा दिया। जब लिस्ट जारी हुई, तो इसमें ग्वालियर नहीं था।
सुना है कि इसमें ‘सरकार’ के प्रशासनिक मुखिया का गुणा-भाग था। इतना ही नहीं, जिस अफसर को ग्वालियर आने से रोका, उसे और बड़े जिले की कमान सौंप कर ब्यूरोक्रेसी को संदेश दे दिया कि सरकार में ‘महाराज’ का दखल नहीं चलता, लेकिन, इसका असर यह हो रहा है कि कई अफसर ‘महाराज’ के संपर्क में आ रहे हैं। इसमें एक रिटायर्ड अफसर की भूमिका है। एक रिटायर्ड मुख्य सचिव ट्रांसफर लिस्ट को लेकर ब्यूरोक्रेट्स के बीच चर्चा कर रहे हैं कि अब तो ‘सरकार’ दलितों की पूछ परख कर रहे हैं।
गुजरात जा रहे मंत्री गफलत में…
एमपी के कई मंत्री गुजरात में बीजेपी के लिए प्रचार में जुटे हैं। वह चुनावी सभाएं कर रहे हैं, लेकिन उनके भाषण अधिकतर लोगों को समझ ही नहीं आ रहे हैं। वजह यह है कि भाषण हिंदी में देते हैं, जबकि पब्लिक ठेठ गुजराती है।
जिन विधानसभा क्षेत्रों में प्रचार की जिम्मेदारी इन मंत्रियों पर है, वे अधिकतर ग्रामीण इलाके हैं, जहां गुजराती के अलावा अन्य कोई भाषा बोलचाल में नहीं है। मंत्री जब भाषण देते हैं तो लोग कोई प्रतिक्रिया नहीं देते, बल्कि नेताजी का चेहरा ताकते रहे हैं।
प्रचार करने के बाद लौटे एक मंत्री ने कहा- हमें उन इलाकों में भेजा गया है, वहां सिर्फ कांग्रेस का बोलबाला है। यानी प्रचार में समय भी खफा रहे और फायदा भी कुछ नहीं। इसको लेकर मंत्री गफलत में हैं। संगठन तक अपनी समस्या पहुंचाई, लेकिन कोई सुनवाई नहीं।
देखते रह गए मंत्रीजी, ढहा दिया पेट्रोल पंप
निमाड़ के एक जिले में हाल ही में प्रशासन ने एक पेट्रोल पंप को ढहा दिया। आरोप था कि इस बायोडीजल पंप में यूरिया स्टॉक करने और अन्य गड़बड़ियों की शिकायत थी। जांच में आरोप सही पाया गया। प्रशासन ने कार्रवाई की पूरी तैयारी कर ली, लेकिन, यह जानकारी पंप मालिक को मिली तो उन्होंने जिले के प्रभारी मंत्री के साथ अपने करीबी एक सिंधिया समर्थक मंत्री से मदद मांगी।
दोनों मंत्रियों ने संभाग के कमिश्नर को कार्रवाई रोकने के निर्देश दे दिए। जब यह जानकारी जिले तक पहुंची तो अफसरों ने सारा मामला ‘सरकार’ तक पहुंचा दिया। फिर क्या था, भोपाल से आदेश पहुंच गया कि पेट्रोल पंप को ढहा दिया जाए। प्रशासन ने भी बिना देर किए पंप को जमींदोज कर दिया।
सुना है कि पंप मालिक अब अफसोस कर रहे हैं कि उन्होंने दो मंत्रियों से वीटो क्यों लगवाया? जबकि उन्हें सलाह दी गई थी कि कार्रवाई रोकने के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाया जाए, लेकिन वे मंत्रियों के दरवाजे पहुंच गए। जरूरी नहीं है कि हर मर्ज की एक ही दवा होती है।
मंत्री तो दूर ओएसडी से मिलने से पहले लेनी पड़ती है परमिशन
एक मंत्री के ओएसडी का जबरदस्त जलवा है। उन्होंने अपनी एक टीम बना ली है। मंत्री निवास पर एक पूरा हॉल ले रखा है, जहां एक विभाग से पदस्थ किए गए अफसरों को टेबल-कुर्सी दे रखी है। यानी मंत्री तो दूर ओएसडी से मिलने से पहले उनकी टीम से परमिशन लेना पड़ती है। खास बात यह है कि ओएसडी जिस मूल विभाग के हैं, वहीं के अफसरों और कर्मचारियों को प्रतिनियुक्ति पर मंत्री के स्टॉफ में पदस्थ किया हैं। यानी मंत्री के बंगले पर ओएसडी ने अपने भरोसेमंदों को तैनात कर रखा है।
मंत्री के नाम पर दूसरे विभागों में काम कराने की जिम्मेदारी भी इन्हीं के पास है, जबकि मंत्रीजी के पास जो विभाग हैं, उनके अधिकारी परेशान हैं। वजह यह है कि जो फाइलें मंत्री के पास भेजी जाती हैं, उसके बारे में स्टॉफ को कोई अनुभव नहीं है। ऐसे में समय पर फाइलों पर फैसला नहीं होने पर विभाग के अफसर पशोपेश में रहते हैं।
सुना है कि विभाग के प्रमुख सचिव ने ‘सरकार’ के कानों तक अपनी समस्या पहुंचा दी है। अब देखना है कि एक्शन कब होगा? बता दें ये मंत्री विंध्य इलाके से आते हैं और मछली के ठेके को लेकर चर्चा में आ चुके हैं।
रेस्टोरेंट पर ‘चंदा मामा’ की वक्र दृष्टि
राजधानी के जाने माने रेस्टोरेंट की कोलार ब्रांच में दाल में कॉकरोच मिला था, जिसके बाद खाद्य विभाग ने छापा मारा था। फिर क्या था, 24 घंटे के अंदर होटल बंद करने का आदेश जारी हो गया।
राजनीतिक गलियारे में चर्चा है कि पिछले दिनों एक सड़क के उद्घाटन कार्यक्रम में होटल संचालक ने आर्थिक सहयोग नहीं किया था। इसलिए ‘चंदा मामा’ के दवाब में यह कार्रवाई हुई। सुना है कि होटल संचालक ने ‘सरकार’ तक यह बात पहुंचा दी है।
और अंत में….
सिंगरौली का ‘एक करोड़ी’ थाना
सिंगरौली के एक थाने काे पुलिस महकमे में ‘कमाऊ पूत’ कहा जाता है। यहां के थानेदार की पोस्टिंग ‘सरकार’ की सहमति के बिना संभव ही नहीं है,लेकिन इस बार यहां ‘सरकार’ की मर्जी से पोस्टिंग नहीं हुई।
बताया जाता है कि संगठन के एक बड़े नेता ने अपने भरोसेमंद पुलिस अधिकारी को यहां थानेदार बनवाया है। सुना है कि ‘सरकार’ नेताजी के इतने दवाब में हैं कि बेहतर परफॉर्मेंस देने वाले एक कलेक्टर को ना चाहते हुए भी मैदानी पोस्टिंग से हटाना पड़ा। खैर, कोई ना कोई मजबूरी तो होगी, वरना ‘सरकार’ को इतना दवाब स्वीकार नहीं करते।
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राजनीति में जैसा आंखों से दिखता है, वैसा होता नहीं। यहां ना कोई स्थाई दोस्त होता है, ना दुश्मन। सियासी लाभ-हानि के हिसाब से चीजें बदलती रहती हैं। पिछले कुछ दिनों से सत्ताधारी खेमे में ऐसा ही कुछ देखने को मिल रहा है।

एक ‘कमल’ को साधा तो दूसरे ‘कमल’ ने निपटा दिया
नगरीय निकाय सेवा के एक अफसर के ट्रांसफर आदेश ‘सरकार’ के निर्देश मिलने के आधे घंटे बाद जारी हो गए। स्पीड इतनी… मानो फाइल को पंख लग गए हों, जबकि किसी भी ट्रांसफर आदेश निकालने में जिन प्रक्रियाओं को पूरा करना पड़ता है, उसमें कम से कम एक दिन से कम समय तो लग ही नहीं सकता। अब आधे घंटे में हुआ यह आदेश राजनीतिक और प्रशासनिक गलियारे में चर्चा का विषय बना हुआ है। ‘महाराज’ को तवज्जो से बीजेपी में खलबली

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के उज्जैन दौरे पर जिस तरह ‘महाराज’ को तवज्जो मिली, उसने बीजेपी नेताओं की नींद उड़ा दी है। मोदी जब महाकाल मंदिर में पूजा करने गए, तो मुख्यमंत्री और राज्यपाल के अलावा ‘महाराज’ यानी सिंधिया भी उनके साथ गए, जबकि मोदी कैबिनेट में शामिल एमपी के नेता सभास्थल पर पहुंचे। ‘महाराज’ को मिले वेटेज से बढ़ीं BJP नेताओं की धड़कनें

2018 में सत्ता गंवाने वाली BJP अब मिशन 2023 के लिए फूंक-फूंक कर कदम रख रही है। मैदानी स्तर पर तो रणनीति तैयार की ही जा रही है, नेताओं को भी एकजुट रहने की नसीहत दी जा रही है। हाल ही में रातापानी के जंगल में सियासी मंथन के लिए जुटे BJP नेताओं की बैठक में दिल्ली से आए एक बड़े पदाधिकारी ने कहा कि चुनाव जीतना है, तो पुरानी दोस्ती को जिंदा करो। IAS की पत्नी से बदसलूकी की, 2 का ट्रांसफर

मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार ने पहली बार उज्जैन में कैबिनेट बैठक की। इसमें मुख्य कुर्सी पर भगवान महाकाल की तस्वीर रखी गई। सीएम और सभी मंत्री अगल-बगल बैठे। ‘सरकार’ की इस पहल की खूब चर्चा हुई, लेकिन बैठक से पहले एक वाकया ऐसा हुआ, जिसने थोड़ी देर के लिए पुलिस के होश उड़ा दिए। पुलिस अफसर के सामने धर्मसंकट खड़ा हो गया कि ‘सरकार’ को आगे जाने दें या ‘पंडितजी’ को, क्योंकि अपने ‘सरकार’ तो पंडित जी हैं। ‘राजा साहब’ के समर्थकों के टूटे सपने

सियासत में सब कुछ खुलकर नहीं कहा जाता है। इशारों में समझा दिया जाता और समझने वाले समझ जाते हैं। एमपी की राजनीति में पिछले दिनों ऐसा ही हुआ। जो दिख रहा था, हकीकत उससे कहीं अलग थी। पोषण आहार पर एजी (महालेखाकार) की रिपोर्ट लीक होना ‘सरकार’ पर अटैक था, लेकिन सियासत पर बारीक नजर रखने वाले अतीत की घटनाओं को जोड़कर वहां तक पहुंच गए, जहां इसकी स्क्रिप्ट तैयार की गई। ग्वालियर में बन रही ‘सरकार’ के ताले की डुप्लीकेट चाबी!

मध्यप्रदेश की राजनीति में ‘महाराज’ के बदले हुए अंदाज से सियासी गर्माहट बढ़ती जा रही है। इससे ‘सरकार’ के खेमे में खलबली है, लेकिन विरोध-समर्थन का खेल सार्वजनिक होने में वक्त लगेगा, क्योंकि पिक्चर अभी धुंधली है। सिंधिया अपनी महाराज वाली छाप मिटा तो नहीं रहे, लेकिन इसे अपना अतीत बताकर नई छवि गढ़ने में जुट गए हैं। ‘सरकार’ के सामने नरोत्तम को CM बनाने के लगे नारे…

‘जहां दम वहां हम’ नेताओं पर यह जुमला बिल्कुल फिट बैठता है। राजनीति की रवायत ही कुछ ऐसी है। बात MP की करें तो पिछले एक साल में जब-जब बीजेपी केंद्रीय नेतृत्व की नजरें यहां पड़ी, नेताओं में खलबली मच गई। बदलाव की बयार चलने के कयास भर से आस्था डोलने लगी। इस बार भी जब ‘सरकार’ बदलने की हवा उड़ी। ‘सरकार’ बदलने की हवा उड़ी तो आस्था डोलने लगी…
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