Chhattisgarh

तकनीक को सुख में बदलो -डॉ सुधीर शर्मा

रायपुर,27 जुलाई 2025/ आज का युग तकनीक का युग है। हमारे जीवन का कोई भी क्षेत्र इससे अछूता नहीं है—चाहे शिक्षा हो, चिकित्सा, संचार, मनोरंजन या व्यापार। तकनीक ने असंभव को संभव बना दिया है। परंतु प्रश्न यह है कि क्या इस तकनीकी प्रगति से हमें सच्चा सुख भी मिला है? या हम केवल सुविधाओं के जाल में उलझकर मानसिक शांति खो बैठे हैं? इसका उत्तर हमारी सोच और उपयोग पर निर्भर करता है।

तकनीक को यदि केवल भौतिक उपभोग का साधन माना जाए, तो यह जल्दी ही निरर्थकता और अधीरता को जन्म देती है। किंतु जब तकनीक को मानवता के कल्याण से जोड़ा जाता है, तो यह सुखद, सार्थक और सृजनात्मक बन जाती है। तकनीक के माध्यम से हम प्रकृति का दोहन न कर, संरक्षण भी कर सकते हैं। जैसे – सोलर एनर्जी, वाटर हार्वेस्टिंग, ई-वाहन आदि का प्रयोग हमें पर्यावरण के प्रति जागरूक बनाता है और स्थायी सुख की ओर ले जाता है।

एक प्रेरणादायक उदाहरण के रूप में बेंगलुरु के इंजीनियर अजित नारायण का उल्लेख किया जा सकता है, जिन्होंने स्पेशल बच्चों के लिए टॉकिंग कीबोर्ड ‘Avaz’ तैयार किया। यह तकनीकी आविष्कार बोलने में असमर्थ बच्चों के लिए संवाद और आत्मनिर्भरता का माध्यम बन गया। यह न केवल तकनीक की उपलब्धि है, बल्कि यह दिखाता है कि तकनीक में संवेदना जोड़ दी जाए, तो वह सच्चे सुख का कारण बन सकती है।

इसी तरह, ग्रामीण क्षेत्रों में तकनीक के माध्यम से किसान मौसम की जानकारी, फसल बीमा, उन्नत बीजों की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं, जिससे उनकी आय और जीवन स्तर में सुधार आता है। तकनीक को यदि सामाजिक समरसता और सशक्तिकरण के लिए इस्तेमाल किया जाए, तो यह पूरे समाज को विकास की नई दिशा दे सकती है।

लेकिन एक सावधानी जरूरी है – तकनीक को अगर अनियंत्रित तरीके से जीवन में प्रवेश दिया गया, तो यह असामाजिक व्यवहार, भावनात्मक अलगाव, और आभासी दुनिया में उलझाव को बढ़ावा दे सकती है। बच्चों का स्क्रीन टाइम, सोशल मीडिया की लत, डिजिटल धोखाधड़ी – ये सब गलत उपयोग के परिणाम हैं।

इसलिए जरूरी है कि हम तकनीक को नियंत्रित, संतुलित और उद्देश्यपूर्ण रूप में अपनाएं। तकनीक का सही उपयोग वहीं होता है जहां वह समय की बचत, श्रम की सुविधा और मानसिक संतोष दे सके।

निष्कर्षतः, तकनीक एक द्विधारी तलवार है—यदि विवेक से इस्तेमाल की जाए तो यह सुख, सृजन और संतुलन का माध्यम है, और यदि बिना सोच-समझ के अपनाई जाए, तो यह अशांति, व्यर्थता और व्यसन का कारण बन सकती है। इसलिए आज के युग की सबसे बड़ी चुनौती है – “तकनीक को सुख में बदलना”, न कि केवल सुविधा में। यह तभी संभव है जब तकनीक के साथ संवेदना, नैतिकता और मानवीय दृष्टि जोड़ी जाए।

आइए, हम तकनीक को साधन बनाएँ, स्वामी नहीं। तभी हम सच्चे सुख की ओर अग्रसर हो सकेंगे।

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