Chhattisgarh

गारे–पलमा सेक्टर–1 की प्रस्तावित पर्यावरणीय जनसुनवाई के विरोध में उभरा शांतिपूर्ण जनआंदोलनग्राम सभा की सर्वोच्चता और जल–जंगल–ज़मीन की रक्षा को लेकर स्थानीय समुदाय मुखर

रायगढ़। गारे–पलमा सेक्टर–1 क्षेत्र में प्रस्तावित पर्यावरणीय जनसुनवाई को लेकर स्थानीय ग्राम सभाओं, सामाजिक संगठनों और आदिवासी समुदायों में गहरा आक्रोश दिखाई दे रहा है। ग्रामीणों का आरोप है कि यह जनसुनवाई “जबरन थोपने वाली और फर्जी प्रक्रिया” के रूप में आयोजित की जा रही है, जो संविधान द्वारा प्रदत्त उनके अधिकारों का उल्लंघन है। इसी को लेकर क्षेत्र में शांतिपूर्ण और गांधीवादी तरीके से विरोध की तैयारी की जा रही है।

सामाजिक कार्यकर्ता राधे श्याम शर्मा सहित कई स्थानीय प्रतिनिधियों ने साफ कहा कि गारे–पलमा सेक्टर–1 पूरी तरह अनुसूचित आदिवासी क्षेत्र (Fifth Schedule Area) है, जहां संविधान के अनुच्छेद 244(1) के तहत पेसा कानून लागू है। इस कानून के अनुसार, किसी भी औद्योगिक, भूमि अधिग्रहण या पर्यावरणीय निर्णय में ग्राम सभा की अनुमति सर्वोपरि होती है। ग्रामीणों ने स्पष्ट किया कि यहाँ परामर्श नहीं, बल्कि अनुमति मूल अधिकार है, जिसे किसी भी उद्योग या प्रशासनिक दबाव के आधार पर नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।

ग्रामीणों का आरोप है कि जिंदल प्रबंधन की ओर से स्थानीय लोगों पर दबाव बनाने, डराने और जनसुनवाई को हर हाल में आयोजित करने की कोशिश की जा रही है। लोगों ने चेतावनी दी कि वे किसी भी प्रकार की दादागिरी या दबाव की राजनीति को स्वीकार नहीं करेंगे।

शर्मा ने कहा,”हमारी लड़ाई न्याय की लड़ाई है, कानून की लड़ाई है और इसे हम पूरी तरह गांधीवादी व अहिंसक तरीके से लड़ेंगे। जल–जंगल–ज़मीन और आने वाली पीढ़ियों के भविष्य की रक्षा के लिए यह आंदोलन अनिवार्य है। ग्राम सभा की अनुमति के बिना कोई भी जनसुनवाई मान्य नहीं होगी और इसे रद्द करवा कर ही दम लेंगे।”

उन्होंने आगे कहा कि संविधान ग्राम सभा को सर्वोच्च मानता है और इसी आधार पर उनकी लड़ाई जारी रहेगी। आंदोलनकारी स्पष्ट कर चुके हैं कि वे किसी भी प्रकार की हिंसा या टकराव के मार्ग पर नहीं जाएंगे, बल्कि सत्य, अहिंसा और संवैधानिक अधिकारों के बल पर संघर्ष करेंगे।

स्थानीय महिलाएँ, युवा और आदिवासी समाज के विभिन्न संगठन भी इस शांतिपूर्ण विरोध में शामिल हो रहे हैं। उनका कहना है कि गारे–पलमा क्षेत्र न केवल उनकी आजीविका का आधार है, बल्कि सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत से भी जुड़ा हुआ है। इसलिए जल–जंगल–ज़मीन की सुरक्षा केवल आज की लड़ाई नहीं, बल्कि भविष्य की पीढ़ियों के अस्तित्व की लड़ाई है।

गारे–पलमा सेक्टर–1 की प्रस्तावित जनसुनवाई के विरोध में यह उभरता गांधीवादी आंदोलन आने वाले दिनों में और तेज होने की संभावना है। ग्रामीणों ने साफ संकेत दिया है कि जब तक ग्राम सभा की सहमति को सर्वोच्च नहीं माना जाएगा, तब तक वे पीछे हटने वाले नहीं हैं।

Related Articles

Back to top button