जबलपुर हॉस्पिटल अग्निकांड: बेटे के जूते-घड़ी और आंसुओं के साथ जी रहे पिता का दर्द

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सुनील विश्वकर्मा (जबलपुर)9 मिनट पहले

जबलपुर के न्यू लाइफ हॉस्पिटल अग्निकांड को 2 महीने हो चुके हैं। सभी आरोपी जमानत पर जेल से बाहर हैं। हादसे में अपने जवान बेटे को खोने वाले पिता उसकी निशानियां देखकर रो देते हैं। बात-बात पर आंखें डबडबा जाती हैं।

जबलपुर का घमापुर खटीक मोहल्ला। अमन विश्वकर्मा इसी बस्ती के पक्के, लेकिन छोटे मकान में रहते हैं। 2 महीने पहले तक उनके घर में रौनक थी, लेकिन अब उदासी है। अंधेरा है। 43 साल के अमन कभी अपने बेटे तन्मय (19 साल) की डायरी के पन्ने पलटते हैं, तो कभी उसके जूतों की ओर टकटकी लगाए रहते हैं। वे 1 अगस्त के उस मंजर को याद कर रो पड़ते हैं, जब न्यू लाइफ मल्टी स्पेशयलिटी सिटी हॉस्पिटल से उनके बेटे का आखिरी बार कॉल आया था। उनके कानों में अब भी बेटे के वही शब्द गूंज रहे हैं- पापा मुझे बचा लो… मैं जल रहा हूं…

अमन खुद को संभालते हैं। उनकी आंखों में गुस्सा उभरता है। कहते हैं- आठ लोगों की जान लेने वाले भले ही जेल से बाहर आ गए। बेटे को न्याय दिलाने और दोषियों को फिर से जेल पहुंचाने के लिए मैं सुप्रीम कोर्ट तक जाऊंगा। मैंने वकील से इस बारे में बात की है।

1 अगस्त को न्यू लाइफ मल्टी स्पेशयलिटी सिटी हॉस्पिटल में लगी भीषण आग में 8 लोगों की मौत हो गई थी। इनमें अधिकतर वे लोग थे, जो भर्ती थे। इस मामले में पुलिस ने हॉस्पिटल के 4 डॉक्टरों और 2 मैनेजर सहित 6 लोगों के खिलाफ धारा 304, 308, 34 के तहत केस दर्ज किया था।

अब सभी आरोपी जेल से बाहर हैं। 4 आरोपी करीब डेढ़ महीने जेल में रहने के बाद हाईकोर्ट से मिली जमानत के बाद छूटे हैं, जबकि 2 डॉक्टर तो जेल जाने के 3 दिन में ही 22 सितंबर को बाहर आ गए। अमन विश्वकर्मा इसी को लेकर दुखी हैं।

प्लम्बर का काम करने वाले अमन बेटे की डायरी को दिखाते हुए कहते हैं- मैं उसे न्याय दिलाने के लिए आखिरी दम तक लड़ूंगा। फिर वे बेटे की यादों में खो जाते हैं, कहते हैं- तन्मय डायरी में एक-एक रुपए का हिसाब रखता था। ये देखिए, इस पन्ने पर कुछ हिसाब लिखा है- एक दोस्त को 30 हजार रुपए उधार दिए हैं। 30 हजार में से सिर्फ 10 हजार वापस करना। 20 हजार रुपए अपनी (दोस्त) बहन की शादी में खर्च कर देना। तन्मय को जूतों और घड़ियों का बहुत शौक था। 20 से ज्यादा जोड़ी जूते होंगे उसके पास। यह कहते हुए अमन अपने बेटे के जूते दिखाने लगते हैं। सभी जूते उन्होंने बेटे की याद के बतौर सहेज कर रखे हैं। इसी तरह घड़ी और मोबाइल भी सहेज रखा है। कहते हैं, ये सब देखकर कभी खूब रोता हूं… तो कभी बेटे को इन सब चीजों से अपने पास पाता हूं…। अमन के शब्द ठहर जाते हैं।

तन्मय के पिता अमन विश्वकर्मा आज भी उस हादसे को भुला नहीं पाए हैं। वे अपने बेटे की डायरी, घड़ी, जूते आदि निशानियां देखकर उसके अपने करीब होने का अहसास करते हैं।

तन्मय के पिता अमन विश्वकर्मा आज भी उस हादसे को भुला नहीं पाए हैं। वे अपने बेटे की डायरी, घड़ी, जूते आदि निशानियां देखकर उसके अपने करीब होने का अहसास करते हैं।

दोस्तों से कहता- ये पापा नहीं, बड़े भाई हैं मेरे…
तन्मय अनजान लोगों की मदद के लिए भी तैयार रहा था। दोस्तों से कहता था कि ये मेरे पिता नहीं, बड़े भाई हैं। 15 साल की उम्र में वह मेरा का सहारा बन गया था। मैंने दूसरी शादी की, तो वह उस मां को भी सगी मां जैसा प्यार करता था।

न्यू लाइफ मल्टी स्पेशयलिटी सिटी हॉस्पिटल में भर्ती तन्मय ने ये फोटो अपने घरवालों को भेजा था। यह उसका आखिरी फोटो है। तन्मय के पिता अमन इस फोटो को देखकर रो देते हैं।

न्यू लाइफ मल्टी स्पेशयलिटी सिटी हॉस्पिटल में भर्ती तन्मय ने ये फोटो अपने घरवालों को भेजा था। यह उसका आखिरी फोटो है। तन्मय के पिता अमन इस फोटो को देखकर रो देते हैं।

बेटे को खोने वाले पिता की जुबानी जानिए वो 1 अगस्त…
1 अगस्त की तारीख कभी नहीं भूल सकता। बड़ा भयानक दिन था। दिन के करीब डेढ़ बज रहे होंगे। उस दिन मैं बहुत थक गया था। शरीर में दर्द था, इसलिए घर पर कमरे में लेटा था। इसी दौरान तन्मय की तबीयत खराब हुई। उसने पास आकर कहा- पापा तबीयत खराब हो रही है। मैं डॉक्टर के पास जा रहा हूं। मैंने तन्मय की आवाज भी सुनी, सोचा कि उसे रोक लूं, लेकिन चाहकर भी बोल नहीं पाया। चुप रह गया। मेरी खामोशी को तन्मय ने हां समझ लिया।

फिर कुछ देर बाद मैंने कहा- तुम चले जाओ। इसके बाद तन्मय दोस्त के साथ चला गया। भले ही शरीर में दर्द था, लेकिन नींद भी नहीं आ रही थी। अजीब सी बेचैनी हो रही थी। ऐसा लग रहा था कि कुछ बुरा होने वाला है। समझ नहीं आ रहा था। इतनी देर में तन्मय का अस्पताल से कॉल आया। कहा- पापा मैं न्यू मल्टी सिटी अस्पताल आ गया हूं। वीडियो भेज रहा हूं। यह कहकर फोन काट दिया। मैं भी वॉट्सऐप पर भेजे वीडियो को देखने लगा। डॉक्टर ने उसे ड्रिप लगाने की सलाह दी। ड्रिप शुरू हुई तो उसने अपने ही मोबाइल से फोटो भेजे। बताया- शाम तक घर जाऊंगा। दोस्तों से कहा कि वे नाश्ता करने चले जाएं।

अस्पताल के बेड से फोटो भेजा…
वह ग्राउंड फ्लोर पर भर्ती था। अस्पताल में पहने हुए कपड़ों के साथ फोटो खिंचवाई। यही फोटो घर भेजी। इतने में मेरी आंख भी लग गई। कुछ देर में फिर फोन बजता है। स्क्रीन पर तन्मय का नंबर होता है। नंबर देख चिंता हुई कि कुछ देर पहले ही तो बात हुई थी। घबराते हुए मैंने कॉल उठाया।

मैंने कहा- बोलो बेटा क्या हुआ? फिर उसकी आवाज सुनकर सन्न रह गया। तन्मय बोला- पापा मुझे बचा लो… मैं जल रहा हूं…। अस्पताल में आग लग गई है। इतना कहते ही मोबाइल डिस्कनेक्ट हो गया। मैंने दोबारा कॉल किया, लेकिन मोबाइल बंद आ रहा था। मैं बदहवास हो गया। कुछ समझ में नहीं आया कि क्या करूं? तुरंत बाइक लेकर सीधे अस्पताल पहुंचा।

जबलपुर के न्यू लाइफ मल्टी स्पेशयलिटी सिटी हॉस्पिटल में 1 अगस्त को भीषण आग लग गई थी। इस मामले में अस्पताल के डायरेक्टर सहित 6 लोगों पर केस दर्ज किया गया था।

जबलपुर के न्यू लाइफ मल्टी स्पेशयलिटी सिटी हॉस्पिटल में 1 अगस्त को भीषण आग लग गई थी। इस मामले में अस्पताल के डायरेक्टर सहित 6 लोगों पर केस दर्ज किया गया था।

आखिरी बार सिर्फ अपने बेटे की चीख सुन पाया…
उस दिन बात करते हुए ही अचानक तन्मय का फोन बंद हो गया। आखिरी बार सिर्फ अपने बेटे की चीख ही सुन पाया। न तो उसकी मदद कर पाया, न ये समझ पाया कि क्या हो गया? अस्पताल पहुंचा, तो हाथ-पांव फूल गए। पूरा अस्पताल लपटों से घिरा था। जले हुए लोगों को निकाला जा रहा था। अफरातफरी मची हुई थी। निकलने के लिए रास्ता ही नहीं था। चारों ओर से धुआं भरा था। भीड़ में मैं भी तन्मय को तलाशने लगा, तभी सामने से पुलिस वाले स्ट्रेचर पर बेटे को लाते दिखे। तन्मय के शरीर पर कपड़े नहीं थे, उसकी पहचान सिर्फ कद-काठी से की। मैं सोच रहा था- काश! उस समय मना कर देता या मैं भी साथ आ जाता, तो शायद ये दिन ना देखना पड़ता। मैं कुछ नहीं कर सका। मेरे सामने बेटा जला हुआ पड़ा था।

मैंने आज तक कभी खुद इतना बेबस महसूस नहीं किया, जितना तन्मय का शव देखकर लगा। ऐसा लग रहा था- जैसे कि बेटे की नहीं, मेरी मौत हो गई है। सोच रहा था- घर पर उसके भाई को क्या बताऊंगा। रातभर उसके जले शरीर को देखकर बस उसे याद करता रहा। पता ही नहीं चला कि कैसे दिन बीत गया। सोचा था- बेटा मेरी चिता को आग देगा, पर मैं उसका अंतिम संस्कार कर रहा था।

हादसे में 8 लोग मारे गए थे, 3 स्टाफ के ही थे…

1. वीर सिंह (30 वर्ष), निवासी आधारताल, जबलपुर (वार्डबॉय) 2. स्वाति वर्मा (24), निवासी- नारायणपुर, सतना (नर्स) 3. महिमा जाटव (23), निवासी- नरसिंहपुर (नर्स) 4. दुर्गेश सिंह (42), निवासी- आगासौद, जबलपुर 5. तन्मय विश्वकर्मा (19), खटीक मोहल्ला, जबलपुर) 6. अनुसूइया यादव (55), निवासी- चित्रकूट, मानिकपुर (यूपी) 7. सोनू यादव (26), चित्रकूट, मानिकपुर (यूपी) 8. संगीता बाई (30), निवासी उदयपुर, बरेला (मंडला)

जानिए, पूरे मामले में अब तक क्या-क्या हुआ…

तीन दिन में ही मिल गई दो डॉक्टरों को जमानत
घटना के अगले दिन यानी 2 अगस्त को सहायक मैनेजर राम सोनी और सीनियर मैनेजर विपिन पांडे को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। डॉक्टरों की गिरफ्तारी के लिए 10 हजार रुपए का इनाम घोषित किया। डॉ. संतोष सोनी को उमरिया से गिरफ्तार किया। इसके बाद भोपाल से डुमना एयरपोर्ट पहुंचे डॉ. संजय पटेल को 9 अगस्त को पुलिस की गिरफ्त में आए। करीब डेढ़ माह तक जेल में रहने के बाद डॉ. संजय पटेल और डॉ. संतोष सोनी एवं दोनों मैनेजर को हाईकोर्ट से जमानत मिल गई। इसके बाद 17 सितंबर को डॉ. निशिथ गुप्ता और डॉ. सुरेश पटेल ने जिला कोर्ट में सरेंडर कर दिया।

विजय नगर थाना पुलिस ने दोनों आरोपी डॉक्टरों से पूछताछ के लिए 5 दिन का रिमांड मांगा। कोर्ट ने 2 दिन की रिमांड पर सौंपा। 2 दिन की पुलिस रिमांड के बाद उन्हें 19 सितंबर को कोर्ट में पेश किया तो कोर्ट दोनों को जेल भेज दिया। 4 आरोपियों को हाईकोर्ट से मिली जमानत को आधार बताते हुए वकीलों ने दोनों डॉक्टरों की जमानत की अर्जी लगाई। कोर्ट ने 22 सितंबर को दोनों डॉक्टरों को जमानत दे दी। दोनों डॉक्टर कुल तीन दिन जेल में रहे।

अस्पताल का लाइसेंस निरस्त हो चुका है
घटना के बाद स्वास्थ्य विभाग ने अस्पताल का लाइसेंस निरस्त कर दिया है। मामला कोर्ट में लंबित होने के कारण अस्पताल को सील कर दिया है। इस मामले में संभागायुक्त ने भी जांच रिपोर्ट तैयार की है। इसमें अस्पताल के डॉक्टरों व मैनेजरों को घटना के लिए दोषी बताया गया है।

जबलपुर में अस्पताल अग्निकांड के आरोपी।

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