गौरिहार का मामला: जान जोखिम में डालकर जर्जर भवनों में रहने के लिए मजबूर पुलिस जवानों के परिवार

[ad_1]
गौरिहार41 मिनट पहले
- कॉपी लिंक

गौरिहार कस्बा के हायर सेकंडरी स्कूल के पास स्थित थाना परिसर में बने पुलिस आवास पूरी तरह से जर्जर हो चुके हैं। यहां रहने वाले पुलिस कर्मियों के परिवारों के जीवन के लिए हमेशा खतरा बना रहता है। करीब 56 साल पहले बने यह दर्जन भर आवास विभाग की देख-रेख और रखरखाव के अभाव में खंडहर में तब्दील हाे रहे हैं। जनता की सुरक्षा के लिए दिन-रात तत्पर रहने वाले पुलिस कर्मियों को ही अपनी व परिजन के जान-माल को लेकर हर पल चिंता बनी रहती है।
जानकारी के अनुसार उत्तरप्रदेश की सीमा में स्थित जिले के गौरिहार गांव में थाने की स्थापना 66 साल पहले वर्ष 1956 में हुई थी। स्थापना के बाद से करीब 10 वर्ष तक महलों के पास कस्बे के मकान में इस थाने का संचालन होता रहा था। थाने के निजी भवन बनाने की प्रक्रिया के दौरान बस्ती से लगी हुई शासकीय भूमि का पर्याप्त रकबा न मिलने पर गौरिहार निवासी सामंत सिंह ठाकुर ने बस्ती से लगी हुई अपने स्वामित्व की 8 एकड़ जमीन दान-पत्र में लिखकर थाना भवन, स्टॉफ के आवास निर्माण और परिसर के लिए दान में दी थी। लेकिन शासन-प्रशासन की उपेक्षा या विडंबना के चलते भूमि दानकर्ता का नाम इतिहास के पन्नों में दफन होकर रह गया। ग्रामीणों का कहना है कि निर्मित भवन में भूमि दाता का नाम एक पट्टिका में लिखा होना चाहिए था।
थाना भवन, पुलिस बल के आवासों एवं परिसर के लिए आवश्यक भूमि दान-पत्र के माध्यम से मिल जाने के बाद उक्त भूमि पर वर्ष 1965-66 में लोक निर्माण विभाग द्वारा थाना भवन सहित आरक्षकों के निवास के लिए एक दर्जन आवासों का निर्माण कराया गया था। शासकीय भवनों का मेंटेनेंस कराने के लिए जिम्मेदार विभाग की लापरवाह कार्यप्रणाली के चलते जहां इन आवासों की दीवारें जगह-जगह से टूट-फूट गयी हैं। वहीं छतें पूरी तरह से जीर्ण-शीर्ण हो जाने से बारिश के दौरान कमरों में पानी टपकने लगता है।
तकनीकी अभाव के चलते पूर्व में निर्मित इन आवासों की छत में उपयोग की गई लकड़ियों के बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो जाने से खंडहर हो चुके इन भवनों पर कभी भी धराशायी हो जाने का खतरा कई वर्षों से मंडरा रहा है। आवासों के जर्जर हो जाने की वजह से गौरिहार थाने में पदस्थ पुलिस कर्मियों को अपने साथ कभी भी किसी अप्रिय घटना घटित हो जाने का भय हमेशा सताता रहता है। थाना क्षेत्र की जनता को सुरक्षा प्रदान करने के लिए सदैव मुस्तैद रहने वाले सिपाही अपने परिवार की जान जोखिम में डालकर इन जर्जर आवासों में रहने के बावजूद पुलिस विभाग के अनुशासन के कारण किसी अन्य से अपना दर्द भी खुलकर बयां नही कर पाते हैं।
बारिश के दिनों में आवास को लेकर इन सिपाहियों की स्थिति और भी दयनीय हो जाती है। पिछले करीब एक दशक से बरसात का मौसम आते ही हमेशा खतरों का सामना करने वाले इन जवानों के रोंगटे भी अनजाने भय से खड़े हो जाते हैं। बारिश के मौसम में क्षेत्र में ड्यूटी करने के बाद खाना खाने और सोने के लिए सिपाहियों के जर्जर आशियानों की शरण मे ही आना पड़ता है। बारिश के दरमियान इनकी होने वाली दुर्गति का अनुमान लगाते ही रूह कांप जाती है।
कुल मिलाकर गौरिहार थाने में पदस्थ स्टाफ को बारिश के मौसम में ड्यूटी बजाने के बाद बचे हुए समय में भी आराम नसीब नही हो पाता है। बारिश के दौरान हर सिपाही को दिन में छाता और रात में टार्च और छाता दोनों हाथों में लेकर अपने जर्जर आवास को पानी से बचाने के लिए छत में पन्नी से ढकने का असफल प्रयास करते देखना गत वर्षों से आम सा हो गया है।
भवनों की नहीं कराई रंगाई-पुताई
शासन स्तर से सरकारी भवनों के रख-रखाव के लिए समय-समय पर पर्याप्त राशि आवंटित की जाती है। लेकिन अधिकारियों द्वारा मरम्मत करवाना तो दूर भवनों की रंगाई-पुताई तक नहीं करवाई जाती है। कस्बे के विभिन्न शासकीय भवन आवास भी लंबे अर्से से अपनी रंगाई-पुताई की बाट जोह रहे हैं। सरकारी भवनों के रख-रखाव के लिए हर वर्ष मिलने वाली राशि को जिम्मेदारों द्वारा कागजी खानापूर्ति कर करीने से ठिकाने लगाकर निज हितों की पूर्ति कर ली जाती है। थाना परिसर में बाउंड्रीवॉल नहीं है। बाउंड्रीवॉल न होने से आसपास के लोग इस परिसर में अतिक्रमण कर रहे हैं। थाने की जमीन पर बेखौफ अतिक्रमण हो रहा है। जिससे इसका क्षेत्रफल लगातार घट रहा है।
पुलिस विभाग के आला अधिकारी
क्यों : थाना सूत्रों के अनुसार कई बार विभागीय अधिकारियों को पत्राचार कर इन भवनों के संबंध में अवगत कराया गया, लेकिन कोई असर नहीं हुआ। अधिकारियों की उदासीनता के चलते पुलिस कर्मियों के परिवार इन जर्जर मकानों में रहने को मजबूर हैं।
“गौरिहार थाना परिसर के आवासीय भवनों के मरम्मत के लिए बजट आने वाला है। बजट आते ही इनकी मरम्मत कराई जाएगी।”
-विक्रम सिंह, अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक, छतरपुर।
Source link