क्या दिग्विजय लड़ेंगे अध्यक्ष पद का चुनाव?: ​​​​​​​कमलनाथ की ना के बाद दिग्विजय का नाम फिर चर्चा में; जानिए, क्या हैं नए समीकरण

[ad_1]

  • Hindi News
  • Local
  • Mp
  • Digvijay’s Name Again In Discussion After Kamal Nath’s Name; Understand What Are The New Equations

भोपाल4 घंटे पहलेलेखक: राजेश शर्मा

राजस्थान के ताजा सियासी घटनाक्रम के बाद कांग्रेस हाईकमान बड़ा फैसला ले सकता है। इसकी संभावना बढ़ती जा रही है। खबर है कि अशोक गहलोत पार्टी अध्यक्ष पद की रेस से बाहर हो सकते हैं। कांग्रेस के सीनियर नेताओं का कहना है कि अब मल्लिकार्जुन खड़गे, दिग्विजय सिंह, केसी वेणुगोपाल, पवन बंसल अध्यक्ष पद की रेस में हैं। इसके अलावा पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ का नाम भी चर्चा में आया था, लेकिन उन्होंने एक बार फिर दोहराया कि वे मध्यप्रदेश छोड़कर कहीं नहीं जाएंगे। कमलनाथ की ना के बाद दिग्विजय सिंह का नाम फिर चर्चा में हैं। राजनीतिक विश्लेषकों से जानिए क्या बन रहे समीकरण…

दिग्विजय सिंह को पार्टी का सर्वोच्च पद मिलने की संभावना पर राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि गहलोत को छोड़ दिया जाए तो वेणुगोपाल और खड़गे की तुलना में दिग्विजय सिंह में राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने की काबिलियत है, लेकिन इसका नकारात्मक पक्ष भी है।

दिग्विजय सिंह को क्या कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया जा सकता है? इस सवाल पर राजनीतिक विश्लेषक अरुण दीक्षित कहते हैं कि इसकी संभावना कम ही दिखती है, लेकिन गहलोत रेस से बाहर हैं तो जिन तीन नामों की चर्चा है, उसमें दिग्विजय सिंह में ही इस पद को संभालने की काबिलियत दिखाई देती है। पार्टी के भीतर उनकी स्वीकार्यता का स्कोर क्या है? यह भी बड़ा सवाल है। इस बारे में दीक्षित कहते हैं- कमलनाथ मप्र में पार्टी के अध्यक्ष हैं। क्या वे दिग्विजय सिंह को राष्ट्रीय अध्यक्ष स्वीकार करेंगे? लेकिन कमलनाथ राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने तैयार हो जाएं तो दिग्विजय को प्रदेश अध्यक्ष बनाने में कोई गुरेज नहीं होगा। ऐसा मेरा मानना है।

इसी तरह कांग्रेस की गतिविधियों को लंबे समय से कवर कर रहे वरिष्ठ पत्रकार आशीष दुबे कहते हैं कि कांग्रेस में फिलहाल दिग्विजय सिंह ही एक ऐसे नेता दिखाई पड़ते हैं, जिनमें मोदी-शाह की बीजेपी से लड़ने की क्षमता है, लेकिन दिग्विजय के हाथ में कांगेस की कमान आने से बीजेपी को फायदा भी दिखाई देता है। इसकी वजह यह है कि दिग्विजय धार्मिक मुद़्दों पर मुखर रहते हैं। ऐसे में भाजपा को हिंदू-मुस्लिम पोलराइजेशन करने का मौका मिलेगा।

इस खबर पर आप अपनी राय यहां दे सकते हैं।

दिग्विजय के इन बयानों से समझिए संकेत

  • मेरी वफादारी नेहरू-गांधी परिवार व कांग्रेस के प्रति दिग्विजय ने दिल्ली में कांग्रेस अध्यक्ष बनने के सवाल पर कहा- मैं तीनों चीजों से कभी समझौता नहीं करता हूं। पहला- दलित, आदिवासी और वंचितों के मुद्दों पर। दूसरा-धार्मिक उन्माद फैलाने वाले किसी भी धर्म के संगठन के साथ कभी समझौता नहीं करूंगा। तीसरा- मेरी वफादारी नेहरू-गांधी परिवार और कांग्रेस के प्रति है। इन तीन बातों को समझकर ही आप दिग्विजय सिंह को समझ सकते हैं।
  • हम नेतृत्व के आदेश का पालन करेंगे दिग्विजय सिंह ने अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ने को लेकर अपने दूसरे बयान में कहा कि जो भी नेतृत्व का आदेश होगा। उसका हम पालन करते आए हैं। आगे करते भी रहेंगे। दिग्विजय सिंह के इस बयान से यह साफ है कि ऊपर से निर्देश मिलने के बाद वह अध्यक्ष पद के लिए नॉमिनेशन करेंगे।
  • इस बयान से पिक्चर में आया ट्विस्ट दिग्विजय ने कहा- अगर राहुल और प्रियंका चुनाव लड़ेंगे तो हम दावेदारी नहीं करेंगे। अगर कोई दूसरा लड़ता है और मैं उसे पसंद नहीं करता हूं तो मैं चुनाव में दावेदारी कर सकता हूं। कोई भी कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ सकता है। पार्टी में पहले भी गांधी परिवार से बाहर के अध्यक्ष रहे हैं। चुनाव लड़ने से किसी को रोका नहीं जा सकता और न ही किसी को जबरदस्ती चुनाव लड़ा सकते हैं।

उम्र का तकाजा, लेकिन दिग्विजय फिट
अशोक गहलोत कांग्रेस अध्यक्ष पद की रेस से बाहर होते हैं तो कांग्रेस के पास तीन और वरिष्ठ नेताओं का विकल्प है। इनमें से दो उम्र दराज हैं, जबकि तीसरे भी सीनियर सिटीजन वाली उम्र के करीब पहुंच चुके हैं। मल्लिकार्जुन खड़गे की उम्र 80 साल हो गई है। वहीं दिग्विजय सिंह-75 वर्ष के हैं, लेकिन दिग्विजय सिंह जिस तरह से मैदानी राजनीति में सक्रिय हैं, वे उम्र के इस पड़ाव में भी फिट हैं। इसी तरह केसी वेणुगोपाल की उम्र 59 साल है।

दिग्विजय सिंह ने चार साल पहले अपनी पत्नी अमृता के साथ नर्मदा परिक्रमा की थी। 192 दिन में उन्होंने 3,300 किलोमीटर की यात्रा पैदल की थी। इससे अंदाजा होता है कि वे उम्र के सातवें दशक में भी फिट हैं।

दिग्विजय सिंह ने चार साल पहले अपनी पत्नी अमृता के साथ नर्मदा परिक्रमा की थी। 192 दिन में उन्होंने 3,300 किलोमीटर की यात्रा पैदल की थी। इससे अंदाजा होता है कि वे उम्र के सातवें दशक में भी फिट हैं।

दिग्विजय अपने बयानों को लेकर रहते हैं चर्चा में
वहीं, कमलनाथ ने दिग्विजय सिंह की तुलना में दिल्ली में अधिक समय व्यतीत किया है। वह यूपीए की सरकार में मंत्री रहे हैं। साथ ही कई महत्वपूर्ण मंत्रालयों की जिम्मेदारी संभाली है। इसके साथ ही विवादों से भी दूर रहे हैं। सॉफ्ट हिंदुत्व की राह पर चलते हैं। धार्मिक मामलों में टिप्पणी से बचते हैं। बड़े नेताओं से उनके संबंध अच्छे हैं।
दिग्विजय सिंह हमेशा अपने बयानों को लेकर चर्चा में रहते हैं। धार्मिक मामलों में टिप्पणी कर विरोधियों के निशाने पर रहते हैं। एमपी में समय ज्यादा बीतता है। नर्मदा परिक्रमा के दौरान सक्रिय राजनीति से कुछ दिन दूर रहे। 2018 के विधानसभा चुनाव के बाद एमपी में सक्रिय हुए। भोपाल से लोकसभा चुनाव लड़े और हार गए।

दिग्विजय सिंह पहले राहुल गांधी के सलाहकार रह चुके हैं। उनके गांधी परिवार और दिल्ली में कांग्रेस के सभी नेताओं से अच्छे संबंध है, इसलिए उन्हें कांग्रेस अध्यक्ष बनाया जाता है तो कोई खास दिक्कत नहीं होगी।

दिग्विजय सिंह पहले राहुल गांधी के सलाहकार रह चुके हैं। उनके गांधी परिवार और दिल्ली में कांग्रेस के सभी नेताओं से अच्छे संबंध है, इसलिए उन्हें कांग्रेस अध्यक्ष बनाया जाता है तो कोई खास दिक्कत नहीं होगी।

कमलनाथ नहीं छोड़ना चाहते मप्र
चार दिन पहले पत्रकारों से बात करते हुए कमलनाथ ने खुद ही कहा था कि हाईकमान ने मुझे प्रस्ताव दिया था, लेकिन मैंने इसे अस्वीकार कर दिया। उनका कहना है कि वह मध्यप्रदेश में 2023 के विधानसभा चुनाव में पार्टी का नेतृत्व करना चाहते हैं। दिग्गज नेता के करीबी सूत्रों ने कहा कि कमलनाथ ने सोनिया गांधी से कहा कि वह 2023 में पार्टी को एमपी में जीत के लिए नेतृत्व कर सकते हैं, जैसा कि उन्होंने 2018 में किया था। हालांकि, उन्होंने आलाकमान से वादा किया कि वह पार्टी के लिए हमेशा लड़ते रहेंगे, भले ही वह भोपाल में रहे। उन्होंने कहा कि मैं एमपी नहीं छोड़ूंगा। इस बात को कमलनाथ हमेशा दोहराते रहते हैं।

कमलनाथ – दिग्विजय सिंह में कौन ज्यादा ताकतवर
कांग्रेस के अंदर राष्ट्रीय अध्यक्ष को लेकर माथापच्ची जारी है। राहुल गांधी स्पष्ट कर चुके हैं कि अध्यक्ष इस बार गांधी परिवार के बाहर से होगा। राजस्थान एपिसोड के बाद यदि राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने वालों की संभावनाओं को देखे तो मप्र से कमलनाथ और दिग्विजय सिंह का नाम है। ये दो नाम ऐसे हैं, जो ईमानदारी से गांधी परिवार के प्रति वफादारी का निर्वहन कर रहे हैं। तमाम परिस्थितियों में दोनों नेता गांधी परिवार के साथ खड़े रहते हैं। इसके साथ ही गांधी परिवार का भी इनका अटूट भरोसा है।

पूर्व सीएम कमलनाथ को गांधी परिवार का संकटमोचक भी कहा जाता है। इंदिरा गांधी उन्हें अपना तीसरा बेटा मानती थीं। गांधी परिवार में कमलनाथ की एंट्री डायरेक्ट है। 15 महीने में कमलनाथ सरकार जाने के बाद एमपी में उपचुनाव हुए। उसमें सम्मानजनक नहीं तो लेकिन ठीक-ठाक सफलता मिली। इसके बाद के उपचुनाव में कुछ सीटें बीजेपी के हाथों से छीन ली। वहीं, हाल ही में निकाय चुनाव हुए हैं। इसमें पहली बार कांग्रेस को पांच नगर निगम में सफलता मिली। कांग्रेस के पांच उम्मीदवार मेयर चुनाव जीत गए।

दिग्विजय और कमलनाथ दोनों कांग्रेस के वफादार नेताओं में गिने जाते हैं। कमलनाथ की नजर मप्र पर टिकी हुई है। जानकार मानते हैं कि बड़ा सवाल यह है कि यदि दिग्विजय को अध्यक्ष बनाया जाता है, तो कमलनाथ क्या दिग्गी की लीडरशिप में काम करेंगे।

दिग्विजय और कमलनाथ दोनों कांग्रेस के वफादार नेताओं में गिने जाते हैं। कमलनाथ की नजर मप्र पर टिकी हुई है। जानकार मानते हैं कि बड़ा सवाल यह है कि यदि दिग्विजय को अध्यक्ष बनाया जाता है, तो कमलनाथ क्या दिग्गी की लीडरशिप में काम करेंगे।

ग्राफिक्स- जितेंद्र ठाकुर

खबरें और भी हैं…
[ad_2]
Source link

Related Articles

Back to top button