कालापानी बन जाते हैं गांव: 666 सड़कें बनी ही नहीं, सैकड़ों गांव संपर्क विहीन, ग्रामीणों का जीवन दूभर

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बैतूल39 मिनट पहले

विकास के तमाम सरकारी दावों-वादों के बावजूद बैतूल में आज भी सैकड़ों गांव मुख्य सड़कों से कटे हुए है। हालात यह है कि बारिश होते ही ये इलाके कालापानी बन जाते है। यहां से निकलने और यहां पहुंचने के लिए ग्रामीणों को भारी मुश्किलें उठानी पड़ती है। जिस की तरफ जनप्रतिनिधियों का कोई ध्यान नहीं है। जिसने गांव वालो की जिंदगी बेसुरी बना दी है।

जिले में कई ऐसी महत्वपूर्ण बसाहटे है, जो प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना की नीतियों को पूरा नहीं कर पाने के कारण बारहमासी सड़कों की संपर्कता से वंचित रह गई है। इसे लेकर की गई पड़ताल में कई नीतिगत दिक्कतें सामने आई है। जिसने ग्रामीणों का जीवन दूभर बना दिया है। कलेक्टर बैतूल ने इन समस्याओं को हल करने का भरोसा जताया है।

यह आ रही समस्या

जिले के नए राजस्व ग्राम जो कि पीएमजीएसवाई योजना की पात्रता श्रेणी में नहीं थे। वर्ष 2014 तक उन्हें राज्य संपर्कता मद से बनाया गया। उसके बाद राज्य संपर्कता मद में नए राजस्व ग्रामों की सड़के संपर्कता के लिए कोई स्वीकृति प्राप्त नहीं हुई। इसमें लगभग 25 गांव शामिल है। इसी तरह जिले में ऐसे राजस्व ग्राम जो जनगणना वर्ष 2001 में राजस्व ग्राम थे।

लेकिन इन राजस्व ग्रामों की जनसंख्या सामान्य विकास खंडों में 500 से कम और आदिवासी विकास खंडों में 250 से कम थी। जो कि पीएमजीएसवाई की पात्रता श्रेणी में नहीं होने के कारण संपर्क विहीन है। जनगणना वर्ष 2011 के अनुसार वर्तमान में इन राजस्व ग्रामों की जनसंख्या सामान्य विकासखंड में 500 से अधिक और आदिवासी विकास खंडों में 250 से अधिक है। इसमें 24 मार्ग शामिल है।

यह बात भी सामने आई है कि सामान्य ब्लॉक में आदिवासी बाहुल्य ग्राम होने के कारण भी उन्हें पात्रता नहीं मिली है। जिले में सामान्य विकासखंड के ग्राम जिसमें जनसंख्या आदिवासी बहुल है। किंतु ऐसे ग्राम सड़क संपर्कता से वंचित हैं। ऐसे गांव में 5 गांव के नाम शामिल है। बताया जा रहा है कि पीएमजीएसवाई ने सड़कों को जोड़ने के लिए निरंतर प्रयास किए जा रहे हैं। जिसमें दोहरी संपर्क मिसिंग लिंक देखी गई है।

जिले में पीएमजीएसवाई योजना के तहत समीपस्थ दो गांव को मुख्य मार्ग से अलग-अलग एकल संपर्कता प्रदान की गई है। किंतु गांव के बीच कच्चे मार्ग को आपस में संपर्कता नहीं दी गई है। ऐसे मार्गों में 80 मार्ग शामिल है। इसी तरह जिले के ग्रामीण यांत्रिकी विभाग की ओर से बनाए गए ऐसे ग्रेवल मार्ग जिनमें वन क्षेत्र होने के कारण वर्ल्ड बैंक ऋण एमपीआरसी परियोजना में डामरीकरण के लिए शामिल नहीं किया जा सका है। इनमें करीब 19 सड़कें शामिल है। दो जिलों को जोड़ने वाली भी दस सड़कें नहीं बनाई जा सकी।

666 सड़कें संपर्क विहीन

प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना ने पूरे जिले में 666 सड़कों की गणना कराई है, जो संपर्क विहीन है। इन ग्रामों में सड़कों को यदि 2011 की जनगणना के आधार पर गिना जाता है, तो अधिकांश सड़कें बन सकती है। दोहरी संपर्कता लागू करने पर भी इसका फायदा मिल सकता है।

राज्य संपर्कता योजना का नहीं मिल रहा फायदा

सूत्र बताते है कि राज्य संपर्कता योजना के तहत अधिकांश सड़कें बनाई जा सकती है। लेकिन बजट की कमी से यह संभव नहीं हो पा रहा है। राज्य शासन के अधिकांश कद्दावर नेता, मंत्री अपने प्रभाव से इस योजना का फायदा अपने इलाकों में ले लेते है। जिन क्षेत्रों में नेताओ, अफसरों के संपर्क नहीं है। वह जिले इस योजना से अछूते रह जाते है।

कलेक्टर बोले- कर रहे प्रयास

बैतूल कलेक्टर अमनबीर सिंह बैंस ने भास्कर को बताया कि इनमें कई राजस्व ग्राम नहीं है। मजरे टोले जैसे है। वहां पीएमजीएस के मापदंड में नहीं आ पा रहे है। उसके लिए राजस्व ग्राम होना जरूरी है। अभियान चलाया जा रहा है कि ऐसे मजरों को राजस्व ग्राम घोषित कर दे। फिलहाल ऐसे 22 प्रस्ताव मिले है। सामान्य विकास खंडों के आदिवासी बाहुल्य ग्रामों के भी प्रस्ताव बनाए गए है। कई पहुंच विहीन गांवों को खनिज मद से सड़कों से जोड़ने की योजना भी तैयार की गई है। राज्य संपर्कता में 70 सड़कें भेजी गई थी, वे दस दे रहे लेकिन आवंटन ही नहीं मिला।

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