कांग्रेस अध्यक्ष की रेस में अब दिग्विजय सबसे आगे: 35 साल पहले इसी तरह MP की बागडोर सौंपने राजीव ने बुलाया था, जानिए दिग्गी की कहानी

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भोपाल3 घंटे पहलेलेखक: राजेश शर्मा

राजस्थान में सियासी संकट के बीच मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने की रेस में सबसे आगे हैं। बुधवार को उन्हें अचानक केरल से दिल्ली बुलाया गया है। दिग्विजय गुरुवार को अध्यक्ष पद के लिए नामाकंन कर सकते हैं। उन्होंने पिछले हफ्ते ही कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव लड़ने के संकेत दिए थे। यदि दिग्विजय सिंह कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनते हैं तो वे इस कुर्सी पर बैठने वाले मध्य प्रदेश के दूसरे नेता होंगे। इससे पहले भोपाल के शंकर दयाल शर्मा 1972 से 1974 तक कांग्रेस के अध्यक्ष रहे। फिलहाल अशोक गहलोत चुनाव लड़ेंगे या नहीं, इसे लेकर तस्वीर साफ नहीं है। वहीं शशि थरूर साफ कर चुके हैं कि 30 सितंबर को अध्यक्ष पद के लिए नामांकन दाखिल करेंगे।

राजीव गांधी के जमाने से गांधी परिवार के सबसे भरोसंमंद लोगों में शामिल दिग्विजय ने सोनिया गांधी के राजनीति में प्रवेश में बड़ी भूमिका निभाई थी। भारत जोड़ो यात्रा के जरिये वे अब राहुल को भविष्य की चुनौतियों के लिए तैयार करने की कोशिश कर रहे हैं। गांधी परिवार के प्रति दिग्विजय सिंह की राजनीतिक आस्था का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है, जब 1999 में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से सीताराम केसरी हटे थे, तब सोनिया गांधी ने यह जिम्मेदारी लेने से इनकार कर दिया था, उस दौरान दिग्विजय सिंह मप्र के मुख्यमंत्री थे। उन्होंने सीएम की कुर्सी छोड़ने की पेशकश कर दी थी।

राहुल गांधी की यात्रा में सबसे अहम रोल दिग्विजय सिंह निभा रहे हैं। यात्रा के लिए बनाई गई समिति के वे अध्यक्ष हैं। यात्रा की प्लानिंग से लेकर इसके रूट, बीच में राहुल किन लोगों से मिलेंगे, जनसभाएं- ये पूरा खाका दिग्विजय ने ही तैयार किया है। इस यात्रा का कोई घोषित राजनीतिक उद्देश्य नहीं है और दिग्विजय को ऐसी यात्राओं का पुराना अनुभव है। करीब 5 साल पहले दिग्गी मध्य प्रदेश में नर्मदा परिक्रमा यात्रा पर निकले थे। यह यात्रा भी राजनीतिक नहीं थी, लेकिन प्रदेश की राजनीति में इसने बड़ा खेल कर दिया था।

भारत जोड़ो यात्रा की रणनीति काफी सोच-समझकर बनाई गई है। इसका उद्देश्य यह है कि राहुल ज्यादा से ज्यादा लोगों से मिल सकें और पूरे भारत को समग्रता से समझ सकें। इसके साथ वे अपनी सोच और विजन के बारे में लोगों को बताएं, जिससे उनके बारे में प्रचलित भ्रांतियां खत्म हों।

दिग्विजय दे चुके थे संकेत

पिछले सप्ताह दिग्विजय सिंह ने चुनाव लड़ने सवाल पर कहा था कि देखते हैं, क्या होता है। चुनाव लड़ने का अधिकार तो सबको है। 30 सितंबर आपको तक पता चल जाएगा कि मैं चुनाव लड़ रहा हूं या नहीं। साथ ही उन्होंने कहा था कि कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव कोई भी लड़ सकता है। पहले भी पार्टी में गांधी परिवार से बाहर के अध्यक्ष रहे हैं।

अर्जुन सिंह थे राजनीतिक गुरु

दिग्विजय सिंह के राजनीतिक गुरु अर्जुन सिंह थे। राजनीतिक विश्लेषक अरुण दीक्षित एक किस्सा याद कर बताते हैं- बात 1995 की है, जब भोपाल में ज्यूडिशियल अकादमी का शुभारंभ हुआ था। कार्यक्रम में अर्जुन सिंह भी मौजूद थे। इस दौरान दिग्विजय सिंह ने सार्वजनिक तौर पर कहा था- सर, मैंने आपके (अर्जुन सिंह) चरणों में बैठकर राजनीति सीखी है।

1987 में आए थे गांधी परिवार के करीब

दिग्विजय को करीब से जानने वाले कहते हैं – गांधी परिवार और दिग्विजय सिंह की करीबियों की शुरुआत साल 1987 में हुई थी। जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे। राजीव ने एक दिन अचानक दिग्विजय को बुलाया और बताया कि वे उन्हें मध्य प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाना चाहते हैं। हालांकि वे इस पद पर नहीं जा पाए, लेकिन बाद में उन्हें यह कुर्सी मिली थी। इसके बाद 1993 में वे मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बने।

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क्या कांग्रेस को फायदा दिला पाएंगे दिग्विजय

दिग्विजय यदि कांग्रेस की कमान संभालते हैं तो कांग्रेस को कितना फायदा होगा? इसके जवाब में राजनीतिक विश्लेषक अरुण दीक्षित कहते हैं कि देश के वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य को देखें तो कांग्रेस को जिस तरह के नेता की जरूरत है, उनमें दिग्विजय सिंह फिट हैं, क्योंकि नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी के नेटवर्क के सामने वे ही खड़े हो सकते हैं। वे कहते हैं- गहलोत की तुलना में दिग्विजय कांग्रेस की बागडोर संभालते हैं तो कांग्रेस को विपक्षी दलों को एकजुट करने में आसानी होगी, क्योंकि दिग्विजय के संबंध ममता बनर्जी, नवीन पटनायक और दक्षिण के नेता एमके स्टॉलिन से कांग्रेस के अन्य नेताओं से बेहतर हैं। इतना ही नहीं, G-23 के नेताओं से भी दिग्विजय का संवाद व संपर्क है।

सोनिया के राजनीति में एंट्री की घोषणा दिग्विजय ने की थी

जब सोनिया गांधी ने राजनीति में प्रवेश का फैसला लिया तो इसकी औपचारिक घोषणा दिग्विजय ने ही की थी। यह वह दौर था जब सोनिया को हिंदी में भाषण देने में दिक्कत होती थी। इसके बावजूद पचमढ़ी चिंतन शिविर में हिंदी में लंबा भाषण देकर उन्होंने सबको चौंका दिया था। इस चिंतन शिविर और सोनिया के भाषण की सारी तैयारी दिग्विजय ने ही की थी।

सॉफ्ट हिंदुत्व के लिए तैयार किया

राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि दिग्विजय ने ही कांग्रेस को सॉफ्ट हिंदुत्व का रास्ता दिखाया था। सोनिया गांधी इसको लेकर असहज थीं, लेकिन दिग्विजय ने उन्हें भी तैयार कर लिया। इसी दौरान उन्होंने सिवनी के पास दिघौरी में तीन शंकराचार्यों को एक मंच पर जमा किया और राम मंदिर के मुद्दे पर कांग्रेस के लिए अलग रणनीति का रास्ता तैयार किया। दिघौरी में धर्म गुरुओं के मंच पर सोनिया को खड़ा कर दिग्विजय पहली बार यह संदेश देने में सफल रहे थे कि हिंदुत्व पर किसी एक पार्टी का अधिकार नहीं है।

दिग्विजय सिंह ने चार साल पहले अपनी पत्नी अमृता के साथ नर्मदा परिक्रमा की थी। 192 दिन में उन्होंने 3,300 किलोमीटर की यात्रा पैदल की थी। इससे अंदाजा होता है कि वे उम्र के सातवें दशक में भी फिट हैं।

दिग्विजय सिंह ने चार साल पहले अपनी पत्नी अमृता के साथ नर्मदा परिक्रमा की थी। 192 दिन में उन्होंने 3,300 किलोमीटर की यात्रा पैदल की थी। इससे अंदाजा होता है कि वे उम्र के सातवें दशक में भी फिट हैं।

बयानों से सुर्खियों में रहते हैं दिग्विजय

दिग्विजय सिंह अपने बयानों को लेकर हमेशा सुर्ख़ियों में छाए रहते हैं। फिर चाहे वह बाटला हाउस मुठभेड़ पर उनके द्वारा सवाल उठाना रहा हो, अमेरिका द्वारा आतंकी ओसामा बिन लादेन का शव समुद्र में फेंकने पर आपत्ति जताना हो या राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर उनका हमलावर रुख हो।

22 साल की उम्र में निर्दलीय जीता था नगर पालिका चुनाव

दिग्विजय ने भी पिता की तरह नेतागिरी की। 22 की उम्र में राघोगढ़ से निर्दलीय नगरपालिका का चुनाव जीता था। दिग्विजय राजगढ़-ब्यावरा बेल्ट में आज भी राजा साहब बुलाए जाते हैं। वे 25 साल की उम्र में कांग्रेस में शामिल हो गए थे। दिग्विजय सिंह मध्यप्रदेश के राघोगढ़ राजपरिवार से आते हैं। 28 फरवरी 1947 को जन्मे दिग्विजय मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। राजनीति उन्हें विरासत में मिली थी। उनके पिता बलभद्र सिंह 1952 में राघोगढ़ से विधायक जीते थे। पर्चा निर्दलीय भरा था, लेकिन उन्हें हिंदू महासभा का समर्थन मिला हुआ था।

दिग्विजय सिंह पहले राहुल गांधी के सलाहकार रह चुके हैं। उनके गांधी परिवार और दिल्ली में कांग्रेस के सभी नेताओं से अच्छे संबंध है, इसलिए उन्हें कांग्रेस अध्यक्ष बनाया जाता है तो कोई खास दिक्कत नहीं होगी।

दिग्विजय सिंह पहले राहुल गांधी के सलाहकार रह चुके हैं। उनके गांधी परिवार और दिल्ली में कांग्रेस के सभी नेताओं से अच्छे संबंध है, इसलिए उन्हें कांग्रेस अध्यक्ष बनाया जाता है तो कोई खास दिक्कत नहीं होगी।

सबसे बड़ा सवाल- कमलनाथ प्रदेश और दिग्विजय राष्ट्रीय अध्यक्ष?

यदि दिग्विजय सिंह राष्ट्रीय अध्यक्ष बनते हैं तो सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि कमलनाथ प्रदेश अध्यक्ष रहेंगे? इसके जवाब में अरुण दीक्षित कहते हैं कि दोनों नेताओं के बीच तालमेल बेहतर है। मप्र में 15 साल बाद 2018 में कांग्रेस की सरकार बनी तो मुख्यमंत्री कमलनाथ बने, लेकिन दिग्विजय सिंह का उन्हें पूरा समर्थन रहा। दोनों के बीच किसी भी तरह के टकराव पर कोई संदेह नहीं है। ऐसा पहली बार नहीं होगा। बीजेपी ने जेपी नड्‌डा को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया, लेकिन उनसे सीनियर कई नेता राज्यों में संगठन या सरकार संभाल रहे हैं। बता दें कि कमलनाथ राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बजाय मप्र में काम करने की मंशा स्पष्ट कर चुके हैं।

दिग्विजय और कमलनाथ दोनों कांग्रेस के वफादार नेताओं में गिने जाते हैं। कमलनाथ की नजर मप्र पर टिकी हुई है। जानकार मानते हैं कि बड़ा सवाल यह है कि यदि दिग्विजय को अध्यक्ष बनाया जाता है, तो कमलनाथ क्या दिग्गी की लीडरशिप में काम करेंगे।

दिग्विजय और कमलनाथ दोनों कांग्रेस के वफादार नेताओं में गिने जाते हैं। कमलनाथ की नजर मप्र पर टिकी हुई है। जानकार मानते हैं कि बड़ा सवाल यह है कि यदि दिग्विजय को अध्यक्ष बनाया जाता है, तो कमलनाथ क्या दिग्गी की लीडरशिप में काम करेंगे।

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