कभी कॉलेज की फीस के पैसे नहीं थे, आज करोड़पति: स्टार्टअप ‘द कबाड़ीवाला’ को मिली 15 करोड़ की फंडिंग; जानिए सक्सेस स्टोरी

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भोपाल4 मिनट पहलेलेखक: शुभांगिनी दुबे
भोपाल के 2 युवा। इनकी कहानी यूथ के लिए इंस्पिरेशन है। कभी इनके पास कॉलेज की फीस भरने तक के पैसे नहीं थे, लेकिन एक आइडिया ने किस्मत बदल दी। न सिर्फ लोगों की कबाड़ की समस्या को हल किया, बल्कि पर्यावरण के लिहाज से भी महत्वपूर्ण है। उन्होंने साबित कर दिया कि स्टार्टअप के लिए पैसा, प्लान की नहीं, बल्कि मेहनत और लगन की जरूरत है।
कहानी भोपाल के स्क्रैप बेस्ड स्टार्टअप ‘द कबाड़ीवाला’ की है। इस स्टार्टअप को हाल में मुंबई की इंवेस्टमेंट फर्म ‘रूट्स वेंचर’ ने 15 करोड़ की फंडिंग की है। स्क्रैप बिजनेस में इतनी बड़ी फंडिंग का प्रदेश का पहला स्टार्टअप है। जानते हैं उनकी सक्सेस स्टोरी के बारे में…

स्टार्टअप के फाउंडर भोपाल के अनुराग असाटी और कवींद्र रघुवंशी को साल 2014 में ऑनलाइन कबाड़ खरीदने का आइडिया आया। यहीं से पड़ी ‘द कबाड़ीवाला’ की नींव। उन्होंने वेबसाइट तैयार की। बहुत रिसर्च किए बिना दोनों एक्शन मोड में आ गए। काम करते हुए सीखते गए। कारवां बढ़ता गया। कॉल पर ऑर्डर आने लगे।
कुछ साल का वक्त लगा। कई सारे उतार-चढ़ाव और समाज के छुआछूत रवैये के बाद आज ‘द कबाड़ीवाला’ का सालाना टर्नओवर 10 करोड़ से अधिक का है। 5 शहरों- भोपाल, इंदौर, लखनऊ, रायपुर और नागपुर में यह चल रहा है। करीब 300 लोग काम कर रहे हैं। आगे 30 से 40 शहरों में इसे स्टार्ट करने कि प्लानिंग है।
सबसे खास बात है कि जीरो इन्वेस्टमेंट से शुरू हुआ यह स्टार्टअप आज नई ऊंचाइयों को छू रहा है। अनुराग ने भोपाल के ओरिएंटल कॉलेज से इंजीनियरिंग की है, तो कवींद्र प्रोफेसर थे। ‘द कबाड़ीवाला’ के शुरुआत की स्टोरी भी दिलचस्प है।

‘द कबाड़ीवाला’ के को-फाउंडर अनुराग असाटी और कवींद्र रघुवंशी ने 2014 के बाद इसकी नींव रखी थी। यह स्क्रैप बेस्ड स्टार्टअप है।
कॉलेज फीस देने के भी नहीं थे पैसे, आज करोड़पति
फैमिली शुरुआत से सिंपल रही है। आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। मैं 8वी में था, तब मां का साथ छूट गया। पापा की जनरल स्टोर की शॉप थी। हम 2 भाई ही हैं। मुझसे बड़े भैया हैं। कॉलेज की पढ़ाई के लिए उन्होंने लोन लिया था। फिर मैं अभी कॉलेज में आ गया। मेरी पढ़ाई के लिए पैसे नहीं थे, तो कॉलेज में फीस में मुझे छूट दे दी गई। इस तरह से पढ़ाई पूरी कर ली।
इंजीनियरिंग के दौरान ही मैं कुछ अलग करना चाहता था। मैं बस और ट्रेन में लोगों को सोशल मीडिया एप चलाते देखता था। मेरे मन में आता था कि मैंने ये एप क्यों नहीं बनाए? ऐसा कुछ मैंने क्यों नहीं बनाया कि सब उसे यूज करें।
एक दोपहर मैं कॉलेज से लौट रहा था। रास्ते में कबाड़ी को ठेला ले जाते देखा। अचानक से दिमाग में आया कि लोग हमेशा कबाड़ी वाले की रास्ता देखते रहते हैं। क्यों न कुछ ऐसा किया जाए कि घर बैठे लोग ऑर्डर बुक कर दें और कबाड़ बेच दें। पहले तो घर पर नहीं बताया। अगर बताता तो वहीं गालियां पड़ती। पेरेंट्स तो यही कहते कि इतना पढ़ाया-लिखाया कबाड़ी बनाने के लिए। बिना सोचे-समझे काम शुरू कर दिया।
2 साल तक मैं खुद घरों से आने वाली बुकिंग पर कबाड़ उठाता था। किराए का लोडिंग ऑटो लेकर जाता था।
इतने समय तक घर पर पता तक नहीं था कि मैं कोई काम भी करता हूं। धीरे-धीरे काम समझ आने लगा। बाद में जब फैमिली को अच्छे से समझाया, तो उन्होंने भी सपोर्ट किया। फिर जन्म हुआ ‘द कबाड़ीवाला’ का। एक वेबसाइट तैयार करवाई। कबाड़ के बिजनेस को ऑनलाइन ले आए। देश में इसके मार्केट की बात करें, तो भारतीय अर्थव्यवस्था में करीब 3% हिस्सा कबाड़ का है।
(जैसा कि द कबाड़ीवाला के को-फाउंडर अनुराग असाटी ने दैनिक भास्कर को बताया)


‘द कबाड़ीवाला’ लोगों से ऑर्डर लेकर उनके घर से कबाड़ कलेक्ट करता है। लोग वेबसाइट पर भी बुकिंग करते हैं।
पहले भी गाड़ी नहीं थी, अब भी नहीं है
अनुराग ने बताया कि स्टार्टअप के पहले से ही वो सिंपल लिविंग में विश्वास रखते हैं। जब कुछ पास में नहीं था, तब भी पैदल या पब्लिक ट्रांसपोर्ट यूज करते थे। करोड़ों की फंडिंग के बाद भी ऑफिस पैदल ही आया-जाया करते हैं।
अब छोटे शहरों पर फोकस
अनुराग ने बताया कि हम एक्सपेंशन मोड में हैं। फिलहाल, हम पांच शहरों भोपाल, इंदौर, रायपुर, लखनऊ और मुंबई में काम कर रहे हैं। हमारे 2 लाख कस्टमर्स हैं। सबसे बड़ा कस्टमर बेस भोपाल में है। हम अभी इसे टियर 2 और टियर 1 सिटीज में बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं।

‘द कबाड़ीवाला’ कंपनी पहले बड़े कबाड़ियों को स्क्रैप बेचती थी, लेकिन अब सीधे बाहर या कंपनियों को भेज देती है। इससे कमीशन भी बचता है।
महिलाओं के बाल से लेकर फ्रूटी कैन…सब बिकता है
अनुराग ने बताया कि यहां महिलाओं के बाल 1000 रुपए किलो तक बिकते हैं। कैन 80 रुपए किलो बिकता है। यह कबाड़ कई तरह का है। इसमें रद्दी पेपर, बोतलें, इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट, स्कूटर, प्रिंटर, कोल्ड ड्रिंक बोतलें भी शामिल हैं। सभी का अलग-अलग मार्केट है। लोहा-प्लास्टिक तो रीसाइकिल हो जाता है।
बाकी कंपनियों का एक रूल है, अगर उन्होंने 5 टन प्लास्टिक मार्केट में छोड़ा है, तो उससे उन्हें वापस भी लेना होगा। इसमें वे कंपनियों की मदद करते हैं। मार्केट से प्लास्टिक उठाते हैं, फिर बड़ी कंपनियों को उतने ही वजन का प्लास्टिक वापस सौंप देते हैं, लेकिन रीसाइकल करके उसका कुछ प्रॉफिट इन्हें भी मिल जाता है।

शार्क टैंक इंडिया से ‘द कबाड़ीवाला’ कई आगे..
शार्क टैंक इंडिया जैसे फंडिंग प्लेटफॉर्म में पार्टिसिपेट करने पर अनुराग ने कहा कि शार्क टैंक इंडिया से हमारा स्टार्टअप कई गुना आगे है। वहां लाखों या फिर ज्यादा से ज्यादा एक या करोड़ की फंडिंग होती है। हमारा विजन बड़ा है। जल्द ही हमें देश के हर बड़े शहर में सर्विसेज देना है।

‘द कबाड़ीवाला’ ने गोदाम भी ले रखा है, जहां दिनभर का कबाड़ा इकट्ठा किया जाता है। कबाड़ में पेपर, बोतलें, इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट, स्कूटर, प्रिंटर, कोल्ड ड्रिंक बोतलें, यहां तक कि महिलाओं के बाल भी खरीदी-बेचे जाते हैं।
एक तरफ स्क्रैप खरीदना, दूसरी तरफ रीसाइकिल
अनुराग का कहना है कि तो स्क्रैप खरीदने के अलावा भोपाल में स्टार्टअप नगर निगम के साथ मिलकर भी काम कर रहा है। स्टार्टअप द्वारा वेस्ट मटेरियल को रीसाइकिल किया जा रहा है। इनके अलावा, स्टार्टअप बड़ी कंपनी को एन्वायर्नमेंट में प्लास्टिक फुटप्रिंट बैलेंस करने में मदद कर रहा है।

गोदाम में पूरे कबाड़े को अलग किया जाता है। इसके बाद अलग-अलग पैक करके भेजा जाता है। लोहा-प्लास्टिक तो रीसाइकिल हो जाता है। वेयरहाउस में कैटेगरी के हिसाब से कबाड़ को अलग-अलग रखा जाता है। जैसे- प्लास्टिक मटेरियल को प्लास्टिक कैटेगरी में, मेटल मटेरियल को मेटल कैटेगरी में, न्यूजपेपर को न्यूजपेपर कैटेगरी में… फिर यहां से सेग्रीगेशन प्रोसेस यानी कटाई-छटाई का काम स्टार्ट होता है।
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