एक थे हमारे सुरेश भैय्या -जिनके सब थे अपने

वरिष्ठ पत्रकार एवं कवि साहित्यकार सुरेशचंद्र रोहरा 09 अप्रैल 2025 की दरमियानी रात हमसे 58 साल की उम्र में हमेशा के लिए जुदा हो गए। उन्होंने 15 से अधिक पुस्तकों की रचना की। रोहरा जी का सर्वाधिक चर्चित उपन्यास-कोयला जिंदगी- जिंदगी कोयला को मैंने हाल ही में अध्ययन किया है। जिसमें उन्होंने भू-स्थापितों की मर्म एवं पीड़ा को गहराई से महसूस कर इस उपन्यास को आकार दिया है।
यह उपन्यास मर्मस्पर्शी और दिल को छू लेने वाला है। इस उपन्यास में उन्होंने कोयला खनन प्रभावित भू-स्थापित परिवारों की पीड़ा को गहराई से समझकर आकार दिया है। यह उपन्यास एक साहित्यकार की कालजयी रचना है। जिसमें उन्होंने हृदय की गहराइयों से इसको आकार दिया है। इसके अलावा स्वर्गीय रोहरा ने उपन्यास-काले धब्बे, कलम का साधक, आओ शहीदे वतन हेमू कालाणी, मीर हूं या मीरा, जय गांधीश्वर, कामरेड ! आप कहां हो, समकालीन कविता, समाजात्मा, जैसे जल बिन मछली (उपन्यास) की रचना की थी। उनका लेखन का क्रम जारी था और वे हमसे जुदा हो गए।
स्वर्गीय रोहरा जी का जन्म 25 जून 1967 को हुआ था। उनके कंठ में सरस्वती विराजमान थी। मेरी कोरबा पदस्थापना के दौरान उनसे अक्सर मुलाकात होते रहती थी। साहित्य के प्रति उनका हमेशा से लगाव रहा है। वे देश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में हमेशा लेख, स्टोरी आदि लिखा करते थे। नई दिल्ली प्रकाशित जनसत्ता अखबार का कॉलम-दुनियां मेरे आगे में भी वे अपने संस्मण आदि लिखा करते थे। इसके अलावा सर-सलिल, सत्यकथा, मनोहर कहांनियां आदि में भी स्टोरी भेजा करते थे। बीजापुर के एक पत्रकार श्री चन्द्रकार की हत्या की रिपोर्टिंग सत्यकथा पत्रिका के लिए की थी।
स्वर्गीय सुरेश रोहरा के अभिन्न मित्र कोरबा निवासी सनंद दास दीवान जो उनके साथ हमेशा उठना-बैठना होता था। स्वर्गीय रोहरा के निधन से मेरे अलावा दीवान जी को भी गहरा आघात पहुंचा है। जब मै बेमेतरा पदस्थ रहा तब वे एक बार मुझसे मिलने आये थे। उनका ससुराल तिल्दा-नेवरा में है। तिल्दा-नेवरा से बेमेतरा की दूरी लगभग 35-40 किलामीटर है। कोरबा से स्थानातंरण होने के बाद मेरा अभी तक दुबारा कोरबा जाना नहीं हो पाया। स्वर्गीय रोहरा मुझे कोरबा आमंत्रित करते रहे किन्तु व्यस्तता के कारण कोरबा जाना नहीं हो पाया और उनसे मुलाकात नहीं हो पाई, इसका मुझे मलाल रहेगा। 25 जून को स्वर्गीय रोहरा का 58वां जन्मदिन है। कई लोग 90-95 वर्ष की उम्र तक जीवन जीते हैं किंतु नियति को कुछ और मंजुर था। स्वर्गीय रोहरा 58 वर्ष की उम्र में दुनिया से अलविदा हुए। वैसे लिखने लिए तो बहुत कुछ है खैर …………..! परमपिता ईश्वर से मैं कामना करता हूं कि उनकी आत्मा को शांति दें।
(यह लेखक के निजी विचार हैं।)
छगन लोन्हारे
रायपुर