उज्जैन में ऐरावत पर गजलक्ष्मी, इकलौती प्रतिमा: इंदौर में पूरा मंदिर गिरा, देवी प्रतिमा सुरक्षित रही; पढ़िए भोपाल के मंदिर की भी कहानी

[ad_1]

  • Hindi News
  • Local
  • Mp
  • Ujjain
  • Entire Temple Collapsed In Indore, Goddess Statue Remained Safe; Read Also The Story Of Bhopal Temple

मध्यप्रदेश23 मिनट पहले

22 अक्टूबर से धनतेरस के साथ दीपोत्सव शुरू हो चुका है। पंचांग भेद की वजह से कुछ जगहों पर आज 23 अक्टूबर को भी धनतेरस मनाई गई। इसके बाद रूप चतुर्दशी मनाई गई। अब आज 24 अक्टूबर यानी सोमवार को दीपावली पर लक्ष्मी पूजा की जाएगी। 25 को सूर्य ग्रहण होगा। 26 को गोवर्धन पूजा और 27 को भाई दूज रहेगी।

दीपावली के दिनों में देवी लक्ष्मी को आकर्षित करने के लिए पूजा-पाठ के साथ ही अन्य परंपराओं का पालन भी किया जाता है। जैसे घर के बाहर रंगोली बनाना, गोमूत्र का छिड़काव करना, पूजा में पीले चावल चढ़ाना आदि। इस दीपोत्सव हम आपको तीन महालक्ष्मी मंदिरों के बारे में बता रहे हैं…

पहले बात, उज्जैन के मां गजलक्ष्मी मंदिर के बारे में…
गजलक्ष्मी, लक्ष्मी के आठ स्वरूपों (अष्टलक्ष्मी) में से एक हैं। उज्जैन शहर के बीच सराफा बाजार नई पीठ में गजलक्ष्मी मंदिर में श्रद्धालुओं का दिन भर तांता लगा है। मंदिर में साल भर दान के रूप में आने वाला बिंदी सिंदूर को दीपावली के दूसरे दिन सुहाग पड़वा पर यहां महिलाओं को वितरित किया जाता है।

5 दिन 24 घंटे खुला रहेगा मंदिर

दीपावली के पांचों दिन मंदिर 24 घंटे खुला रहेगा। यहां अनुष्ठान होंगे। धनतेरस पर सराफा व्यापारी और दूसरे पेशे से जुड़े व्यापारी मंदिर में मंत्र और यंत्र बनवाते हैं। माता से प्रार्थना की जाती है कि माता बही खाते कभी खाली नहीं रहें और न किसी की देनदारी रहे।

धनतेरस पर ‘बरकत’ वितरित करने की परंपरा

पं. सागर शर्मा ने बताया कि धनतेरस पर राजस्थान, गुजरात और मध्यप्रदेश से बड़ी संख्या में श्रद्धालु गजलक्ष्मी मंदिर पहुंचते हैं। श्रद्धालु यहां ‘बरकत’ लेने आते हैं। ‘बरकत’ के रूप में नारियल, ब्लाउज पीस, पीले चावल, सिक्का, कौड़ी और श्रीयंत्र बांटा जाता है। ऐसी मान्यता है कि जो भी भक्त ‘बरकत’ घर में रखता है, उसके घर में धन, वैभव और सुख-समृद्धि बनी रहती है।

अब बात इंदौर के महालक्ष्मी मंदिर की…

एक बार पूरा मंदिर गिरा, दूसरी बार लगी आग; देवी प्रतिमा का बाल भी बांका नहीं हुआ
दीपोत्सव पर इंदौर के महालक्ष्मी मंदिर की आभा देखते ही बन रही है। होलकर कालीन इस मंदिर की स्थापना 1831 में हरि राव होलकर ने की थी। इस मंदिर में दूर-दूर से भक्त देवी महालक्ष्मी के दर्शन करने आते हैं। इस प्राचीन मंदिर के कुछ अनसुने किस्से भी हैं। कुछ सालों पहले ही इस मंदिर में एक नए ट्रेंड की शुरुआत हुई है।

मंदिर में पिछले कुछ समय से शुरू हुए नए ट्रेंड के बारे में बताने से पहले आपको बताते हैं दो हादसों के बारे में, जो प्रतिमा और गर्भगृह का कुछ नहीं बिगाड़ सके…

आइए, अब आपको बताते हैं मंदिर के नए ट्रेंड के बारे में…

इंदौर के राजबाड़ा स्थित महालक्ष्मी मंदिर में पिछले कुछ साल से ये नया ट्रेंड शुरु हुआ है। जैसे नया वाहन खरीदने के बाद लोग वाहन को मंदिर में पूजा कराने के लिए ले जाते हैं, वैसे ही यहां भक्त नई ज्वैलरी खरीदने, नई प्रॉपर्टी खरीदने के बाद ज्वैलरी और प्रॉपर्टी के पेपर मंदिर में लेकर आने लगे हैं।

एक युवती तो टेरो कार्ड्स लेकर आई थी…
पं. दुबे के अनुसार त्योहार पर इस चीज का ज्यादा क्रेज रहता है। पिछले एक-दो साल में कई भक्त धनतेरस पर ज्वैलरी खरीदकर आते हैं, तो पहले मंदिर में देवी का स्पर्श कराते हैं, इसके बाद उसे घर ले जाते हैं। इसी तरह 15 दिन पहले एक युवती अपने साथ टेरो कार्ड्स लेकर आई थी। टेरो कार्ड्स देवी से स्पर्श कराने की इच्छा उसने जाहिर की थी। टेरो कार्ड्स को भी देवी का स्पर्श कराया गया था।

ज्यादा लोगों के आने पर रखेंगे रिकॉर्ड
पं. दुबे के मुताबिक मंदिर में नोटों की गडि्डयां रखने वालों और गडि्डयों का कोई रिकॉर्ड नहीं रखा जाता है, लेकिन ज्यादा संख्या में आने पर इसका रिकॉर्ड रखा जाएगा। इसके साथ ही उनकी फोटो आईडी भी ली जाएगी, ताकि किसी प्रकार की कोई गड़बड़ न हो। दीपावली पर आने वाले भक्तों को दर्शन करने में परेशानी न हो, इसलिए एक तरफ से एंट्री और दूसरी तरफ से एग्जिट पॉइंट बनाया गया है।

भोपाल के करुणाधाम महालक्ष्मी मंदिर की रोचक कहानी भी जान लीजिए…

जब बात करुणा की हो, तो सबसे पहली छवि मां की ममता की ही बनती है। भोपाल के नेहरू नगर में करुणाधाम महालक्ष्मी मंदिर है। यह मंदिर श्रीयंत्र के आधार पर बना है। मंदिर अपनी भव्यता और वैभव के लिए प्रसिद्ध है। इस दिवाली जानिए, 135 फीट ऊंचे मंदिर के कुछ रोचक प्रसंग।

मंदिर के व्यवस्थापक महाराज सुदेश शांडिल्य बताते हैं कि जब वे 19 साल के थे, तब उनके पिता बाल गोविंद शांडिल्य ब्रह्मलीन हो गए। पिता जी की अध्यात्म में बहुत रुचि थी। वे स्वयं शक्ति के उपासक थे। फॉरेस्ट डिपार्टमेंट में उनकी जॉब थी। उनकी ही प्रेरणा से मंदिर की नींव रखी। 1996 में करुणाधाम आश्रम की शुरुआत हुई। 2014 में माता महालक्ष्मी की प्राण प्रतिष्ठा हुई।

मंदिर निर्माण के लिए मजदूरों ने दिया था दान
महाराज सुदेश शांडिल्य बताते हैं कि मंदिर की नींव जब रखी जा रही थी, तो यहां काम करने वाले मजदूर हफ्ते में एक बार अपनी एक दिन की मजदूरी दान करते थे। इस तरह वे एक महीने में 1000 रुपए अपनी श्रद्धा से मंदिर में दान देते थे।

7 फीट ऊंचाई से गिरी नवजात, उसे कुछ नहीं हुआ
मंदिर से जुड़ा प्रसंग बताते हुए महाराज शांडिल्य ने बताया कि जब मंदिर के गर्भगृह के नीचे मंडपम बन रहा था, तब एक महिला मजदूर प्रेगनेंट थी। निर्माणाधीन मंडपम में ही उसने बच्ची को जन्म दिया। एक दिन वह नवजात बच्ची को निर्माणाधीन मंडपम पर बने प्लेटफार्म पर छोड़कर कहीं चली गई। बच्ची 7 फीट की ऊंचाई से नीचे गिर गई। बच्ची को कोई चोट तक नहीं आई। बच्ची अब बड़ी हो चुकी है। पूरी तरह स्वस्थ है।

हीरे-मोतियों से सजा रतलाम में महालक्ष्मी का दरबार

दिवाली पर रतलाम के महालक्ष्मी मंदिर में कुबेर का खजाना सज गया है। लोगों ने अपनी दौलत मंदिर में चढ़ावे के रूप में रखी है। मंदिर को नोटों की लड़ियों से सजाया गया। हीरे-मोतियों और सोने-चांदी के जेवरों से धन की देवी का शृंगार किया गया है। इस बार चढ़ावे के लिए श्रद्धालुओं से नोट तो लिए गए हैं, लेकिन सोने-चांदी के आभूषण नहीं लिए गए, क्योंकि दिवाली के दूसरे दिन सूर्यग्रहण होने से आभूषणों का हिसाब रख पाना मुश्किल होगा।

मंदिर में सजावट के लिए श्रद्धालु दिवाली से पहले जेवर और नकदी भेंट करते हैं। यहां इन जमा आभूषणों और नकदी से दिवाली के पांचों दिनों तक महालक्ष्मी का शृंगार किया जाता है। मान्यता है कि इससे माता लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त होता है। यहां रतलाम के साथ राजस्थान, महाराष्ट्र और गुजरात से श्रद्धालु धन माता के दरबार को सजाने के लिए लाते हैं। इसमें नोटों की गडि्डयों से लेकर हीरे और बेशकीमती सोने-चांदी के जेवरात शामिल होते हैं। पूरी खबर पढ़िए

खबरें और भी हैं…
[ad_2]
Source link

Related Articles

Back to top button