इंदौर की दुकान में सालभर रहता है बर्तनों का डिस्प्ले: 45 फीट ऊपर तक सजे रहते है बर्तन, जानिए क्यों करते हैं ऐसा

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इंदौर29 मिनट पहले
इंदौर के बर्तन बाजार में एक बर्तन की दुकान सिर्फ अपने डिस्प्ले के कारण फेमस है। वैसे तो नाम से ही समझ में आता है कि इस बाजार में बर्तन बिकते होंगे। लेकिन इस बजार को एक खास दुकान के कारण भी पूरे शहर में पहचाना जाता है। इस दुकान पर आपको 45 फीट की हाईट तक (तीन मंजिल) तक कई तरह के बर्तन सजे हुए नजर आएंगे। धनतेरस पर बर्तन बाजार में हजारों की संख्या में लोग खरीदी करने आते हैं। इस दौरान दुकान की सजावट देखने और फोटो भी लेते है। खास बात यह कि बर्तनों का यह तीन मंजिला डिस्प्ले पूरे साल ऐसा ही रहता है।
चलिए आपको बताते है इस दुकान में ये ऐसी सजावट का सिलसिला कैसे शुरू हुआ…
इस दुकान का नाम है एस मुनीम जी एंड सन्स। इसके संचालक है सुरेंद्र मेहता। जो इंदौर बर्तन निर्माता एवं विक्रेता संघ के अध्यक्ष भी है। 1976 में उन्होंने अपनी दुकान को सजाना शुरू किया। इसके बाद से ही दुकान को इस तरह सजाने का सिलसिला शुरू हुआ। उस वक्त सुरेंद्र मेहता की उम्र 17 साल की थी। जब वे छठी क्लास में थे यानी उनकी उम्र 10 या 11 साल की थी। तब से ही वे पिता की बर्तन दुकान पर बर्तन जमाने का काम करते थे। उन्होंने बताया पहले वे संयुक्त परिवार में रहते थे। बर्तन बाजार में परिवार के सदस्य मुनीम जी की दुकान पर काम करते थे। मगर 1990 के आसपास उन्होंने बर्तन बाजार में ही अपनी दूसरी दुकान एस.मुनीम जी एंड सन्स खोल ली। मगर सजावट का शौक आज भी बरकरार है।

बाजार में कई लोग तो सिर्फ दुकान का डिस्प्ले देखने ही आते हैं।
ये है सजावट का वो किस्सा
सुरेंद्र मेहता ने बताया कि जब वे 17 साल के थे। तब कई लोग कपड़ा मार्केट में मिलों की प्रदर्शनी और लाइटिंग देखने जाते थे। तब ये रास्ता कई लोगों के लिए राजबाड़ा से कपड़ा मार्केट तक जाने के लिए एक ब्रिज जैसा काम करता था। लोग बर्तन बाजार से तो गुजरते थे। मगर इस बाजार का वजूद इतना नहीं था। उस वक्त उन्होंने सोचा की अपने बाजार का वजूद नहीं है। लोग यहां भी रुके इसलिए उनको आइडिया आया कि क्यों न दुकान को ऐसा सजाया जाए कि लोग देखने के लिए रुके। इसके चलते उन्होंने अपनी दुकान को सजाया। उस वक्त तो उन्होंने छोटे स्तर पर अपनी दुकान सजाई, मगर वह दुकान ऐसी सजाई कि यहां से गुजरने वाले लोग रुक कर दुकान देखने लगे। उस वक्त बर्तनों से उन्होंने करीब 25 फीट तक सजावट की थी।
लोग देखने के लिए रुकने लगे तो बढ़ा आत्मविश्वास
जब लोग उनके दुकान के बाहर आकर रुकने लगे और सजावट को देखने लगे, तो उनका आत्मविश्वास और बढ़ गया। उन्होंने इस सजावट को और बढ़ाने का निर्णय लिया। इसके बाद से धनतेरस के पहले दुकान को सजाने का सिलसिला शुरू हुआ और ये सजावट उनकी दुकान की एक पहचान भी बन गई है। सुरेंद्र मेहता कहते है कि ये सजावट ही उनके दुकान का डिस्प्ले बन गया है। उनकी दुकान पर ये सजावट सालभर रहती है। धनतेरस के पहले ही वे इसे बदलते है। हर साल अलग-अलग तरह से सजावट की जाती है जो सालभर तक रहती है।

करीब तीन लाख रुपए के बर्तनों से सजाते हैं दुकान
बाल्टी, डिब्बे, घड़े सहित अन्य बर्तन सजाते हैं
ये सजावट जमीन से 45 फीट ऊपर तक की जाती है। इसमें कई प्रकार के स्टील के बर्तन सजाए जाते है। घड़े, बाल्टी, डिब्बे, जग, छन्नी, कोठी, कड़ाई, लंच बॉक्स सहित अन्य प्रकार के बर्तनों से इसे सजाया जाता है। इसके साथ ही लाइटिंग भी यहां लगाई जाती है। ताकि शाम और रात के वक्त ये सजावट और आकर्षक लगे।

1991-92 में इस प्रकार सजती थी मुनीम जी की दुकान।
ऐसे पड़ा दुकान का मुनीम जी नाम
अध्यक्ष सुरेंद्र मेहता ने बताया कि उनके पिता केसरीमल मेहता इंदौर में राजस्थान मेटल वर्क्स में काम करते थे। वे सफेद टोपी और धोती-कुर्ता पहनते थे। कंपनी में काम करने और मालिक के करीबी होने से उन्हें लोग मुनीम जी कहने लगे। इसके बाद से वे मुनीम जी के नाम से ही जाने पहचाने जाने लगे। फैक्ट्री बंद होने के बाद उन्होंने बैलगाड़ी, ठेलागाड़ी पर आसपास के गांवों में बर्तन बेचने से शुरुआत की। इसके बाद उन्होंने बर्तन बाजार में ये दुकान डाली। इसलिए इस दुकान का नाम मुनीम जी पड़ा। 1990 के आसपास जब उन्होंने अपना व्यापार शुरू किया तो दुकान का नाम नहीं छोड़ा। उन्होंने अपनी दुकान का नाम एस.मुनीम जी एंड सन्स रखा।

सालभर में बदलते है बर्तन, करीब तीन लाख आता है खर्च
उन्होंने बताया कि जो बर्तन सजाए जाते है उनकी अनुमानित कीमत करीब तीन लाख रुपए है। इसके अलावा सजावट में 8 हेलोजन लगे है जिनकी कीमत 25 हजार रुपए है। इस प्रकार करीब-करीब साढ़े तीन लाख रुपए में दुकान सज कर तैयार होती है। दुकान में सालभर बाद इन बर्तनों को उतार कर नए बर्तन सजाए जाते हैं। जो पुराने बर्तन निकलते हैं,वे लाट (पुराने बर्तन खरीदने) वालों को बेच दिए जाते है। ये सिद्धांत शुरू से ही रहा है कि सजावट के बर्तनों का इस्तेमाल दुकान पर बेचने के लिए नहीं किया जाता है।
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