इंदौर आई बस आग हादसे में ऐसे बचे पैसेंजर: 12 दिन की ट्रेनिंग में ड्राइवर सिखता है हर बारीकी, तब मिलता है स्टेयरिंग

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इंदौर30 मिनट पहले
इंदौर के बीआरटीएस में गुरुवार शाम चलती आई बस में अचानक आग लगने के पहले ही ड्राइवर ने सूझबूझ दिखाते हुए सभी यात्रियों को बस से नीचे उतार दिया। बस में करीब 50 से ज्यादा पैसेंजर सवार थे। अब यहां सवाल यह उठता है कि आई बस के ड्राइवर को आग लगने से पहले ही खतरे का अहसास कैसे हो गया था। तो आपको बता दें कि यह किसी स्पेसिफिक ड्राइवर के परसेप्शन या इंस्टिक्ट पर निर्भर नहीं करता, बल्कि यह ड्राइवर को दी जाने वाली 12 दिन की कड़ी ट्रेनिंग का हिस्सा है। इस ट्रेनिंग के बिना किसी भी ड्राइवर को बस का स्टेयरिंग नहीं सौंपा जाता। यहां पढ़िए कैसी होती है आई बस के ड्राइवरों की ट्रेनिंग, किन-किन बातों का रखा जाता है खास ध्यान…
इंदौर के राजीव गांधी चौराहे से निरंजनपुर चौराहे के बीच 54 आई बसें संचालित होती हैं। इसमें से करीब 48 से ज्यादा बसें इस रूट पर रोजाना दौड़ती हैं। कुछ बसें रिजर्व में रहती है और कुछ मेंटेनेंस के कारण डिपो पर रहती हैं। इन आई बसों में 28 आई बसें ट्रेवल टाइम कंपनी की है। इस कंपनी को 2019 में एआईसीटीएसएल का टेंडर मिला था। गुरुवार को जिस आई बस में आग लगी वह भी इसी कंपनी की है।

रात में खाली बीआरटीएस पर देते हैं ट्रेनिंग।
ट्रेनिंग के बाद ही ड्राइवर चला सकते हैं बस
ट्रेवल टाइम कंपनी के मैनेजमेंट से जुड़े मनीष पंजवानी ने बताया कि पूरे ऑपरेशन का सबसे जरुरी हिस्सा है ट्रेनिंग। हर ड्राइवर को 10 से 12 दिन की ट्रेनिंग दी जाती है। जिसमें उन्हें बीआरटीएस में गाड़ी कैसे चलाना है, किस तरह डॉपिंग (स्टॉप पर सही जगह पर बस रोकना) करना। सिग्नल का ध्यान रखना, जैसी बातें शामिल हैं। उन्हें समझाया जाता है कि उनकी बस में जितने यात्री सफर करते हैं उनकी जिम्मेदारी ड्राइवर पर रहती है।

ड्राइवरों को प्रैक्टिकल के साथ थ्योरी भी पढ़ाई जाती है।
गाड़ी का तापमान नियंत्रण भी सिखाया जाता है
घटना को रोकना और घटना हो जाने पर हालात को कैसे हैंडल किया जाए, यह भी ट्रेनिंग के दौरान सिखाया जाता है। ड्राइवर को बताया जाता है कि बस का एक्सीलेटर कितना दबाना है, जिससे गाड़ी का तापमान कंट्रोल में रहे। गर्मी के मौसम में गाड़ी के तापमान काज्यादा ध्यान रखना पड़ता है। बस चलाने के दौरान ही बॉटलों का प्रेशर चेक करना, अग्निशमन यंत्र कैसे चलाना है, ओवर हिटिंग से कैसे बचना है इसकी डैमो सहित ट्रेनिंग दी जाती है। किसी भी स्थिति में उन्हें हर हाल में यात्रियों की सेफ्टी को प्राथमिकता पर रखना होता है।
सबसे पहले यात्री, फिर ड्राइवर, फिर बस
ड्राइवर को सबसे पहले यात्रियों को सुरक्षित रखने के बारे में ट्रेंड किया जाता है। उसके बाद खुद की सेफ्टी और सबसे आखरी में बस की सेफ्टी करने के बारे में ट्रेनिंग दी जाती है। इन 12 दिनों की ट्रेनिंग के बाद जब ड्राइवर रूट पर बस चलाता है तो वह अकेला नहीं होता है। उनके साथ एक अनुभवी ड्राइवर होता है, जो उन्हें गाइड करता है। इसके बाद ही फिर ड्राइवर अकेला बस चला सकता है। ये ट्रेनिंग इंदौर में ही रात में खाली बीआरटीएस में दी जाती है।

अग्निशमन यंत्र का इस्तेमाल करना भी सिखाया जाता है।
इमरजेंसी में गेट खोलने की भी ट्रेनिंग
समय पर लोगों को उतारने वाले ड्राइवर ताराचंद शर्मा ने कहा कि बस चलाने के पहले हमें सभी तरह की ट्रेनिंग दी जाती है। अग्निशमन यंत्र चलाने की भी ट्रेनिंग हमें मिली है। इसके अलावा यात्रियों को कैसे उतराना है। कोई घटना हो जाए तो कैसे सभी गेट खोलना है। अमूमन जब यात्रियों को उतारा जाता है, तब बस में ड्राइवर साइड बने गेट से ही उतारा जाता है। मगर जब ऐसी कोई घटना हो जाती है, तो बस में आगे और पीछे लगे दोनों इमरजेंसी गेट के साथ ही ड्राइवर साइड के गेट को भी खोल दिया जाता है, ताकि यात्री सुरक्षित और जल्दी उतर सकें। ड्राइवर ताराचंद शर्मा ने कहा कि अगर हमें ये ट्रेनिंग ना मिली होती तो हम यात्रियों को बचा नहीं पाते। ट्रेनिंग में हमें यहीं बताया कि अगर जरुरत पड़े तो कांच फोड़ दो। उन्होंने बताया कि वे पिछले एक साल से आई बस चला रहे हैं। इसके पहले वे स्कूल और ट्रैवल्स की बस भी चला चुके है।

इंदौर में इस तरह की आई बस संचालित होती है।
54 बसों में से 30 सीएनजी और 24 डीजल
एआईसीटीएसएल से मिली जानकारी के मुताबिक इंदौर में चलने वाली 54 में से 30 आई बस सीएनजी से चलती हैं। जबकि 24 आई बस डीजल से चलती है। रोजाना सुबह से लेकर शाम तक आई बस में 62 से 65 हजार यात्री सफर करते हैं। आई बस में बड़ी संख्या में नौकरीपेशा और स्टूडेंट्स सफर करते हैं।
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