डॉ. हरीसिंह गौर को मिले भारत रत्न: डॉ. गौर द्वारा दंड संहिता की लिखी कॉमेंट्री पर अमेरिकी सरकार ने निकाला था आदेश- हर लाइब्रेरी में हों ये वॉल्यूम

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सागर26 मिनट पहले
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सागर विश्वविद्यालय के संस्थापक डॉ. हरीसिंह गौर ने कानून के क्षेत्र में भी अनेक ऐसे काम किए जिनके कारण उन्हें विधिवेत्ता कहा जाता है।
सागर विश्वविद्यालय के संस्थापक डॉ. हरीसिंह गौर ने कानून के क्षेत्र में भी अनेक ऐसे काम किए जिनके कारण उन्हें विधिवेत्ता कहा जाता है। महिलाओं को वकालत का अधिकार दिलाया। हिंदू लॉ पर किताब लिखने से लेकर विधान परिषद में सदस्य रहते हुए हिंदू रिलीजियस एंड चेरिटेबिल ट्रस्ट बिल स्वीकृत कराया। चिल्ड्रन प्रोटेक्शन एक्ट भी डॉ. गौर के प्रयासों से कानून बना। 1860 की भारतीय दंड संहिता को लेकर डॉ. गौर ने कई वॉल्यूम लिखे।
इन्हें कॉमेंट्री भी कहा जाता है। यह कानून के जानकारों और अधिवक्ताओं के लिए बेहद महत्वपूर्ण मानी जाती है। विश्वविद्यालय द्वारा डॉ. हरीसिंह गौर को भारत रत्न दिलाने के प्रयासों के लिए बनाई गई भारत रत्न कमेटी के सदस्य अधिवक्ता डॉ. संदीप रावत बताते हैं डॉ. गौर के यह 5 वॉल्यूम अधिवक्ताओं के बीच बेहद महत्वपूर्ण और लोकप्रिय हैं।
रिसर्च के दौरान यह दस्तावेज सामने आए हैं, उनमें यह भी सामने आया है कि पीनल लॉ ऑफ ब्रिटिश इंडिया 4 वॉल्यूम में डॉ. गौर ने 1909 में लिखी थी। यह इतनी प्रसिद्ध हुई थी कि वे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कानूनविद और विधिवेत्ता के रूप में प्रसिद्ध हुए। उसके परिणाम स्वरूप अमेरिकी सरकार ने कहा कि हमारे यहां की हर लाइब्रेरी में यह किताब होना चाहिए। यूके और अमेरिका में भी इन वॉल्यूम को बेहद सराहा गया।
डॉ. गौर के बारे में कहा जाता है कि वे बहुत तेजी से लिखने वाले लेखक थे। लीगल कॉमेंट्री वाले लोग कहते हैं कि डॉ. गौर को पढ़ने पर लगता है कि उन्होंने विधि और साहित्य का एक साथ काम किया। एक बार गिनती करवाई गई तो अंग्रेजी के प्रसिद्ध कवि और लेखकों से भी ज्यादा शब्द डॉ. गौर ने लिखे थे। डॉ. गौर की कानून पर लिखी पहली किताब द लॉ ऑफ ट्रांसफर इन इंडिया है। यह 1902 में 3 वॉल्यूम में आई थी।
उनकी तीसरी किताब हिंदू कोड 1919 में आई थी। इसके अलावा कई अन्य किताबें भी विधि पर लिखीं। डॉ. रावत बताते हैं डॉ. गौर ने अनेक किताबें अलग-अलग क्षेत्र में लिखीं। इन सभी पर वृहद शोध कार्य करने की जरूरत है। इसके साथ ही उनके द्वारा लिखी गई किताबों का डिजिटलाइजेशन होना भी जरूरी है। जिससे उनके साहित्य को ज्यादा से ज्यादा लोग पढ़ सकें।
यूनिवर्सिटी के ड्रेस कोड को लेकर समर्थक थे डॉ. गौर
डॉ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय में ड्रेस कोड के पक्षधर रहे। उन्होंने दिल्ली और नागपुर यूनिवर्सिटी में कुलपति रहते हुए इसे अमल में लाने का काम किया। नागपुर यूनिवर्सिटी में उन्होंने फिजिकल ट्रेनिंग और ड्रेस कोड चालू कराया था। डॉ. गौर चाहते थे कि हर विषय पाठ्यक्रम का अलग ड्रेस कोड होना चाहिए।
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