अफसर ने ‘सरकार’ को ही दिखा दी ‘आंख’: चुनाव जीतना है तो पुरानी दोस्ती को जिंदा करो; BJP के सिस्टम से मंत्री परेशान

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मध्यप्रदेश14 मिनट पहलेलेखक: राजेश शर्मा
- हर शनिवार पढ़िए और सुनिए- ब्यूरोक्रेसी और राजनीति से जुड़े अनसुने किस्से
2018 में सत्ता गंवाने वाली BJP अब मिशन 2023 के लिए फूंक-फूंक कर कदम रख रही है। मैदानी स्तर पर तो रणनीति तैयार की ही जा रही है, नेताओं को भी एकजुट रहने की नसीहतें दी जा रही हैं। हाल ही में रातापानी के जंगल में सियासी मंथन के लिए जुटे BJP नेताओं की बैठक में दिल्ली से आए एक बड़े पदाधिकारी ने कहा कि चुनाव जीतना है, तो पुरानी दोस्ती को जिंदा करो।
BJP संगठन के बड़े नेता के इस डायलॉग के कई मायने निकाले जा सकते हैं, निकाले भी जा रहे हैं। संदेश साफ है आपसी मनमुटाव को दरकिनार कर एकजुट होकर चुनाव मैदान में उतरें। खास बात ये है कि जिस पदाधिकारी ने भरी बैठक में ये कहा कि उन्होंने 2018 के चुनाव और उससे पहले के समय नेताओं की आपसी गुटबाजी और आपसी तालमेल की राजनीति का बहुत ही बारीकी से अध्ययन किया है। उन्होंने यह तक पता किया कि BJP की हार में ‘अपनों’ की कहां, कब और कैसी भूमिका रही…।
बैठक में जो नेता मौजूद रहे, उनमें से कई के आपस में पहले संबंध बेहतर रहे, लेकिन अब आगे बढ़ने के लिए पर्दे के पीछे से दूसरे को गिराने के ‘खेल’ से इनकार नहीं किया जा सकता। सुना है कि जब यह डायलॉग बोला गया, तो दो नेता थोड़ा असहज हो गए थे। वजह बताई गई कि उन्होंने पार्टी में अपना कद बढ़ाने के लिए साम-दाम-दंड-भेद, हर तरीके अपनाए। उन्होंने दोस्ती वाले फॉर्मूले पर भरोसा ही नहीं किया। अब देखना है कि ये नेता एक नाव में तो सवार हैं, लेकिन मनमुटाव कब और कैसे दूर करेंगे? क्योंकि इलाके में वर्चस्व भी तो कायम रखना है।

फोर लेयर सिस्टम से मंत्री परेशान …जाएं तो जाएं कहां?

BJP ने अपने सिस्टम में थोड़ा बदलाव कर संभागीय संगठन मंत्री का पद खत्म कर पूरी जिम्मेदारी प्रदेश संगठन मंत्री को सौंप दी थी। इस व्यवस्था ने कुछ मंत्रियों का तनाव दूर कर दिया था, क्योंकि वे संभागीय संगठन मंत्री को ओवरटेक नहीं कर सकते थे, लेकिन यह सुकून ज्यादा दिन तक नहीं मिला। पार्टी ने नए सिस्टम के तहत क्षेत्रीय संगठन मंत्री की व्यवस्था लागू कर दी। इतना ही नहीं, राष्ट्रीय स्तर के दो पदाधिकारी भी राज्य में ज्यादा समय देने लगे हैं।
इस फोर लेयर सिस्टम से कार्यकर्ता तो खुश हैं, लेकिन कुछ मंत्रियों की पेशानी पर बल जरूर दिख रहा है। कार्यकर्ता इसलिए खुश हैं कि संघ से जुड़े ये चारों पदाधिकारी निचले स्तर पर सरकार और संगठन के कामकाज का फीडबैक लेते हैं। ऐसे में सत्ताधारी परेशान हैं। सुना है कि ग्वालियर-चंबल के एक मंत्री ने तीन पदाधिकारियों तक अपने काम गिनाकर पैठ बना ली, लेकिन चौथे को मिले फीडबैक में मंत्रीजी की शिकायतें मिल गईं। यह तो स्पष्ट है कि पार्टी अब माननीयों पर कसावट और मैदानी कार्यकर्ता को तवज्जो के फॉर्मूले पर चल रही है। इस सिस्टम को लेकर एक मंत्री की टिप्पणी- अब जाएं तो जाएं कहां…?
अफसर को महंगा पड़ा मंत्री से पंगा…

उज्जैन नगर निगम कमिश्नर अंशुल गुप्ता को सरकार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दौरे से ठीक 5 दिन पहले हटा दिया। इस एक्शन की वजह अफसर की कार्यप्रणाली को बताया गया, लेकिन अंदर खाने की खबर यह है कि इस अफसर ने स्थानीय मंत्री से पंगा ले लिया। हुआ यह कि मंत्री ने महाकाल कॉरिडोर (अब नाम महाकाल लोक) के निरीक्षण के दौरान अधूरे काम पर सख्त लहजे में अफसर से बात की। इस पर अफसर ने दो टूक कह दिया- प्रधानमंत्री के आने में अभी वक्त है, आप टेंशन न लें, काम हो जाएगा…। यह जवाब सुन मंत्रीजी थोड़ा असहज हो गए, क्योंकि उस दौरान कई स्थानीय नेता और अफसर भी मौजूद थे। फिर क्या था, मंत्रीजी ने उन्हें तत्काल हटाने ‘सरकार’ से बात की। कुछ ही घंटे में परिणाम आ गया।
गुप्ता को हटाने का आदेश मुख्य सचिव के हस्ताक्षर से जारी हो गया। सुना है कि इस अफसर की कलेक्टर से पटरी नहीं बैठती थी। स्थानीय नेता भी उन्हें पसंद नहीं करते थे। इसकी वजह यह है कि वे संघ की पसंद थे, लेकिन सरकार को आंखें दिखाना उन्हें महंगा पड़ गया। उनके तेवर इसलिए भी ऐसे हैं, क्योंकि उनका सिलेक्शन IPS में हुआ था। उन्होंने यूपी में कुछ समय काम भी किया, लेकिन बाद में उनका सिलेक्शन IAS में हुआ।
‘गांधी’ के सहारे पुनर्वास के रास्ते में अपनों का ‘रोड़ा’…

एक रिटायर्ड IAS पुनर्वास की तलाश में पिछले एक साल से हाथ-पैर मार रहे हैं, लेकिन ‘सरकार’ का आशीर्वाद उनको नहीं मिल पा रहा है। अब उन्होंने नया रास्ता चुन लिया है। वे जिस दिशा में बढ़ रहे हैं, वो संघ की दहलीज तक जाता है। उन्होंने बहुत ही प्लानिंग से सोशल मीडिया में ऐसी पोस्ट की, ताकि संघ उन्हें ‘अपना’ मान ले। जो रास्ता उन्होंने चुना था, वो उनकी मंजिल तक पहुंचने के बिल्कुल करीब था, लेकिन इससे पहले उन्होंने ‘गांधी’ को लेकर एक पोस्ट कर दी। फिर क्या था, उन्हीं की बिरादरी के एक रिटायर्ड अफसर ने उनकी पोस्ट को गलत साबित करने की ठान ली। दोनों के बीच ऐसा शीतयुद्ध हुआ कि सरकार और संघ दोनों ने उनसे किनारा कर लिया। बता दें कि यह वही अफसर हैं, जिनकी कांग्रेस सरकार में तूती बोलती थी। जब कांग्रेस सत्ता में आई तो जरूर उन्हें मलाईदार पोस्टिंग मिली, लेकिन बहुत कम समय के लिए।
कुलपति के बेटे की कमाई सालाना 8 करोड़…

एक विश्विविद्यालय में पदस्थ हुए कुलपति यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि उनके कार्यकाल में भ्रष्टाचार की कोई जगह नहीं होगी। वे अपनी छवि साफ-सुथरी बनाने के लिए अपने पुत्र की कमाई का उदाहरण दे रहे हैं। जब उनकी स्टाफ के साथ परिचय बैठक हुई तो उन्होंने कहा- यहां जो भी कुछ होता रहा, उससे मुझे कोई मतलब नहीं, लेकिन मेरे रहते कुछ भी ऐसा नहीं होना चाहिए, जिससे बदनामी हो। उन्होंने कहा- मेरा बेटा विदेश में नौकरी करता है, उसकी कमाई 8 करोड़ रुपए से ज्यादा है। इसलिए मुझे किसी की परवाह नहीं। बता दें कि जिन कुलपति को हटाया गया, उनके कार्यकाल में कई घोटाले हुए। उनकी विदाई की वजह भी यही बने। लिहाजा नए कुलपति संदेश दे रहे हैं कि उन्हें नंबर दो की कमाई का कोई लालच नहीं है।
और अंत में….
साहब की पत्नी निगम टीम से नाराज…

एक सीनियर IAS ने अपने सरकारी बंगले में पेड़ काटने का आदेश नगर निगम के एक अफसर को दिया। अफसर ने तत्काल आदेश का पालन किया और एक टीम साहब के बंगले पर भेज दी। यहां कुछ ऐसा हुआ कि साहब की पत्नी नगर निगम की टीम से नाराज हो गईं। जब यह बात साहब के कानों तक पहुंची, तो उन्होंने पेड़ काटने आए कर्मचारियों की मौखिक शिकायत कर उन्हें सस्पेंड करने के लिए कह दिया। इसकी वजह यह बताई कि कर्मचारियों ने उनकी पत्नी से बदतमीजी की। बहरहाल, दो कर्मचारियों को हटा कर दूसरी जगह पोस्ट कर दिया गया है। सुना है कि साहब उन्हें सस्पेंड करने पर अड़ गए हैं। हालांकि, दोनों कर्मचारी सस्पेंड नहीं हुए हैं। बता दें कि यह वही अफसर हैं, जो मुख्य सचिव की कुर्सी के लिए नागपुर से लेकर दिल्ली तक दौड़-धूप कर रहे हैं।
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मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार ने पहली बार उज्जैन में कैबिनेट बैठक की। इसमें मुख्य कुर्सी पर भगवान महाकाल की तस्वीर रखी गई। सीएम और सभी मंत्री अगल-बगल बैठे। ‘सरकार’ की इस पहल की खूब चर्चा हुई, लेकिन बैठक से पहले एक वाकया ऐसा हुआ, जिसने थोड़ी देर के लिए पुलिस के होश उड़ा दिए। पुलिस अफसर के सामने धर्मसंकट खड़ा हो गया कि ‘सरकार’ को आगे जाने दें या ‘पंडितजी’ को, क्योंकि अपने ‘सरकार’ तो पंडित जी हैं। ‘राजा साहब’ के समर्थकों के टूटे सपने

सियासत में सब कुछ खुलकर नहीं कहा जाता है। इशारों में समझा दिया जाता और समझने वाले समझ जाते हैं। एमपी की राजनीति में पिछले दिनों ऐसा ही हुआ। जो दिख रहा था, हकीकत उससे कहीं अलग थी। पोषण आहार पर एजी (महालेखाकार) की रिपोर्ट लीक होना ‘सरकार’ पर अटैक था, लेकिन सियासत पर बारीक नजर रखने वाले अतीत की घटनाओं को जोड़कर वहां तक पहुंच गए, जहां इसकी स्क्रिप्ट तैयार की गई। ग्वालियर में बन रही ‘सरकार’ के ताले की डुप्लीकेट चाबी!

मध्यप्रदेश की राजनीति में ‘महाराज’ के बदले हुए अंदाज से सियासी गर्माहट बढ़ती जा रही है। इससे ‘सरकार’ के खेमे में खलबली है, लेकिन विरोध-समर्थन का खेल सार्वजनिक होने में वक्त लगेगा, क्योंकि पिक्चर अभी धुंधली है। सिंधिया अपनी महाराज वाली छाप मिटा तो नहीं रहे, लेकिन इसे अपना अतीत बताकर नई छवि गढ़ने में जुट गए हैं। ‘सरकार’ के सामने नरोत्तम को CM बनाने के लगे नारे…

‘जहां दम वहां हम’ नेताओं पर यह जुमला बिल्कुल फिट बैठता है। राजनीति की रवायत ही कुछ ऐसी है। बात MP की करें तो पिछले एक साल में जब-जब बीजेपी केंद्रीय नेतृत्व की नजरें यहां पड़ी, नेताओं में खलबली मच गई। बदलाव की बयार चलने के कयास भर से आस्था डोलने लगी। इस बार भी जब ‘सरकार’ बदलने की हवा उड़ी। ‘सरकार’ बदलने की हवा उड़ी तो आस्था डोलने लगी…
वोट बैंक की राजनीति जो कराए सो कम है। मध्यप्रदेश में BJP राष्ट्रपति पद की आदिवासी उम्मीदवार द्रोपदी मुर्मू को संख्या से ज्यादा वोट दिलाकर आला नेताओं की शाबाशी लूटना चाहती है। इसके लिए महाराष्ट्र का शिंदे फॉर्मूला अपनाया जा रहा है। यानी शिवसेना की तरह MP में कांग्रेस में तोड़फोड़…। सुना है कि BJP ने कोशिश भी की, लेकिन बात बाहर आ गई। माननीय को राज्यसभा का ऑफर
चुनाव लड़ना कोई सस्ता सौदा नहीं है। जेब ढीली करनी पड़ती है। पैसा ना हो तो अच्छे-अच्छे के आंसू निकल आते हैं। हुआ यूं कि MP के एक बड़े शहर में मेयर पद के लिए चुनाव लड़ रहीं BJP प्रत्याशी ने अपने घर पर बैठक बुलाई। इसमें कैंडिडेट के बहुत करीबी लोगों के साथ एक मंत्री भी शामिल हुए। BJP की मेयर कैंडिडेट के घर रो पड़े मंत्री…
बुंदेलखंड की सियासत के अपने अलग ही अंदाज हैं। लेकिन, यहां के एक जिले में दो मंत्रियों के बीच कभी पटरी बैठी ही नहीं। इनमें से जूनियर ‘सरकार’ का खास है। जबकि, सीनियर का संगठन में बोलबाला है। लेकिन, जब भी कोई खास मौका आता है, पूछपरख जूनियर की ही होती है। अब महापौर से लेकर पार्षदों के लिए बनी कमेटियों को ही ले लीजिए। भाजपा में सीनियर पर जूनियर का जोर…
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