राज्य स्तरीय खेल प्रतियोगिता: पहनने को जूते तक नहीं थे, लेकिन खेलने का जुनून था, प्रशिक्षकों ने ट्रेनिंग दी तो आदिवासी बच्चे अब खेल रहे राज्य स्तर पर हैंडबॉल

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  • Didn’t Even Have Shoes To Wear, But Had The Passion To Play, Trainers Gave Training, Tribal Children Are Now Playing Handball At The State Level

शिवपुरी5 मिनट पहलेलेखक: संजीव बांझल

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आदिवासी क्षेत्रों के खिलाड़ी, जिनके पास पहनने को जूते तक नहीं थे, सिर्फ तीरंदाजी या खो-खो खेल में रुचि रखते थे। ऐसे खिलाड़ियों में प्रतिभा देखकर खेल प्रशिक्षकों ने जूते उपलब्ध कराए और उन्हें 4 महीने की कड़ी ट्रेनिंग देकर हैंडबॉल के गुर सिखाए। अब यह 4 खिलाड़ी जनजाति वर्ग में राज्य स्तरीय खेल प्रतियोगिता में अपना दमखम दिखा रहे हैं। जनजाति विभाग के अंतर्गत प्रदेश के 22 जिले आते हैं जिन्हें मध्य, पूर्व, दक्षिण और पश्चिम में बांटा गया है।

इन क्षेत्रों में आदिवासी बाहुल्य अधिक होने के कारण इन्हें खेल की विशिष्ट सुविधाएं देने के लिए प्रोत्साहन भी दिया जाता है। यहीं के खिलाड़ी छात्र कुंदन यादव, गिरीश सिसोदिया, मुस्कान क्लेश और दिव्या हैं। इन्होंने खेल स्टेडियम में हैंड बॉल खेलते हुए दूसरे खिलाड़ियों को निहारते देखा और पूछने पर खेल खेलने की इच्छा जताई तो फिर खेल अधिकारी राधेश्याम गढ़वाल, पीटीआई जाकिर खान ने इनकी खूबी को जाना और इन्हें जूते और अन्य सुविधाएं उपलब्ध कराकर खेल मैदान पर बुलाया।

4 महीने का कठिन परिश्रम कराया। धामनोद के कुंदन यादव 16 साल के हैं और इनके पिता मंडी में मजदूरी करते हैं। वहीं धामनोद के ही दूसरे खिलाड़ी गिरीश सिसोदिया ने भी तीन चार महीने की ट्रेनिंग ली, उनके पिता ड्राइवर हैं। वे इस खेल में कभी खिलाड़ी रह चुके हैं। इस वजह से उन्होंने बेटे को खेलने के लिए प्रोत्साहन दिया और शिक्षक ने सुविधाएं उपलब्ध कराईं। दोनों आज राज्य स्तरीय टीम में अपना हुनर दिखा रहे हैं और टीम को सेमीफाइनल तक ले गए हैं।

वहीं कुक्षी की रहने वाली मुस्कान क्लेश कक्षा आठ की छात्रा हैं और 14 साल की है, जिनके पिता दिनेश ऑटो चलाते हैं। वह खेल मैदान में खिलाड़ी को खेलते हुए देखकर प्रैक्टिस किया करती थीं। पीटीआई शिक्षकों ने देखा और उन्होंने मुस्कान को सुविधाएं उपलब्ध कराकर खेल की बारीकियां सिखाईं। ठीक इसी तरह से कुक्षी की ही रहने वाली दिव्या के पिता भी फॉरेस्ट विभाग में गाड़ी चलाते हैं और पिता के प्रोत्साहन पर बेटी खेल में आगे बढ़ी।

शिक्षकों ने उसकी मदद की और आज वह अपनी टीम की कैप्टन हैं। उसने अब तक के लीग मैच में 12 गोल दागे हैं। कुल मिलाकर आदिवासी क्षेत्र के खिलाड़ियों को उनके पीटीआई ने प्रोत्साहन देकर साबित कर दिया कि यदि बच्चों को बेहतर मार्गदर्शन मिले तो वह अच्छे खिलाड़ी भी साबित हो सकते हैं।

ग्वालियर ने जीते सभी मुकाबले , आज खिताबी भिड़ंत

रविवार को बालक बालिका 14 व बालक बालिका 17 आयु वर्ग के सेमीफाइनल मुकाबले खेले गए। इन मुकाबलों में ग्वालियर ने लीग मुकाबलों की तर्ज पर शानदार प्रदर्शन जारी रखा और चारों वर्ग के सेमीफाइनल मुकाबले जीत कर फाइनल में प्रवेश कर लिया। बालक 17 वर्ष आयु वर्ग में ग्वालियर ने जनजातीय विकास संभाग को 24-6 के बड़े अंतर से पराजित किया। जबकि इसी वर्ग के दूसरे सेमीफाइनल में नर्मदा पुरम ने उज्जैन को 15-13 के नजदीकी मुकाबले में शिकस्त दी ।बालक 14 वर्ष वर्ग में रीवा ने नर्मदा पुरम को 17-06 से हराया जबकि दूसरे सेमीफाइनल में ग्वालियर ने जनजाति विकास संभाग को 20 के मुकाबले 3 गोल की करारी हार दी। हालाकि जनजाति विकास संभाग की टीम द्वारा इस मैच में कुछ खिलाड़ियों की योग्यता को लेकर विरोध दर्ज कराया गया था जिसके आधार पर जांच उपरांत परिणाम घोषित किए जाएंगे। इधर बालिका 17 वर्ष वर्ग में पहला सेमीफाइनल इंदौर ने सागर को 6-3 से हराकर जीता जबकि दूसरा सेमीफाइनल ग्वालियर ने भोपाल को 5-2 से हराकर जीता। वहीं बालिका 14 वर्ष वर्ग में पहला सेमीफाइनल जनजातीय विकास ने जबलपुर को 12-1 से हराया जबकि दूसरा सेमीफाइनल ग्वालियर ने उज्जैन को 11-1 शिकस्त दी।

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