Chhattisgarh

मानव देह का खास लक्ष्य है भागवत्प्राप्ति – सुश्री डॉ प्रियंका त्रिपाठी

अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट

सक्ती – यह मानव देह हम लोगों को भगवत्कृपा से भगवत्प्राप्ति के लिये मिला हुआ है। इस मानव देह का खास लक्ष्य भगवत्प्राप्ति या भगवत्प्रेम की प्राप्ति करना है। सद्गुरु के वचनों पर श्रद्धा विश्वास करते हुये उनके बताये अनुसार साधना करने पर भगवत्प्राप्ति हो जाती है।


उक्त बातें अनुविभाग मुख्यालय सरायपाली जिला महासमुंद छत्तीसगढ़ से आई हुई राष्ट्रीय कथावाचिका एवं आध्यात्मिक प्रवक्ता सुश्री डॉ प्रियंका त्रिपाठी ने पेण्डरूवां में विश्व कल्याण हेतु आयोजित संगीतमयी श्रीमद्भागवत कथा के तृतीय दिवस अपनी मधुर सहज सरल सुबोध शैली में ज्ञान पूर्ण भावमयी कथा का रसास्वादन कराते हुये कही। कथावाचिका ने ध्रुव चरित्र का कथा श्रवण कराते हुये कहा कि महाराज उत्तानपाद के दो रानियां थी। पहली रानी सुनीति अर्थात जो वेद शास्त्र में बताई गई नीति के अनुसार चले और दूसरा रानी सुरूचि अर्थात जो अपने मन की इच्छा के अनुसार आचरण करें। बड़ी रानी सुनीति के पुत्र का नाम ध्रुव था जबकि छोटी रानी सुरुचि के पुत्र का नाम उत्तम था।‌ एक दिन ध्रुव राजा उत्तानपाद के गोद में जाकर बैठा , तब उसे देखकर उसकी छोटी मां सुरूचि ने उठाकर गोद से नीचे उतार दिया और बोली कि अभी तुम इस गोद में बैठने के योग्य नहीं हो। इस गोद में बैठने के लिये तुम्हें मेरे कोख से जन्म लेना पड़ेगा। अभी तुम्हें वन में जाकर तपस्या करना चाहिये। ध्रुवजी ने जाकर यह सारी बातें अपनी माता सुनीति को बताया।

सुनीति बोली कि तुम्हारी छोटी मां ठीक कह रही है तुम्हें वन में जाकर तपस्या कर भगवान को प्राप्त करना चाहिये। माता की बात सुनकर ध्रुवजी रात्रि में ही घर से निकल कर जंगल की ओर चले गये। मार्ग में उन्हें नारदजी मिले , नारदजी ने ध्रुव को समझाइस देकर घर वापस होने के लिये कहा , किंतु ध्रुवजी नहीं माने और उसने जंगल में जाकर तपस्या कर भगवान को प्राप्त करने की इच्छा व्यक्त किया। नारदजी ने उन्हें द्वादश अक्षर मंत्र ऊं नमो भगवते वासुदेवाय नमः दिया और साधना करने की विधि बताया। नारदजी ने मधुबन में जाकर तपस्या करने का सलाह दिया।‌ नारदजी के बताये अनुसार ध्रुवजी मंत्र का जप करते हुये भगवान विष्णु को प्राप्त कर लिया। इस तरह से जो भी व्यक्ति गुरु के वचनों पर विश्वास करके उनके बताये अनुसार साधना करता है तो उसे मानव देह के खास लक्ष्य भगवत्प्राप्ति हो जाती है। कथावाचिका डॉ० सुश्री प्रियंका त्रिपाठीजी ने आगे प्रहलादजी के चरित्र का विस्तार से वर्णन कर श्रोता समाज को बताया कि प्रहलादजी भगवान के बड़े भक्त हुये हैं। उनके पिताजी हिरण्यकश्यप ने नाना प्रकार के कष्ट दिया फिर भी प्रहलादजी भगवत भजन करना नहीं छोड़ा। और अंततः श्री हरि भगवान विष्णु को नरसिंह भगवान के रूप में प्रकट कर ही लिया। और एक हम लोग हैं जो माता-पिता के कहने के बाद भी भगवान का नाम नहीं ले पाते और भजन कीर्तन नहीं करते।

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