Chhattisgarh

भारतीयों की भावना के अनुकूल हो भारत का संविधान – अविमुक्तेश्वरानन्द सरस्वती

अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट

प्रयागराज – कोई भी संविधान उस देश के मूल निवासियों की भावना के अनुकूल होना चाहिये। कोई भी आयातित विचार हिन्दुओं के हित वाला नहीं हो सकता। कोई भी संविधान अपने देश के मूल चरित्र और वहाँ के निवासियों की संस्कृति , परम्परा और भाषा-भावादि के संरक्षण और संवर्धन के निमित्त होता है। हमारा देश भारत हिन्दुओं का देश होने के कारण हिन्दुस्थान कहा गया क्योंकि यहाँ के मूल निवासी हिन्दू ही हैं। जहाँ विश्व के अन्य धर्म किताबी धर्म कहे जाते हैं जो किसी एक किताब पर निर्भर होते हैं , वहीं हिन्दू धर्म किसी किताब का नहीं,अपितु “सरस्वती” का समुपासक रहा है। हमारे ऋषियों ने अपनी ऋतम्भरा प्रज्ञा से वेदों की ऋचाओं को प्राप्त किया है।


उक्त बातें उन्होंने परमधर्मांसद् में भारत का संविधान और हिन्दू धर्म विषय पर अपने विचार व्यक्त करते हुये ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने कही। उन्होंने कहा कि स्वतन्त्रता प्राप्ति के पूर्व तक भारत का कोई स्वतन्त्र संविधान नहीं था , यह विशाल देश अपने धर्मशास्त्र से ही संचालित होता था। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद संविधान को अपनाया गया परन्तु वह भी पुरानी विधियों के बारे में इतना ही कह पाया कि जिस सन्दर्भ में हम नया कानून बना दें उसके अतिरिक्त सभी निर्णयों के लिये पूर्व की हिन्दु विधियाँ ही निर्णायक रहेंगी। ऐसे में यह संविधान आंशिक रूप से हिन्दू विरोधी , आंशिक रूप से हिन्दू समर्थक और आंशिक रूप से किसी भी पक्ष में व्याख्यासाध्य बन गया है। संविधान के अनुच्छेद 25 से 30 में संशोधन करके देश के सभी निवासियों को समान अधिकार देने और इसकी अनुसूची 7 की सूची 3 की मद संख्या 28 के अनुसार मन्दिरों / हिन्दू धर्मस्थानों को हिन्दुओं के संचालन में सौंपने जैसे कुछ संशोधन कर देने से यह संविधान सर्वथा समादरणीय हो सकेगा। आज सभा का शुभारम्भ जयोद्घोष से हुआ। प्रश्नकाल में कुछ धर्मांसदों ने अपने प्रश्न पूछे। विषय स्थापना वाराणसी की धर्मांसद् साध्वी पूर्णाम्बा ने किया। विशिष्ट अतिथि वक्ता के रूप में सीबीआई के पूर्व डायरेक्टर नागेश्वर राव ने पावर प्वाइण्ट प्रेजेण्टेशन के माध्यम से प्रस्तुत किया।

उन्होंने अपने उद्बोधन में कहा कि भारत का संविधान कोई दैवीय ग्रन्थ नहीं है। काशी से अधिवक्ता डा०एस०के०द्विवेदी ने कहा कि भारत के संविधान की मूल भावना धर्मग्रन्थ के अनुसार ही है , वहीं रामशंकर शुक्ल ने हिन्दूओं के समान अधिकार विषय पर अपने विचार व्यक्त किये और संसदीय सचिव देवेन्द्र पाण्डेय ने संसद का संचालन किया। इसमें प्रमुख रूप से साई जलकुमार मसन्द , ब्रह्मचारी धरानन्द , ब्रह्मचारी उदितानन्द सहित कई संत महात्मा उपस्थित रहे। इसकी जानकारी ज्योतिष्पीठाधीश्वर शंकरचार्य के मीडिया प्रभारी संजय पाण्डेय ने दी।

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