पूजा जाट का एकलव्य अवार्ड के लिए चयन: खातेगांव के बछखाल की बेटी ने बढ़ाया जिले का मान, कई मेडल कर चुकी है अपने नाम

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खातेगांव9 घंटे पहले
देवास जिले की खातेगांव तहसील के ग्राम बछखाल की कुश्ती खिलाड़ी पूजा जाट की पिछले 6-7 सालों में की गई कड़ी मेहनत अब रंग ला रही है। पूजा ने एक बार फिर अपने साथ-साथ खातेगांव और जिले का नाम गौरवान्वित किया है। प्रदेश सरकार ने एकलव्य अवार्ड 2021 (कुश्ती) के लिए पूजा जाट का चयन किया है।
कई मेडल किए अपने नाम
पूजा ने थाईलैंड के चोनबुरी में संपन्न हुई जूनियर एशियन कुश्ती चैम्पियनशिप में भी इसी वर्ग में ब्रॉन्ज मेडल जीता था, और इस इंटरनेशनल प्रतियोगिता में पदक जीतने वाली प्रदेश की पहली महिला खिलाड़ी बनी। उसके बाद अगस्त में यूरोपियन देश एस्टोनिया की राजधानी ताल्लिन में आयोजित जूनियर वर्ल्ड रेसलिंग चैम्पियनशिप में भारत का प्रतिनिधित्व किया। यह पहला मौका था जब प्रदेश की किसी महिला खिलाड़ी ने जूनियर वर्ल्ड रेसलिंग चैम्पियनशिप में भाग लिया। गोवाहाटी में आयोजित खेलो इंडिया में प्रदेश का प्रतिनिधित्व करते हुए 53 किलो वर्ग में गोल्ड मेडल, हाल ही में कोच्चि में चौथी अंडर 23 सीनियर नेशनल रेसलिंग चैम्पियनशिप के 53 किलोग्राम भार वर्ग में गोल्ड मेडल जीता था। पूजा इसके साथ ही कई राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में मेडल जीतने के साथ ही अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में भी भारत का प्रतिनिधित्व कर चुकी है।

अपने पहले कोच और खेल शिक्षक योगेश जाणी के साथ पूजा जाट।
पहले दौड़ती थी, अब पछाड़ती है, पटखनी देती है, लगाती हैं दांव-पेच
हीरे को एक जौहरी ही पहचान सकता है। पूजा जैसे हीरे को परखकर तराशने का काम किया उसके सबसे पहले कोच और खेल शिक्षक योगेश जाणी ने। पूजा ने हाईस्कूल की पढ़ाई के दौरान 2014 और 2015 में स्कूल गेम्स में लगातार 2 साल तक 100 मीटर दौड़ में प्रदेश का प्रतिनिधित्व किया। उसके बाद पूजा रोज बछखाल से खातेगांव आकर यहां के मैदान पर प्रैक्टिस करती। मैदान पर कड़ी मेहनत और घंटों पसीना बहाने के बाद भी पूजा अपनी दौड़ का टाइमिंग कम नहीं कर पा रही थी, वजह थी एड़ी में दर्द। डॉक्टर्स ने सलाह दी कि वो दौड़ना बंद कर दे। पूजा निराश हो गई, लेकिन तब तक कोच योगेश जाणी पूजा में छिपी खेल प्रतिभा को पहचान गए थे। जाणी ने पूजा को दौड़ छोड़कर कुश्ती में हाथ आजमाने के लिए प्रेरित किया और उसे कुश्ती की ट्रेनिंग देना शुरू की। महज चार माह की ट्रेनिंग में ही पूजा ने स्टेट लेवल पर मेडल जीत लिया और उसके बाद फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। अपनी मेहनत से एक के बाद एक कई मेडल जीते।

10 साल की उम्र में मां को खोया
1 मार्च 2001 को जन्मी पूजा की उम्र जब 10 साल की थी तभी बीमारी के चलते उसकी मां का निधन हो गया। परिवार में पिता प्रेमनारायण के अलावा दो छोटे भाई दीपक और शुभम थे। घर में कोई महिला नहीं थी इसलिए चौके-चूल्हे की सारी जिम्मेदारी पूजा के कांधों पर थी। इतनी कम उम्र में पढ़ाई और प्रैक्टिस के साथ-साथ पूजा ने अपने घर की जिम्मेदारियों को भी बखूबी निभाया। सुबह 4 बजे उठकर परिवार वालों के लिए खाना बनाने के साथ घर के बाकी काम निपटाती थी, फिर बछखाल से 2 KM पैदल चलकर मैन रोड से बस पकड़ती और खातेगांव आकर प्रैक्टिस करती। पिता और दोनों भाइयों के साथ-साथ मुंहबोले मामा महेश गुर्जर ने भी बहुत सपोर्ट किया।

मप्र खेल अकादमी में सिलेक्ट होने के बाद खुली राहें
खातेगांव में उतनी सुविधा और संसाधन नहीं थे कि पूजा की प्रतिभा को और निखारा जा सके। शुरू के एक साल तो कुश्ती का मेट भी नहीं था, कोच योगेश जाणी टेंट की गादी पर चटाई बिछाकर पूजा और उसके साथी खिलाड़ियों को ट्रेनिंग देते थे। दो साल की कठोर मेहनत और खेल के प्रति लगन से पूजा का चयन मध्यप्रदेश सरकार की टीटी नगर भोपाल स्थित खेल अकादमी में हो गया। अकादमी में सिलेक्ट होने के बाद पूजा के लिए कई राहें खुल गई। पूजा अकादमी में सिलेक्ट होने वाली देवास जिले की पहली महिला रेसलर थी। नामी कोचों और बड़े कैंपों में ट्रेनिंग के साथ ही खाने का सारा खर्च अब मध्यप्रदेश सरकार उठा रही है लेकिन स्पेशल डाइट का खर्च स्वयं उठाना पड़ता है। हालांकि, अब पूजा की सगाई हो चुकी है। स्पेशल डाइट पर होने वाला खर्च उसके ससुराल वाले उठा रहे हैं। पूजा का होने वाला जीवन साथी भी इसी खेल से जुड़ा हुआ है।
रिश्तेदार कहते थे लड़की है बाहर मत भेजो
ग्रामीण परिवेश से आने वाली पूजा जब कुश्ती के लिए घर से बाहर निकली तो रिश्तेदारों ने कहा लड़की है इसे बाहर मत भेजो। लड़की कुश्ती करेगी तो शादी नहीं होगी। तब पूजा के पिता रिश्तेदारों को कहते कि कुश्ती के लिए वो जहां तक जाना चाहे जाए, मुझे उस पर पूरा भरोसा है। पूजा के खेल अकादमी में सिलेक्शन के बाद से उसके पिता और दोनों भाई ही घर का सारा काम करते हैं। परिवार वाले बेहद खुश हैं कि आज पूजा ने उनका नाम गौरवांतित कर दिया। पूजा कहती हैं विपरीत परिस्थतियों के बावजूद जैसा मेरे घर वालों ने मुझे सपोर्ट किया यदि उसी तरह से ग्रामीण लड़कियों को परिवार का साथ और प्रोत्साहन मिले तो कई प्रतिभाएं आगे आ सकती हैं।
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