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देवताओं को स्वर्ग में भी दुर्लभ है श्रीमद्भागवत कथा – पं० भूपेन्द्र मिश्रा

अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट

नैमिषासारण्य – श्रीमद्रागवत समस्त वेदों और शास्त्रों का सार है। जब अनेकों जन्मों का पुण्योदय होता है तब हमें श्रीमद्रागवत कथा सुनने का अवसर मिलता है। यह कथा देवताओं को स्वर्ग में भी दुर्लभ है। इसलिये कथा शुरु होने से पहले उन्होंने अमृत के घड़े के बदले में उन्हें श्रीमद्रागवत कथा सुनने की इच्छा जतायी थी।


श्री मद्भागवत महापुराण की उक्त पावन कथा भागवताचार्य पं० भूपेन्द्र मिश्रा ने श्री सत्यनारायण धाम , भागवत भवन तीर्थ क्षेत्र नैमिषासारण्य में आयोजित श्रीमद्रागवत कथा के प्रथम दिवस सुनायी। इस कथा के पारायणकर्ता पंडित रोशन दुबे एवं मुख्य यजमान खुशबू राजेश तिवारी बेमेतरा हैं। भागवत महात्य कथा के अंतर्गत उन्होंने भक्ति एवं नारद संवाद विषय का वर्णन करते हुये आगे कहा भक्ति महारानी के दोनो पुत्र ज्ञान और वैराग्य जब वृंदावन में बेसुध पड़े थे तब वहाँ से गुजरते हुये नारद जी ने उनको समस्त शास्त्रों को सुनाया फिर भी उन्हें होश नही आया। और जब उनको श्रीमद्भागवत की कथा सुनायी गयी तब स्वयं भक्ति महारानी अपने दोनो पुत्र ज्ञान और वैराग्य के साथ हरिर्नाम संकीर्तन करने लग गयी।

कथावाचक ने आगे कहा कि जब मनुष्य के जीवन मे दुख आता है और वह जीवन जीने की आशा छोड़ देता है तब भागवत की कथा मनुष्य को राह दिखाती है। जिस प्रकार ग्रीष्म काल के बाद वर्षा ऋतु के आगमन पर पूरी पृथ्वी हरी भरी हो जाती है , सूखे हुये पेड़ो में नये पत्ते निकलने लगते है , फूल खिलने लगते हैं उसी प्रकार (वर्षा ऋतु रघुपति प्रिय भगति) श्रीकृष्ण और श्रीराम नाम की वर्षा से मानव जीवन की व्यथा , मानव जीवन का कष्ट समाप्त हो जाता है। तत्पश्चात श्रद्धालुओं को आगे धुंधुकारी की प्रेतयोनि प्राप्ति और उसके उद्धार की कथा श्रवण कराते हुये उन्होंनें बताया कि (धुंधुम कलहम कार्याति इति धुन्धकारिहि) जो कलह करे , निंदनीय और धृणित कार्य करे , दूसरों को कष्ट दे वास्तव में वही धुन्धकारी है। अगर ये कार्य मनुष्य करने लगे तो समझ जाना हमारे अन्दर धुन्धकारी प्रवेश कर चुका है और इसे समाप्त करने ने लिये श्रीकृष्ण नाम संकीर्तन की धारा अपने जीवन मे प्रवाहित कर लेने में ही जीव का कल्याण संभव है। वहीं राजा परीक्षित के जन्म और श्राप मिलने का कथा श्रवण कराते हुये भागवताचार्य ने कहा कि महाभारत युद्ध में कौरवों ने पांडवों के सारे पुत्रों का वध कर दिया था , तब उनका एकमात्र वंशधर अर्जुन के पुत्र अभिमन्यू की पत्नी उतरा के गर्भ में पल रहा था। पांडवों के पूरे वंश को खत्म करने के लिये कौरवों के साथी अश्वत्थामा ने उस गर्भस्थ बालक पर ब्रह्मास्त्र का प्रयोग कर दिया , तब भगवान श्रीकृष्ण ने उतरा के गर्भ में प्रवेश कर उस बालक की ब्रहस्त्र से रक्षा की। गर्भ में कठिन परीक्षा होने के कारण यही बालक परीक्षित के नाम से प्रसिद्ध हुये और यही परीक्षित आगे चलकर राजा हुये। एक दिन शिकार करते हुये ये वन में भटक गये और भूख-प्यास से व्याकुल होकर ऋषि शमीक के आश्रम में पहुंचे। ऋषि उस समय ध्यान में लीन थे , राजा ने उन्हें पुकारा तो भी ऋषि का उन पर ध्यान नहीं गया। राजा को लगा कि ऋषि शमीक ने जानबूझकर उनका अपमान किया है और गुस्से में एक मरे हुये सर्प को ऋषि के गले में डालकर वे वहां से चले गये। पीछे से आये ऋषि शमीक के तेजस्वी पुत्र श्रृंगी ऋषि को इसका पता लगा तो उन्होंने राजा परीक्षित को सात दिन में तक्षक नाग से काटे जाने का श्राप दे दिया। जब राजा परीक्षित को श्राप का पता चला तो उन्हें बहुत पछतावा हुआ और उन्होंने शुकदेव मुनि से इसका उपाय पूछा। इस पर मुनि शुकदेव ने राजा परीक्षित की मुक्ति के लिये सात दिन भागवत कथा सुनाई जिससे उनको मोक्ष की प्राप्ति हुई। भागवताचार्य ने श्रद्धालुओं को कथा श्रवण कराते हुये कहा सात दिन में यानि सप्ताह के एक दिन हम सबको भी मरना और मरने का डर भी सबको है किन्तु भागवत हमें मरना सिखाती है , भय से मुक्त कराती है और हरि के परम पद को भी प्राप्त कराती है। इसके पहले श्रीमद्रागवत कथा का शुभारंभ आज भव्य दिव्य कलश यात्रा के साथ हुआ। कलश यात्रा में सैकड़ों महिलायें सज धजकर सिर पर कलश धारण कर मंगल गीत गाती हुई गाजे बाजे के साथ पूरे नगर की भ्रमण की। कलश यात्रा के कथास्थल पहुँचने पर मुख्य यजमानों ने श्रीमद्भागवत की आरती उतारी।

इसके पश्चात वैदिक आचार्यों द्वारा वेदी पूजन सम्पन्न कराया गया। इस अवसर पर मुख्य रूप से चंद्रकला तिवारी , निक्की तिवारी , वर्षा शर्मा , दीनू शर्मा , हिंगलाज द्विवेदी , रानी शर्मा , मोहन द्विवेदी , सच गौरहा , दीनानाथ स्वर्णकार , आशा स्वर्णकार , शंभूनाथ स्वर्णकार इत्यादि श्रद्धालुगण उपस्थित थे। आज से यह कथा प्रतिदिन सुबह दस बजे से हरि इच्छा तक चलेगी , मुख्य यजमान ने श्रद्धालुओं से अधिक से अधिक संख्या में उपस्थित होकर कथा श्रवण करने की अपील की है।

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